कृति जो बिजेंद्र की पत्नी है ,या थी ,एक तरीक़े से उसका ये षड्यंत्र ही कह सकते हैं। जो उसने अपने पुराने दोस्त से मिलने के लिए रचाया। कितना बड़ा विश्वासघात किया ?इस परिवार के साथ...... पहले तो अपनी गेेरजिंम्मेदारना हरकतों से ,उन्हें बेहद परेशान किया और उसके पश्चात ,उसी परिवार पर ,अपनी गलतियों का ठीकरा फोड़कर ,चलती बनी। अब किसी को भी क्या कहें ?उसने कारण ही ऐसे पैदा करवा दिए ,उसके माता -पिता की नजर में ,उसके ससुराल वाले ही ग़लत थे। अधिक पैसे और माता -पिता की लापरवाही ,अत्यधिक छूट के कारण वो जिद्दी ,ख़र्चीली ,निबाह न करने वाली व मनमानी करने वाली महिला बन चुकी थी और इस बात का परिचय उसने ,अपनी मनमानी करके दिया।समझ नहीं आता -'[ये ज़िंदगी भी न क्या -क्या खेल दिखाती है ?कभी सीधी राह चलती ही नहीं।'' मैंने भी ,अपने बच्चे से कह तो दिया'' कि भगवान जो करता है ,अच्छे के लिए करता है। ''किन्तु उसकी जिंदगी में ,जो उसके विश्वास को चोट पहुंची है ,उसकी भरपाई कैसे होगी ?
जो जख्म उसके दिल ने खाये हैं ,उन्हें तो सिर्फ़ समय ही भर सकता था और भरा भी किन्तु उसके इस तरह परिवार टूटने का असर ,पूरे परिवार के साथ ,उसके छोटे भाई पर अत्यधिक पड़ा।धीरेन्द्र को बर्दाश्त नहीं हुआ। वो किसी भी लड़की को देखता ,तब उसे उसमें उसकी भाभी की बेवफाई नजर आती। हमने समझाया भी बहुत -''जो हो गया ,सो हो गया ,जीवन में उसी बात को लेकर बैठने से कोई लाभ नहीं। ''किन्तु वो तो उनके दिलों पर करारी चोट कर गयी थी। वो चाहते हुए भी, उसके धोखे को भूल नहीं पा रहे थे।बिजेंद्र ने तो अपने को ,अपने काम में व्यस्त कर लिया था। वो कृति के धोखे को ,अपने कार्य की व्यस्तता में भुला देना चाहता था किन्तु धीरेन्द्र के लिए तो , अब ये इज़्जत की ,मान -सम्मान की बात बन गयी थी। जब वो अपने कॉलिज में था ,उसके कॉलिज वालों ने उसके माता -पिता को बुलाया। उसके प्रधानाध्यापक की शिकायत थी -कि इसने कुछ लड़कों के साथ मार -पिटाई की।जब धीरेन्द्र से पूछा गया -कि उसने ऐसा क्यों किया ?
और क्या करता ? पुनीत हमारे घर के विषय में उल्टा -सीधा बोल रहा था। उसे भाई -भाभी के रिश्ते की जानकारी भी हो गयी और भाभी के दोस्त की भी जानकारी हो गयी। पुनीत का घर भी तो उसी कॉलोनी में था। जब वो अबकि दीपावली पर अपने घर आया था तब उसने ,भाभी को किसी के साथ घूमते देखा। वो सा..... ला.... उसका यार.... ही होगा, धीरेन्द्र आक्रोश में भरकर बोला। तब पुनीत अपने दोस्तों से कह रहा था -यार ! इनमें कोई दमखम नहीं ,वैसे ही हेकड़ी लिए फिरते हैं ,इनके घर की औरत को इनकी नजरों के सामने ही ,ग़ैर बिरादरी का आदमी आकर ले जाता है और ये हिजड़े कुछ नहीं कर पाये। धीरेन्द्र को पुनीत पर अत्यधिक क्रोध था। अबकि बार जब घर आया तो अपने भाई को ,इस तरह शांत अपने काम में व्यस्त देख ,अपने दर्द को छुपाते देखा। अपने भाई की ये हालत देखकर ,उसके दिल पर साँप लौटते थे। उसका सीना जलता था।
एक दिन इसी हालत में ,अपने दोस्तों के साथ था ,उन्होंने उसे ,इस दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए ,शराब को इसका बढ़िया इलाज़ बताया और उसे पिलाई भी !धीरेन्द्र को अच्छा भी लगा। अब तो अपनी मित्र मंडली से मिलने के लिए ,उसके कमरे के पीछे की तरफ एक दरवाजा खुलता था ,जो पीछे की सड़क पर चला जाता था। इस तरह ,वो माँ -बाप के बिना पता चले ही ,उन दोस्त मंडली में प्रतिदिन जाने लगा। अब वो भाई का दुःख तो भूल गया किन्तु प्रतिदिन शराब पीने लगा।
पापा जी ! पापा जी ! कहाँ खो गए ? मम्मी जी आपको इतनी देर से बुला रहीं हैं। अपने बेटे की आवाज़ सुनकर ,मोहनलाल जी वर्तमान में आ गए और झेंपकर बोले -वो ऐसे ही ,बहु को देखकर कुछ स्मरण हो आया था। इससे ज्यादा वो कुछ नहीं कह सके और अपनी पत्नी पल्ल्वी के पास चले गए।
आज तो धीरेन्द्र अपने दोस्तों के पास ,गया ही नहीं ,माँ को भी डर रहने लगा ,किसी तरह से अब तो हालात सुधरे हैं इसीलिए जब नीलिमा अंदर किसी कार्य के लिए गयी थी ,तभी बेटे को समझा दिया अब दोस्ती बाजी नहीं ,बाहर नहीं जाना ,बहु के साथ ही घर में रहना। धीरेन्द्र का गला तो सूख रहा था किन्तु उसने अपने को नियंत्रित किया और खाना खाकर ,नीलिमा के साथ ,अपने कमरे में चला गया। अभी नींद नही आ रही थी ,सोने का भी अभी समय नहीं हुआ।
तभी नीलिमा बोली -अभी तक आपने मुझे अपना शहर भी नहीं दिखाया। दोपहर जब मुँह दिखाई की रस्म हुई थी ,तब पड़ोसन आंटी कह रहीं थीं घूमने के लिए ,कहाँ जा रहे हो ?
क्या मतलब ! चलो !आज तुम्हें अपना शहर दिखाते हैं।
नीलिमा ने सोचा -''शायद धीरेन्द्र उसकी बातों का मर्म नहीं समझा और बोली -यहाँ घूमने की बात तो..... मैं कह रही हूँ किन्तु उन आंटी ने तो दूसरे शहर की बात कही थी।
नीलिमा की बात समझते हुए ,धीरेन्द्र मन ही मन मुस्कुराया और उसे छेड़ने के अंदाज में बोला -भई ,जब हमारा घर यहाँ है ,हम रहते यहाँ हैं तब हम किसी दूसरे शहर में क्यों जायेंगे ?
मेरा मतलब..... वो नहीं ,उन्होने कुछ और भी कहा था।
क्या कहा था ? वो हमें हमारे घर से क्यों निकालना चाहती हैं ?
आप समझते क्यों नहीं...... ?
क्या समझूँ ?
इतने भी भोले मत बनिये ,जैसे कुछ जानते ही नहीं ,अरे !जब नई -नई शादी होती है और बाहर घूमने जाते हैं। मेरे दीदी और जीजाजी भी गए थे।
कहाँ गए थे ? देहरादून ,मंसूरी और भी कई जगह गए थे।
ओह..... तो तुम ,अपने ''हनीमून 'की बात कर रही हो।
मेरा क्या...... ? इसमें दोनों पति -पत्नी ही साथ जाते हैं ,हमारा बोलिये !
इसमें क्या होता है ?धीरेन्द्र मस्ती करते हुए बोला।
मुझे क्या मालूम ?नीलिमा चिढ़कर बोली।
तब तक ,धीरेन्द्र भी तैयार हो गया था ,नीलिमा पहले से ही तैयार थी ,धीरेन्द्र ने नीलिमा का हाथ पकड़ा और अपने कमरे के पीछे का दरवाजा खोल दिया। दोनों बाहर सड़क पर आ गए। तब धीरेन्द्र बोला -चलो !अपना शहर ,दिखाते हैं ,उसने अपनी दुपहिया पहले से ही पीछे की तरफ खड़ी की हुई थी। वो उसे पहले से ही वहीँ खड़ी रखता है। अब तो नीलिमा आ गयी ,जब ये नहीं थी ,तब अपने दोस्तों से मिलने के लिए ,इसी दरवाज़े और इसी दुपहिया का उपयोग करता था। आज भी इनका उपयोग कर रहा है किन्तु आज नीलिमा को अपने शहर की रौशनी दिखाने के लिए बाहर निकला है। नीलिमा के लिए ,ये अलग ही रोमांच था। इस तरह घर के बड़ों को बिना बताये ,घर के पीछे के दरवाज़े से बाहर घूमने जाना। अपने घर में तो ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकती थी।
धीरेन्द्र ने ,अपनी मोटरसाइकिल कुछ दूरी तक ऐसे ही चलाई ,जब उसे लगा ,कि अब इसकी आवाज मम्मी -पापा के कानों तक नहीं पहुँचेगी ,तब उसे 'स्टार्ट ''किया और नीलिमा भी अब उस पर बैठ गयी। बाहर ठंडी हवा चल रही थी। मौसम सुहावना था और उनकी दुपहिया ,हरिद्वार की सड़कों पर बेफ़िक्री से ,दौड़ लगा रह थी। कुछ देर ,तक इसी तरह घूमते रहने के पश्चात ,धीरेन्द्र बोला -कुछ ख़रीददारी करनी है तो बताओ !
अभी तो कुछ नहीं ,जब आवश्यकता होगी ,तब बताऊँगी।
चलो तो कुछ खा लेते हैं ,कहकर उसने अपनी दुपहिया रोकी और दो आइसक्रीम लीं और दोनों पैदल ही चलने लगे। तब नीलिमा को पता चला कि वो लोग घूमते हुए, गंगा घाट पर आ गए हैं। तब धीरेन्द्र आइसक्रीम की ठंडक का एहसास लेते हुए और एक दुकड़ा मुँह में लेकर बोला -तो तुम क्या कह रही थीं ?हमें कहाँ घूमने जाना चाहिए ?
अब नीलिमा को समझ आ गया कि धीरेन्द्र उसे जानबूझकर छेड़ रहा है।
शरमाकर बोली -मुझे नहीं पता।
जब तक तुम नही बताओगी कि हमें कहाँ जाना चाहिए ? मुझे कैसे पता चलेगा ?तुम कहाँ जाना चाहती हो ?
नीलिमा ने तब तक अपनी आइसक्रीम समाप्त कर ली थी ,बोली -जब दीदी ,घूमने गयी थी ,तब मैंने भी सोचा था -कि मैं तो कश्मीर जाऊंगी।
धीरेन्द्र मुस्कुराया ,और बोला -तो हमारी धर्मपत्नी जी अपने हनीमून के लिए ''कश्मीर ''जाना चाहती हैं।
''गंगा तीरे दो पंछी ,
बहती ठंडी बयार।
बैठे ''हनीमून ''पर चर्चा करते। ''
ये क्या है ? नीलिमा ने मुँह बनाते हुए कहा।
भई ,मैं कोई कवि तो हूँ नहीं ,एक अभियंता हूँ ,किन्तु कविता बनाने का प्रयास तो कर ही सकता हूँ।
बहुत ही घटिया कवि हो ,तुम रहने ही ,दो !
अच्छा ! यदि तुम मेरी कविता की प्रशंसा करतीं तब मैं तुम्हें बताता -कि हम कहाँ जा रहे हैं ? धीरेन्द्र सोच रहा था ,नीलिमा पूछने के लिए वापस दौड़ती उसके क़रीब आएगी किन्तु वो तब भी आगे -आगे चलती रही। धीरेन्द्र ने उसे फिर से पुकारा -नीलिमा...... नीलिमा ! क्या तुम जानना नहीं चाहोगी ?हम कहाँ जा रहे हैं ?
आखिर वो दोनों "हनिमून" के लिए कहाँ जाना चाहते हैं ? जायेंगे भी या नहीं जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी