साधू बाबा की बातें सुनकर ,नीलिमा का मन थोड़ा उदास हो गया था किन्तु अपने मन को समझा रही थी। पता नहीं ,बाबा ने क्या सोचकर कहा होगा ?जो भी होगा ,देखा जायेगा। यही सोचकर अपने मन को बहलाने का प्रयत्न कर रही थी। पल्ल्वी तो जैसे नीलिमा के आने की प्रतीक्षा कर रही थी ,बोली -बहु अब तुम ,हनीमून ''भी मना आईं , अपने मायके भी घूम आईं ,अब थोड़ा अपनी घर -गृहस्थी पर भी ध्यान दो !अपनी ज़िम्मेदारियाँ संभाल लो।
जी ,मम्मीजी ! कहकर वो अपने कमरे में चली गयी।
इसे क्या हुआ ?उन्होंने धीरेन्द्र से पूछा -क्या तुम दोनों में कुछ हुआ है या तुमने कोई हरक़त की है।
अब भला मैं क्या करूंगा ?इसे ही मंदिर जाने का शौक चढ़ा था , मेरे मना करने के बावज़ूद ,किसी बाबा से मिली ,उसने न जाने इसके मन में क्या उलटा -सीधा वहम डाल दिया , उसी कारण से उसका मन उदास हो गया है।
अगले दिन कांता नहीं आई ,नीलिमा ने ही सारा खाना ,घर की सफाई इत्यादि कार्य किये। अभी तक उसने अपनी ज़िंदगी में एक साथ इतना कार्य नहीं किया था ,कभी करती भी तो माँ कह देती -तू पढ़ ले ,काम तो मैं कर लूँगी। आज पहले ही दिन इतना काम करना पड़ गया किन्तु कल तो कांता आ ही जाएगी ,यही सोचकर उसने आज का कार्य पूर्ण किया , शाम तक पूरी तरह थक चुकी थी। शाम को धीरेन्द्र ,खुश होता हुआ आया ,उसने आते ही नीलिमा को अपनी बांहों में ले लिया किन्तु आज नीलिमा ने वो उत्साह नहीं दिखाया। धीरेन्द्र का चेहरा बुझा सा हो गया और वो अपने कमरे में चला गया। नीलिमा उसके पीछे -पीछे पहुँची ,बोली -आज कांता नहीं आई। घर का सारा कार्य मैंने अकेली ने किया ,पहली बार इतना कार्य किया हालाँकि मेरे घर में कोई नौकर नहीं लगे किन्तु दादी और मम्मी ही सारा काम करती थीं ,जब चाची आ गयी ,तीनों मिलकर करती थीं।
धीरेन्द्र भी , उसकी बातों को समझते हुए बोला -कल तो वो आ ही जाएंगी ,कहकर उसे अपनी बांहों में भर लिया और बोला -आज तो अपनी बीवी का बदन दुःख रहा है ,मेरा फ़र्ज बनता है कि उसके हाथ -पैर दबाने चाहिए , कहकर उसे बिस्तर पर खींचकर ले गया और पहले उसके कंधे दबाये ,नीलिमा को विश्वास हो गया वो सच में ही मेरे कंधे दबा रहा है ,अभी उसने सोचा ही था ,तभी धीरेन्द्र उसके पैरों के करीब पहुंच गया और पैर दबाने का अभिनय करते -करते उसके हाथ ऊपर की ओर बढ़ने लगे। तब तक नीलिमा भी बेचैन होने लगी थी ,अब तो ,उसने धीरेन्द्र की किसी हरकत का विरोध नहीं किया ,तब तक धीरेन्द्र के हाथ भी उसके ब्लाऊज तक पहुंच चुके थे। एक पल को उसे धीरेन्द्र की हरकतों पर हँसी आई और उसने मुस्कुराकर धीरेन्द्र को अपनी बाँहों में भर ,सीने से सटा लिया। दोनों ही दिन भर के गिले -शिक़वे ,दिन भर की थकान को भूलकर ,अपनी नई दुनिया में विचरण करने लगे। जहाँ प्यार और समर्पण के सिवा कुछ नहीं था।
अगले दिन भी कांता नहीं आई ,आज तो कपड़े भी धोने पड़े ,मशीन में सभी परिवार के सदस्यों के कपड़े धुल रहे थे। तब पल्ल्वी बोली -नीलिमा तुम अपने कपड़े ,अपने हाथों से ही धो लो। उसे पता चला ,कि कांता कुछ दिनों की छुट्टी पर गयी है। धीरे -धीरे नीलिमा सब संभालने का प्रयास कर रही थी। एक दिन सब्ज़ी लेते समय ,खरबंदा जी की पत्नी बोली -सब्जियां तुम लेती हो ,सब नौकर कहाँ गए ?तुम्हारी सास और तुम्हारी जेठानी को तो कभी इस तरह कॉलोनी में सब्जियां खरीदते नहीं देखा ,सभी नोकरों का काम तुमसे ही कराते हैं ,अब तुम्हारी जेठानी आ रही है या तलाक़ लेगी।
आंटी जी मुझे नहीं मालूम ,न ही मैंने या उन्होंने इस विषय में कोई बात की ,ये भाईसाहब और उनकी पत्नी का मामला है ,उन्हें स्वयं ही निपटाने दीजिये । ये नौकरों वाला काम है तो सब्जी तो आप भी ले रहीं हैं ,ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है। कहकर वो अंदर आ गयी।
एक सप्ताह तक ऐसे ही कार्य करते रहने पर ,नीलिमा बोली -मेरी पढ़ाई भी नहीं हो पायेगी ,मुझे आगे पढ़ना है।
अब पढ़कर क्या करोगी ?अब अपना घर सम्भालो ,पढ़कर क्या नौकरी करनी है ?पल्ल्वी बोली।
शाम को जब धीरेन्द्र आया ,तब नीलिमा ने उससे आगे पढ़ाई की बात की ,उसने भी माँ की तरह बात दोहरा दी किन्तु नीलिमा नहीं मानी ,उसने पूछा -तुम नौकरी करते हो ,क्या इतनी भी कमाई नहीं हो रही जो एक नौकर और मेरी शिक्षा का भार उठा सके। पापा ने तुमसे विवाह करवाया है ,कुछ सोचकर ही तो करवाया होगा।
एक पल को धीरेन्द्र ने ,उसकी तरफ देखा ,फिर बोला -ठीक है , घर बैठे पढ़ाई तो कर ही सकती हो। पता नहीं ,कौन सी शक्ति उसे ये सब करने के लिए कह रही थी ? कांता भी आ गयी किन्तु पल्ल्वी अवश्य रुष्ट हो गयी। नीलिमा ने उसके क्रोध की परवाह नहीं की। अब वो ज़िंदगी में जिन चीजों से वंचित थी ,सब कर लेना चाहती थी ,सब सीखना चाहती थी।
एक दिन ,धीरेन्द्र से बोली -मुझे गाड़ी सीखनी है ,धीरेंद्र ने पहले तो मना किया- तुम नहीं सीख़ पाओगी ,क्यों नहीं सीख़ पाऊँगी आप सिखाएंगे तो सीख़ जाऊँगी। घर के पीछे का रास्ता बहुत काम आया ,दोनों रात्रि में नींद नहीं आती तो टहलने निकल जाते। रात्रि में छुप -छुपकर फ़िल्म देखने निकल जाते। ऐसे कार्य करने में बडा मजा आता। इतना तो नीलिमा जान ही गयी थी कि ये एक अभियंता है ,और इसकी ज़िंदगी में ,मैं अकेली ,इसकी कमाई पर मेरा भी अधिकार बनता है और वो उस अधिकार का अपने लिए बख़ूबी प्रयोग कर रही थी। उस अधिकार का दुरुपयोग न करके ,सदुपयोग कर रही थी। प्रातः काल उठकर ,धीरेन्द्र के साथ गाड़ी सीखती।
पल्ल्वी ने ,देखा तो विरोध किया ,ये सब क्या हो रहा है ?
उसका जबाब नीलिमा ने दिया -मम्मी जी गाड़ी सीखना कोई बुरी बात नहीं ,वो भी अपने पति से सीख़ रही हूँ। हर बार ड्राइवर की आवश्यकता न होगी।
पल्ल्वी ने मोहनलाल से शिकायत की देखा ,धीरे -धीरे इसके भी पर निकलने लगे ,अब गाडी सीखकर कहाँ जाएगी ?
सीखने दो ,कुछ पैसा तो नहीं जा रहा ,कुछ काम ही आ जायेगा ,ड्राइवर का खर्चा बचा ही लेगी। किट्टी में होटलों में जाकर ,पैसा तो बर्बाद नहीं कर रही। मौक़े पर उन्होंने ,उसे सुना भी दिया।
धीरेन्द्र ने एक सीधी -सच्ची लड़की सोचकर नीलिमा से विवाह किया था किन्तु वो स्वयं ऐसा नहीं था। वो तो तेज तर्रार लड़की पसंद करने वाला था।तभी तो उसे ,अपने कॉलिज की टीना पसंद थी। टीना देखने में जितनी सुंदर उसका रहन -सहन ,उसका स्टाइल,उसके डिज़ाइनर कपड़े ,उसका' हेयर स्टाइल ,उफ्फ..... उससे भी ज़्यादा मन को मोहने वाला था।जो भी देखता ,देखता ही रह जाता। धीरेन्द्र भी कुछ कम नहीं था किन्तु भाभी -भइया की ज़िंदगी की कड़वाहट से ,उस की ज़िंदगी पर भी असर पड़ा और वो अपने दोस्तों संग शराब पीने लगा किन्तु टीना के साथ की तमन्ना ने, उसे अपने आपको बदलने पर मजबूर कर दिया। अब उसे टीना से दोस्ती करनी थी उसका साथ पाने के लिए वो कुछ भी कर सकता था। पापा से नई मोटरसाइकिल ली ,और उनसे वायदा भी किया कि अब कभी शराब नहीं पियेगा।
उम्र भी ज्यादा नहीं थी ऊपर से टीना का प्रेम उसे बदलने के लिए मज़बूर कर रहा था। एक दिन जब अपनी दुपहिया से कॉलिज में प्रवेश किया तब टीना भी अपनी दोस्त से पूछे बिना नहीं रह सकी ,ये कौन हैं ?
तुझे पसंद आ रहा है ,तो तू ही उससे जाकर पूछ ले तान्या बोली।
क्यों तुझे जलन हो रही है ?टीना बोली।
क्यों ,मुझे क्यों जलन होने लगी ?मुझे नहीं पूछ रहा तो वो तुझे भी नहीं पूछ रहा ,क्या उसने तुझसे आकर प्यार का इजहार किया ,जो मुझसे नहीं किया।
तुम दोनों लड़ क्यों रही हो ?''एक अनार सौ बीमार '' ऐसी कोई विशेष बात तो उसमें मुझे नजर नहीं आ रही , आस्था बोली।
''बंदर क्या जाने ?अदरक का स्वाद '' तू अपने चश्मे का नंबर जाँच के लिए भेज दे ,उन तीनों की बातें एक लड़की और सुन रही थी बोली -जब तुम दोनों को ही ये लड़का पसंद है तो ,आज फैसला हो ही जाये ,तुम दोनों में से जो भी इसका ध्यान अपनी और आकर्षित कर लेगी और उसे अपना दोस्त बना लेगी ,वही जीतेगी। है मंजूर तो बताओ !
यदि उसे पहले से कोई और लड़की पसंद हो ,तब हम क्या करेंगे ?
नहीं ,उसे कोई लड़की पसंद ही है ,प्रेरणा बोली।
आप इतने विश्वास से कैसे कह सकती हैं ?
वो इसीलिए ,क्योंकि वो मेरी क्लास में ही है और उसका अभी तक किसी से कोई चक्कर नहीं है ,अब तो दोनों उसके समीप आ खड़ी हुईं ,उसके विषय में और कुछ बताओ !
अब ये तीनों सहेलियाँ क्या करने वाली हैं? ये टीना कौन है? तीनों सहेलियों में से कौन सी वह शर्त जीतेगी ? पढ़ते रहिये- ऐसी भी ज़िंदगी