बिजेंद्र की पत्नी झुकने के लिए तैयार नहीं थी ,न ही ,उसे अपनी गलती का एहसास था। मालूम नहीं ,उसके घरवालों ने उसे समझाया भी या नहीं। अभी भी सबके दिमाग़ में ,एक उम्मीद बाक़ी थी शायद वो अभी भी आ जाये। एक दिन धीरेन्द्र अपने दोस्त के जन्मदिन पर गया था। उसने आकर जो बताया ,उससे सभी हैरत में पड़ गए। उसके अनुसार -भाभी वहां आई हुई थी और अपने किसी दोस्त के साथ थी। हमने उसे समझाया भी- कि उसका कोई रिश्तेदार होगा। तब उसने बताया -रिश्तेदार के साथ कोने में बैठकर सिर मिला -मिलाकर और हँस -हंसकर बातें नहीं होतीं और साथ में कोई नहीं था। धीरेन्द्र की जानकारी के आधार पर ,बिजेंद्र से रहा नहीं गया और अपनी पत्नी को फोन कर ही दिया।
हैलो ! कौन ?
अच्छा ,अब तुम मेरी आवाज भी नहीं पहचान पा रहीं।
कहो ! किसलिए फोन किया ?
क्यों ,क्या मैं अपनी पत्नी को फोन भी नहीं कर सकता ?
कौन पत्नी ,कैसी पत्नी और किसकी पत्नी ? मैं किसी की भी पत्नी नहीं हूँ ,न ही मेरा किसी के साथ कोई रिश्ता है।
बिजेंद्र थोड़ा नरमाई से बोला -तुम अभी भी नाराज़ हो।
जब मेरा तुमसे कोई रिश्ता ही नहीं ,तो नाराज़ होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
अब तुम घर कब आ रही हो ?
अरे ,यार ! कौन हो तुम ?मैं तुम्हे नहीं जानती ,वो लगभग चीखते हुए बोली।
क्या अब तुम्हारा मुझसे कोई रिश्ता नहीं रहा ? क्या तुम मुझे नहीं जानती ?या यूँ कहूँ ,तुम्हें कोई और बेवकूफ मिल गया है। अब उसका दिवाला निकालोगी। कौन है ? वो !
तुमसे मतलब !मुझे कोई मिला हो या नहीं किन्तु अब तुम्हारे संग तो रहूंगी ही नहीं। तुम्हारे अत्याचार नहीं सहूँगी।
मैंने क्या अत्याचार किया ,क्या इतने दिनों बाद भी ,तुम्हें मेरी ही गलती दिखती है ? तुमने कोई गलती नहीं की।
नहीं !मैं तुमसे बात ही क्यों कर रही हूँ ?और अब कान खोलकर सुन लो ,जिसे तुम्हारे भाई ने देखा, वो मेरा दोस्त है और अब मैं उसके साथ ही रहूँगी और उसी से शादी भी करूंगी। तुम क्या समझते हो -क्या मैंने तुम्हारे भाई को नहीं देखा ,उसे देखकर ही ,मैं अपने व्यवहार से उसे सब समझा देना चाहती थी।
बिजेंद्र चिढ गया और बोला - तुम्हारा वो पहले से ही यार था ,तुमने मुझसे पीछा छुड़ाने के लिये ये चाल चली। जब उसके साथ ही रहना था ,तब मेरी ज़िंदगी बर्बाद करने क्यों आई ?
हा ,हा हा ,हा वो जोर से हँसी और बोली -सही समझे ,मेरी जान...... वो मेरा कॉलिज के समय से ही दोस्त था। तुमसे विवाह करना मेरी मजबूरी हो गयी थी क्योंकि वो दूसरी बिरादरी का था और पापा नहीं मान रहे थे। तब उनके कहे से ,विवाह तो कर लिया किन्तु उन्हें ग़लत साबित कर दिया- कि उन्होंने मेरा विवाह अपनी ही बिरादरी में करा कर, कितनी बड़ी गलती कर दी ?मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो गयी। और अब उन्हें पछतावा भी है ,तभी तो अब वो मुझे उससे मिलने देते हैं। तुम क्या समझते हो? कि मैं तुमसे प्रेम करती थी और तुम्हारे बच्चे बनाकर ,उन्हें पालूँगी।
इतना बड़ा धोखा !
धोखा ही नहीं , मैं तुम्हें बर्बाद और बदनाम भी कर दूँगी ताकि मेरे तमाचे की गूँज तुम्हें उससे भी तेज सुनाई दे ,जो तुमने मेरे मुँह पर मारा था।
तुम्हारा तमाचा तो मुझे पहले ही लग गया। तुमने अपनी तो की या नहीं किन्तु मेरी ज़िंदगी अवश्य बर्बाद कर दी ,बिजेंद्र अपने मन का ग़म उससे भी नहीं छुपा सका।
वो तेज -तेज स्वर में हँसती रही और बिजेंद्र अपनी जिंदगीके टूटे हुए सपनों के साथ वहीं बैठ गया ,देर तक इसी तरह बैठा रहा।
मोहनलाल जी ने अपने बेटे को इस तरह हताश बैठे देखा और पूछा -क्या हुआ ,ऐसे क्यों बैठे हो ?
पापा सब खत्म हो गया।
क्या हुआ ?कुछ बतायेगा भी !वे परेशान होते हुए बोले।
मैंने उसको फोन किया था।
किसको ?क्योंकि उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि ऐसे आगे बढ़कर अपनी पत्नी को फोन भी कर सकता है।
उसे ही ,कृति को !
अच्छा !फिर क्या जबाब दिया उसने ,कब आ रही है ?
अब वो कभी नहीं आएगी ,कहते हुए ,वो उठकर सोफे पर बैठ गया।
तू क्या उससे फिर से लड़ बैठा ?तुझे उसे समझाना चाहिए था ,अब तो तेरी माँ भी उसे फोन नहीं करेगी ,वो भी उससे नाराज हो गयी है।
ठीक ही किया उन्होंने ,ऐसी औरत से बेइज्जती कराने से तो अच्छा है ,उससे बात ही न करे।
तू भी अपनी माँ की बोली बोलने लगा।
पापा आप समझ नहीं रहे हैं ,वो इस गुस्से से नहीं गयी है ,ये तो उसके जाने का मात्र बहाना था। उसे तो जाना ही था। उस दिन धीरेन्द्र ने उसे जिस लड़के के साथ देखा था ,वो उसका कॉलिज के समय का दोस्त है ,वो उससे ही विवाह करना चाहती थी ,उसके पापा नहीं माने ,तब उसे इस तरह मुझसे अलग होने का बहाना मिल गया। अब वो उसी के साथ रहेगी और उसी से विवाह करेगी।
तुझसे ,ये सब किसने बतलाया ? ये सब झूठ होगा।
अभी उसी ने तो बताया ,इसमें मुझे कोई गलत जानकारी क्यों देगा ?कहकर उसने सम्पूर्ण जानकारी और फोन पर जो भी बातें उन दोनों के बीच हुईं ,उसका सम्पूर्ण वृतांत अपने पापा को सुना दिया।
मोहनलाल जी ,उसकी बातें सुनकर बैठ गए ,वो ऐसा महसूस कर रहे थे ,जैसे किसी ने ठग लिया हो। समझ नहीं पा रहे थे ,अपनेआप को समझाएं या अपने बेटे को। अभी तो वो स्वयं को भी ,इन बातों के लिए विश्वास नहीं दिला पा रहे थे। बिजेंद्र से बोले -जब लड़की और लड़की के माता -पिता को ही परवाह नहीं ,तब इसमें हम क्या कर सकते हैं ?हमने तो अपनी तरफ से रिश्ते को बनाये रखने में ,पूरा प्रयास किया। जब उस लड़की को इस रिश्ते को निबाहना ही नहीं है ,तब हम ही क्या जबरदस्ती करेंगे ? अब तुम ज्यादा परेशान मत हो ,अब तो ये सोचो !समय रहते ही उस चालबाज़ का पता चल गया ,अभी तो ज्यादा दिन भी नहीं हुए थे। ये सोचो !ज्यादा समय हो जाता या फिर बच्चे हो जाते ,उसके पश्चात ऐसा कुछ करती या रिश्ता टूटता ,तब ज्यादा तकलीफ़ होती। 'भगवान जो भी करता है ,अच्छे के लिए ही करता है। ''
पल्ल्वी ने भी आखिरी के शब्द सुन ही लिए और बोली -आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ?तब उन्होंने सम्पूर्ण जानकारी उसे भी दी ,जिसे सुनकर उसे भी क्रोध आ गया। और बोली -इसके माँ -बाप ने यही परवरिश उसे दी है ,जो अपनी बिगड़ी हुई ,लड़की हमारे मत्थे मढ़ दी।
आगे क्या हुआ उसने तलाक़ दिया या वापस आई या अपने प्रेमी से विवाह कर लिया ? जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी