टीना , बड़े झटके से उठी ,वो हाँफ रही थी जैसे बहुत दूर तक दौड़ी हो।आँखें खुलने के पश्चात भी ,वो अभी उसी सपने के विषय में सोच रही थी। उसे ये कोई सपना नहीं लग रहा ,उसे लग रहा था ,जैसे -वो किसी अनजान को जानने के लिए ,उसके पीछे ,दूर तक दौड़ी हो। वो उठकर पहले पानी पीती है और अपने सपने से बाहर आने का प्रयत्न करती है। ये क्या था ? वो घुड़सवार कौन था ? मैं उसके पीछे क्यों दौड़ रही थी ?सपने से बाहर आने के लिए वो अपने कमरे से बाहर आ गयी और अपनी मम्मी को बताने लगी -मम्मी !आज मैंने कुछ अजीब सपना देखा और अपने सपने के विषय में बताया।
पहले तो वो लापरवाही से बोलीं -कभी -कभी ऐसे सपने दिख जाते हैं जिनका कोई ओर -छोर नहीं होता ,और ऐसा लगता है ,जैसे हमने वो सपना जीया हो। कहने वाले तो ये भी कहते हैं -कि इन सपनों में ,भविष्य का कोई संदेश छिपा होता है किन्तु इस तरह के बेतुके सपनों को समझना ,हर किसी के बस में नहीं। जो हो रहा है ,या होगा वो हमारे हाथ में नहीं और न ही घबराने की आवश्यकता है।
टीना के मन में ,अपनी मम्मी के द्वारा कही ,ये बात अवश्य मन में घूमने लगी ,ऐसे सपनों में भविष्य का कोई संदेश छुपा होता है। वो क्या संदेश हो सकता है ?अपनी चाय लेकर अपने कमरे में आ गयी ,अब थोड़ा वो अपने सपने से बाहर आ चुकी थी किन्तु अंधकार में उजाले की एक किरण ढूँढ रही थी। किन्तु आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई अपने भविष्य को पढ़ या देख पाया हो। सोचते -सोचते टीना की नजरें सर की दी हुई पुस्तक पर जा टिकीं। उसने अब सम्पूर्ण कहानी को ध्यान से पढ़ा ,शकुंतला ने भी, कितने दुःख झेले ?माता -पिता का विछोह झेला ,पति से दूर हुई ,पति का वियोग झेला ,उनके स्मरण होने पर भी उससे मिल नहीं पाई।जब मिली भी तो ,एक बेटे की माँ बन चुकी थी ,जो बहुत ही वीर साहसी था। सुखद अंत ! शकुंतला के प्रेम और विश्वास ने उसका दिल मोह लिया और उसने सोचा -क्या वो उस प्यार की गहराई को अपने अभिनय में उतार पायेगी ?किसी भी इंसान से इतना प्रेम कैसे हो सकता है ? जो वर्तमान स्थिति को ही भूला दे ? वो शकुंतला के प्रेम की पराकाष्ठा तक पहुंचना चाहती थी।
अगले दिन जब वो कॉलिज गयी ,सर से पूछा -सर !मुझे लगता है ,कि मैं इस पात्र के साथ न्याय नहीं कर पाऊँगी ,फिर भी मैं प्रयत्न करुँगी ,मैंने कभी इस तरह का प्यार नहीं देखा।
इसमें देखना नहीं है ,महसूस करना है ,जो तुम्हारे अंदर है ,उसे बाहर लाना है। आहूजा सर ने समझाया।
वैसे एक बात पूछूं , दुष्यंत कौन बनेगा ? उसने अपने साथ वाले पात्र की कल्पना करते हुए पूछा।
धीरेन्द्र !शायद ,तुम उसे जानती हो। बहुत ही अच्छा कलाकार है ,राजा के रूप में साक्षात् दुष्यंत लग रहा है ,इसीलिए तो तुम्हें चुना ,तुम भी शकुंतला के रूप में ,मंच पर धमाल मचा दोगी ,बस थोड़ी मेहनत करनी होगी। अभी हम पात्रों का चुनाव कर रहे हैं ,परसों से 'रिहर्सल 'आरम्भ हो जाएगी।
नहीं सर ,कभी -कभार कॉलिज में देखा अवश्य है ,मैं अब परसों से यहीं आ जाऊँगी कहकर वो चली गयी। ये बात उसने आस्था को भी नहीं बताई ,कि वो परसों से अपने दुष्यंत के साथ 'रिहर्सल 'करने वाली है। उसे लगता था ,ये बात सुनकर आस्था प्रसन्न नहीं होगी।
आज वो पहले ही तेेयार होकर ,घूम रही है ,उसने आज नीले रंग के सूट पर सफेद जालीदार लम्बी जैकेट पहनी है और उस पर नुकीली ऊँची एड़ी की चप्पल ,अपने को आईने में निहारा , अपने चेहरे की हल्की सजावट की और पुनः अपने को आईने में निहारा। आज वो और उसका दुष्यंत एक -दूसरे के क़रीब होंगे। धीरेन्द्र भी आज अच्छे से तैयार होकर जाना चाहता है। उसने भी नीले रंग की ही जैकेट पहनी और अपने को कभी चश्मे में निहारता ,कभी बिना चश्मे के। अंत में ,वो बाहर निकल गया।
सर ने जब दोनों को एक -साथ देखा ,बोले -तुम कहीं किसी कार्यक्रम में जा रहे हो ,क्या ?
नहीं तो सर , यहीं तो आये हैं ? क्यों आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?
देखो !दोनों ने कैसे एक ही रंग के कपड़े पहने हैं ,नीले...... उनके कहने पर दोनों ने एक -दूसरे को देखा और अपने एक ही रंग के कपड़े देखकर हँसे बिना न रह सके।
तभी एक लड़का बोला -सर ,इनके तो अभी से कपड़ों की मैचिंग हो रही है ,रिहर्सल करते हुए विचार भी मिल जायेंगे और निभाते हुए ,कहीं......
उससे पहले ही सर बोले -अब दोनों ,अपने -अपने पात्र को समझ लो ,टीना ! तुमने वो कहानी पढ़ी ?
जी सर....
उत्तम ,अति उत्तम, अब ये अपने -अपने डायलॉग देख लो ,पढ़ लो ,आज थोड़ा सा करवाएंगे ,कल से घर से सब याद करके आना।
जी कहकर ,दोनों ने अपनी -अपनी स्क्रिप्ट ले ली। आज पहली बार दोनों एक -दूसे के क़रीब थे ,इससे पहले तो दूर से ही एक -दूसरे को निहारते थे।
हे प्रिये ! मैं तुम्हारी झील सी इन गहरी आँखों में खो जाना चाहता हूँ ,क्या तुम्हें मेरा ये प्रेमोपहार पसंद है ? शकुंतला की आँखों में झांकते हुए दुष्यंत कहता है।
मैं आज तन -मन से तुम्हारी हूँ ,मेरे पिता अभी यहाँ नहीं हैं ,इसीलिए हम गंधर्व विवाह कर एक -दूसरे के हो जाते हैं। इसी तरह के कुछ वाक्य कमरे में गूँज रहे थे। तब सर बोले -आओ अब थोड़ी रिहर्सल कर लेते हैं।
पहला दृश्य होगा ,जब दुष्यंत ऋषि के आश्रम में आता है -तभी धीरेन्द्र आता है , इस आश्रम में कोई है ,जो इस पथिक की प्यास बुझा सके। तभी शकुंतला आती है और राजा को देखकर ,कहती है - राजन !मैं कण्व ऋषि की पुत्री शकुंतला ,आपका इस आश्रम में स्वागत करती हूँ।
तभी सभी तालियॉँ बजाते हैं ,और सर कहते हैं -अभी तो तुमने ये डायलॉग याद किये हैं किन्तु इन्हें महसूस करना है ,तुम्हे लगना चाहिए कि तुम एक राजा हो ,वो भी सफ़र से थके हुए और शकुंतला अत्यधिक सुंदर होने के साथ -साथ विनम्र स्वभाव की शर्मीली लड़की है ,उसे अपने रूप पर तनिक भी अहंकार नहीं है। उसे अतिथि का स्वागत करना भली -भाँति आता है। डायलॉग से ज्यादा ,अपने हाव -भाव और व्यवहार पर ध्यान देना होगा।
जी..... कहकर दोनों एक दूसरे को देखते हैं। क़रीब तो दोनों पहले ही आना चाहते थे किन्तु अब तो उन्हें मौक़ा भी मिल गया।
प्रिय पाठकों !आपका ह्रदय से आभार ,आपने मेरी रचना को समय दिया किन्तु समीक्षा भी दीजिये ताकि मैं कुछ और बेहतर लिख सकूँ, अपने सुझाव भी। इसी तरह पढ़ते और प्रोत्साहित करते रहिये।