नीलिमा ,' स्विट्जरलैंड 'की वादियों में अपने को पाती है ,उसने तो कभी सपने में भी, ऐसा नहीं सोचा था कि वो कभी विदेश यात्रा करेगी। उसे तो लग रहा था -जैसे ये जीवन और उस जीवन में कोई समानता ही नहीं। वो तो जैसे स्वर्ग में आ गयी हो या फिर परीलोक में। उसकी किस्मत इस तरह बदल जाएगी ,मन ही मन धीरेन्द्र का आभार प्रकट करती -कि उसने उसे कहाँ से लाकर कहाँ तक पहुंचा दिया ? आज तक किसी रिश्तेदारी में तो क्या ? कोई सहेली भी विदेश ''हनीमून ''मनाने नहीं गयी होगी। ऊपर से इतना सुलझा हुआ पति ,स्वयं ही उसका और उसको क्या पहनना है ,क्या नहीं ?ख्याल रखता है। धीरेन्द्र पहले दिन उसे किसी झील के क़रीब ले गया किन्तु वहां का वातावरण देख ,वो अपने को नजरें झुकाने से रोक नहीं पाई और धीरेन्द्र के पीछे छुपी सी हो गयी।
धीरेन्द्र उसकी ये हरकत देखकर ,मुस्कुराया और बोला -यहाँ ये आम बात है।
नहीं ,मुझे शर्म आ रही है।
तुम्हे क्यों शर्म आने लगी ? कपड़े उन्होंने नहीं पहने ,शरमाना तो उन्हें चाहिए और तुम...... तुम तो पूरे कपड़ो में हो , हंसकर बोला -रात्रि को तो नहीं शरमा रहीं थीं ,क्यों ?उसने इस कदर नीलिमा को देखा।
नीलिमा के चेहरे पर लालिमा आ गयी ,ये लालिमा उसके अंदर की प्रसन्नता और शर्म की थी। कुछ देर वहाँ ठहरने के पश्चात ,वो आगे निकल जाते हैं और बाहर ही खाना खाते हैं ,वहाँ के बाजार भी घूमते हैं ,कुछ खरीददारी भी करते हैं।
अगले दिन वो शीघ्र ही ,निकलते हैं ,धीरेन्द्र जानकारी लेता हुआ ,आगे बढ़ रहा था और नीलिमा उसके पीछे -पीछे , वो एक पहाड़ी पर जाते हैं ,जिस पर वो एक ट्राली से जाते हैं। ट्राली में बैठकर धीरेन्द्र नीलिमा से पूछता है -तुम इस पहाड़ी पर बिना ट्राली के भी चढ़ सकती हो।
नीलिमा ने बाहर की तरफ झाँका, इतनी ऊंचाई से ड़र लग रहा था ,वो धीरेन्द्र के और करीब आ गयी और बोली -हाँ -हाँ क्यों नहीं ?जब तुम मेरे साथ हो ,तो मैं कहीं भी जा सकती हूँ। मैं तो ''एवरेस्ट ''पर भी चढ़ने की सोच रही थी किन्तु तुम मेरे पापा को तो जानते ही हो। अब तो ,जहाँ भी ले चलोगे ,वहीं साथ चलूँगी।
जी अच्छा ! कितनी चालाक हो ? जब मैं ,ट्राली से आराम से जा सकता हूँ ,तब मैं व्यर्थ में अपनी ताकत और समय क्यों जाया करूं ? जानती भी हो !ये कौन सी जगह है ?
कुछ तो बोल रहे थे ,''माउन्ट टिटलिस '' तुम क्या समझते हो ?मुझे अंग्रेजी नहीं आती ,मैं मानती हूँ ,कि बोलनी नहीं आती किन्तु समझ लेती हूँ। वो बोलना भी ,इसीलिए नहीं सीख पाई ,घर का वातावरण ऐसा नहीं था। कोशिश भी करो, तो कह देते थे ,ज्यादा अंग्रेजी की टाँग तोड़ रही है ,कहकर दादी तो डपट ही देती थी या फिर ज्यादा इतरा रही है। अब तुम्हारी संगत में आ गयी तो सब सीख़ जाऊँगी।
धीरेन्द्र ,नीलिमा की इन बातों से बोर हो गया था और बोला -अपने घर से बाहर निकलो और यहाँ के नजारों का मज़ा लो ! कहकर उसने नीलिमा को अपनी बाँहों में भींच लिया। वहाँ प्रकृति के नजारों का खूब आनंद उठाया। बर्फ़ का भी खूब आंनद उठाया ,उन्हें वापस आने में रात्रि हो गयी ,वापस आकर वो बहुत थक चुके थे , खाना खाकर सो गए।
अगले दिन ,वो दोनों अपने कमरे बाहर ही नहीं निकले ,दोनों आलस में पड़े थे ,पहले तो सोचा ,खाना कमरे में ही मंगा लेते हैं ,फिर दोनों ही तैयार हो ,खाना खाने आते हैं और पास में ,ऐसे ही घूमने निकल पड़ते हैं , वहाँ से भी कुछ सामान भी खरीदते हैं। अगले दिन ,हवाई जहाज़ से ,अपने देश में उतर जाते हैं। नीलिमा को तो लग रहा था ,जैसे वहीं बस जाये किन्तु वापस तो आना ही था। अपने देश आते ही उसे ,अपने घर का भी स्मरण हो आया। अब तो ,वो वापस आते समय मन ही मन अपने घर के विचारों में खो गयी। अब तो लग रहा था - किसी तरह घर पहुंचे और उसके पश्चात अपने घर.......
पापा भी न कैसे हैं ? न ही मम्मी को कुछ स्मरण है ,मुझे भेजकर ,एक बार भी बुलाने का नाम नहीं लिया ,एक बार भी फोन करके नहीं पूछा -कि हमारी बेटी कैसी है ?न ही घर बुलाया। आज घर जाकर अपनी मम्मी से लड़ूंगी। मन ही मन सोचकर गयी थी।
नीलिमा और धीरेन्द्र ख़ुशी -ख़ुशी अपने घर पहुंचे ,मम्मी -पापा ने देखा किन्तु बोले कुछ नहीं ,नीलिमा ने महसूस किया कि वो लोग खुश नहीं दिखाई दे रहे हैं किन्तु पूछने का भी साहस नहीं हुआ। अपने कमरे में चली गयी और धीरेन्द्र से बोली -मम्मी -पापा शायद ,किसी बात को लेकर नाराज़ हैं ,क्या तुमने कुछ कहा ?
नहीं ,मैंने तो कुछ नहीं कहा ,मुझे तो कुछ भी नहीं लगा ,तुम्हें ऐसे ही लगा होगा।
फिर भी कोई बात हो तो ,पता लगाओ ! क्या हुआ है ?
जी...... धर्मपत्नी साहिबा जी ,आपकी आज्ञा सर आँखों पर ,नीलिमा उसके इस तरह बात करने के लहज़े से मुस्कुरा दी।
अब तो बहुत दिन हो गए , यारों से मुलाकात नहीं हुई ,पी तो वहाँ भी थी किन्तु एहतियात से ,नीलिमा को भी पता नहीं चल पाया। नीलिमा ने धीरेन्द्र से अपने मन की बात कही और बोली -बहुत दिन हो गए ,मेरा अपनी मम्मी से मिलने का मन कर रहा है ,इतने दिन हो गए ,उन लोगों ने भी ,कोई फोन करके नहीं पूछा कि मैं कैसी हूँ ?जाकर मम्मी से लड़ूंगी ,मेरी शादी करके और मुझे विदा करके जैसे मुझे भूल ही गए। बिल्कुल ही निश्चिन्त हो गए।
तब धीरेन्द्र बोला - निश्चिन्त तो हो ही जाना था ,सही हाथों में जो दिया है।
मुझे ही पता है ,कैसे हाथों में दिया है ? मुझे ही पता है ,कितना तंग करते हो ?मुझे !नीलिमा शिकायत भरे लहज़े में ,मुस्कुराते हुए बोली।
अच्छा जी ,मैं तंग करता हूँ ,जो तंग होता है ,उसे इस तरह मुस्कुराते हुए मैंने नहीं देखा।
वो तो मेरे संस्कार हैं ,किसी भी परिस्थिति में ,मुस्कुराती रहती हूँ।
अच्छा जी ,यदि आपकी इजाजत हो तो ,आज अपने दोस्तों से मिल आऊँ ,बहुत दिन हो गए। वरना lpकहेंगे ,जब से विवाह हुआ है ,बीवी के पल्लू से ही बंधा है ,दोस्तों को तो जैसे ,भूल ही गया।
नीलिमा घूमकर आई थी ,अब तो उसे ऐसे लग रहा था जैसे जीवन की सम्पूर्ण ख़ुशियाँ उसके दामन में भरी हों ,उसे मम्मी के यहाँ जाने की तैयारी भी करनी थी इसीलिए उसने धीरेन्द्र को अपने दोस्तों के पास जाने की इजाज़त दे दी।
वो तो चला गया ,तब नीलिमा अपनी सास और ससुर के पास गयी और उनके पास जाकर , उनके लिए लाये उपहार ,उन्हें दिखाने लगी।
पल्ल्वी ने मुँह तो बनाया किन्तु मोहनलाल जी के इशारे पर ,चुपचाप वो उपहार ले लिए फिर बोलीं -बहु तुम लोग कहाँ गए थे ?
मम्मी जी ,क्या आपको भी इन्होंने बताया नहीं था ?मैं सोच रही थी ,मुझे ही नहीं बताया ,आप लोगों को भी नहीं बताया। हम लोग ''स्विट्जरलैंड ''गए थे।
दोनों पति -पत्नी ने एक -दूसरे की तरफ देखा ,मोहनलाल जी ने इशारे से पल्ल्वी को शांत रहने के लिए समझा दिया।
क्या आज भी धीरेंद्र दोस्तों के साथ, शराब् पीकर आयेगा या निलिमा की खातिर अपने को नियंत्रित कर लेगा। क्या उसने अपने माता पिता को अपने घूमने जाने की जगह को बताकर उसने अच्छा किया क्या निलिमा को अपने मायके जाने की इजाज़त मिलेगी? पढ़ते रहिये ऐसी भी ज़िंदगी