समझ नहीं आता ,ज़िंदगी ! नीलिमा के जीवन में क्या -क्या रंग भर रही है ?ये उसके लिए अच्छा है या बुरा। देखने में तो सब अच्छा ही लग रहा है, किन्तु कब क्या होने वाला है ?कोई नहीं जानता ,जो खबर उसके ससुराल वालों के लिए ख़ुशख़बरी है ,उनके चेहरे पर प्रसन्नता ले आई ,उसी खबर को सुनकर ,नीलिमा का चेहरा उतर गया। खुशी के कारण ,धीरेन्द्र ने नीलिमा को ,अपने माता -पिता के सामने ही ,अपनी गोद में उठा लिया। नीलिमा ने उससे ,अपने आप को छुड़ाने का प्रयत्न किया किन्तु वो उसे ऐसे ही उठाकर अपने कमरे में ले गया और उसे चूमने लगा। उसकी ख़ुशी देखकर ,नीलिमा का साहस नहीं हुआ ,कि वो धीरेन्द्र के सामने अपनी बात रखे। वो अभी माँ नहीं बनना चाहती थी। उसकी पढ़ाई भी अधूरी रह जाएगी ,कैसे कहे ?पहले उसे अपनी पढ़ाई पूरी करनी है।बहुत देर तक सोचने के पश्चात , तब धीरे से बोली - कुछ जल्दी नहीं है।
न समझते हुए ,धीरेन्द्र बोला - क्या जल्दी नहीं है ?
ये बच्चा ! अभी मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई।
अरे यार..... पढ़कर क्या करना है ? तुम्हें कोई नौकरी तो करनी नहीं है। अब तुम मेरे नन्हें -मुन्ने को पालना और पढ़ाई तो तुम अभी भी कर सकती हो। वो क्या अभी आ रहा है ?उसके आने में अभी समय है।
धीरेन्द्र की बात ,नीलिमा को सही लगी और उसने फिर से अपने ऊपर और घर में ध्यान देना आरम्भ कर दिया। डॉक्टरनी ने जो भी बताया ,वो ही उसने किया। धीरेन्द्र तो इतना खुश था ,कुछ न कुछ घर में लेकर आ जाता ,अब तो उसने नीलिमा की सुविधा के लिए खाना बनाने वाली भी लगा ली। कोई भी बात होती वो स्वयं कर पूर्ण कर देता। डॉक्टरनी ने धीरेन्द्र से ,नीलिमा से कुछ दिनों की दूरी बनाये रखने के लिए कहा ,तब वो अपने पुराने दोस्तों संग अपनी ख़ुशियाँ बाँटने चला जाता किन्तु दोस्त भी उसकी खुशियों में ''चार -चाँद लगाने ''के लिए ,उसे खूब पिलाते ,अच्छी सेवा हो जाती। घर आकर सो जाता।
नीलिमा कहने लगी आजकल कहाँ चले जाते हो ? ऐसे समय में मेरे साथ होना चाहिए और तुम मुझसे दूर भाग रहे हो।
क्या करूं? तुमसे दूर रहने के लिए ही तो कहा है ,तुम तो दिन पर दिन इतनी निखरती जा रही हो ,तुम्हें देख मन मचलने लगता है ,अब इस मचलते हुए मन को ,कैसे धैर्य बधाऊँ ? बस इस वक़्त तो दोस्त ही सहारा हैं।
आज भी रात्रि के आठ बजे हैं ,दोस्तों की महफ़िल जमी है ,यार....... तेरी किस्मत तो भगवान ने सोने की कलम से लिखी है -हमेशा चमकती ही रहती है ,पहले तो कॉलिज की सबसे सुंदर लड़की से ,मुहब्बत हो गयी , उससे मज़े और अब इतनी कमउम्र की और सुंदर पत्नी मिल गयी सुरेंद्र ने कहा।
तुझे क्यों जलन हो रही है ? दूर भी तो मैं ही रह रहा हूँ ,ये तो अपनी -अपनी किस्मत की बात है ख़ुश होते हुए धीरेन्द्र बोला। यार.... कह तो तुम सही रहे हो। टीना भी बहुत हॉट थी और ये मेरी बीवी....... तब तक धीरेंद्र के गले में तो -तीन गिलास उतर चुके थे , तब अपने दोस्तों से बोला -मैंने इसे कभी प्यार नहीं किया किन्तु आज मैं उसके द्वारा ही ,बच्चे का बाप बनने वाला हूँ। मेरी मोहब्ब्त तो टीना ही थी किन्तु उसने मेरा साथ छोड़ दिया। मैंने भी देख लो ,सालों..... तुम्हारे चक्कर में, मोहब्बत छोड़ दी किन्तु दोस्तों का साथ नहीं छोड़ा। नशा इसमें भी बहुत है ,चढ़ती भी तेजी से है ,और अब तो उसका रूप और भी निखरता जा रहा है ,जबसे उसके माँ बनने का पता चला है। सा..... ला..... आखें चुँधियाने लगती हैं। जब उसे देखता हूँ ,बिन पिए ही नशा कर देती है।
तुम्हें अपनी पत्नी के विषय में ,ऐसे वचन नहीं कहने चाहियें ,वो तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली है , तपन ने उसे समझाते हुए कहा।
सुरेंद्र मज़े लेते हुए बोला -कहने दे ,अपने दोस्तों से नहीं कहेगा तो और किससे कहेगा ?जिसकी पत्नी इतनी हॉट हो और उसे उससे दूर रहना पड़ जाये, वो तो पियेगा ही ,और सुनाओ !
मैं तो सुना ही रहा हूँ किन्तु तेरी पत्नी भी कम हॉट नहीं ,उस दिन जब मैं तुझसे मिलने गया था और वो उस नाइटी में ,यार..... क्या चीज़ लग रही थी ? धीरेन्द्र को बहुत चढ़ गयी थी ,उससे बोला नहीं जा रहा था ,तब उसने हाथ के इशारे से उसकी पत्नी की बनावट की चर्चा सबके सामने की। सुरेंद्र को इसमें अपनी बेइज्जती लगी और बोला -इसे अब ज्यादा चढ़ गयी है ,अब तू अपने घर जा।
नहीं..... मुझे नहीं चढ़ी ,मेरी बीवी के किस्से तो मजे लेकर सुन रहा था ,जब अपनी पर बात आई तो मुझे चढ़ गयी कहकर उसने एक गिलास और पी लिया।
सालों..... मेरे किस्से तो मजे लेकर सुनते हो , तुम लोगों के कारण ही तो टीना मुझे छोड़कर गयी। तुम जो मुझे पिलाते हो। सालों...... क्या मैं नहीं जानता ?तुम लोगों की नजर मेरी टीना पर थी। पता नहीं ,मेरी जान कहाँ चली गयी ? कहकर उसके चेहरे पर दुःख के बादल छा गए किन्तु सुरेंद्र तो जैसे तिलमिला रहा था फिर भी उसने कुछ नहीं कहा। धीरेन्द्र अपने मन की भड़ास निकालकर बोला -चलो ,चलता हूँ ,वो मेरी प्रतीक्षा में होगी। जैसे ही उठा ,सम्भल नहीं पाया फिर से वहीं गिर गया।
आज इसने कुछ ज्यादा ही पी ली ,आज इसे इसके घर छोड़कर आना ही होगा। प्रतीक बोला -यार सुरेंद्र !तेरे घर के रास्ते में ही तो, इसका घर पड़ता है ,इसे भी छोड़ देना।
यार ! ये रास्ते में कुछ उल्टा -सीधा बोला -तो मुझसे पिट जरूर जायेगा ,अरे कुछ नहीं तू नाराज न हो। समय पड़ने पर यही काम आता है ,कहकर प्रतीक ने उसकी तरफ आँख मारी। सुरेंद्र उसे लेकर उसके घर चल दिया। माँ -बाप तो सो चुके थे ,नीलिमा ने ही ,दरवाज़ा खोला। धीरेन्द्र होश में होता तो पीछे के दरवाजे से अंदर आ जाता किन्तु आज तो उसने कुछ ज्यादा ही पी ली है। सुरेंद्र उसे छोड़ने गया ,नीलिमा को देखकर उसकी नियत बदल गयी। नीलिमा क्या गजब का रूप ले रही थी ,एक बार शादी में उसे देखा था किन्तु आज....... या फिर धीरेन्द्र ने उसे इस तरह प्रस्तुत किया कि सुरेंद्र की नजरों में वहशीपन आ गया।
नीलिमा को देखकर बोला -भाभीजी !आप इस हालत में क्यों आईं ? क्या ,घर में और कोई नहीं है ? आप इस हालत में इसे कैसे संभालेंगी ? चलिए ! मैं लेकर चलता हूँ ,कहकर उसने नीलिमा का हाथ पकड़ने का प्रयत्न किया किन्तु नीलिमा उससे हाथ छुड़ाकर बोली -जब आप इतनी मदद कर ही रहे हैं तो इन्हें कमरे तक छोड़ दीजिये और स्वयं पीछे -पीछे चलने लगी। नीलिमा की इस हरकत पर सुरेंद्र तिलमिला गया। साली...... सारा भार मेरे ऊपर ही छोड़ दिया। खूबसूरत होने के साथ तेज़ भी है और उसके अलग ही विचारों में खो गया ,जिसे वो किसी से कह नहीं सकता ,कह देता तो इंसानियत भी शर्मसार हो जाती। कमरे में पहुंचकर ,धीरेंद्र को उसके बिस्तर पर लिटाया और उस कमरे को नजरभर देखा और मुस्कुराकर बाहर आ गया। वो सोच रहा था - कि ये मुझे चाय के लिए रोकेगी किन्तु नीलिमा ने तो धन्यवाद कहकर ,उसे बाहर छोड़कर कुण्डी लगा ली। वो ठगा सा उस मकान को देख रहा था। कुछ देर पश्चात वो भी चला गया।
अभी नीलिमा भी सोने ही जा रही थी ,तभी धीरेन्द्र को उल्टी होने लगी और वो बिस्तर पर ही वमन करने लगा ,कुछ देर पश्चात ,वो थोड़ा ठीक हुआ और सो गया।उससे पहले ही नीलिमा ने चादर बदल दी थी। नीलिमा आज क्रोध में आ गयी और बोली -तुम्हें अपनी जिम्मेदारी का तनिक भी एहसास नहीं ,ऐसे समय में तुम्हें मेरी देखभाल करनी चाहिए और तुम मेरे लिए काम बढ़ा रहे हो। कम पीते थे ,मैंने कुछ नहीं कहा किन्तु आज तो तुमने सारी हदें पार कर दीं। उसके साथ न सोकर ,सोफे पर जाकर सो गयी।
सुबह जब नीलिमा के ससुर उठे ,बहु को सोफे पर सोते देखकर ,कुछ परेशान हुए किन्तु उसे उठाया नहीं ,पता नहीं कब सोई हो ? ये आज यहाँ कैसे सोइ है ? क्या रात्रि में धीरेन्द्र नहीं आया ?यह जानने के लिए , तब वो बेटे को देखने उसके कमरे में गए ,वहां देखा -तो वो भी बेसुध पड़ा था। उन्हें लगा -शायद ये फिर से पीने लगा ,मन ही मन बुदबुदाए ,ये नहीं सुधरेगा और रसोई घर में जाकर चुपचाप चाय बनाने लगे।तब नीलिमा भी आहट सुनकर उठ गयी और रसोईघर की तरफ चल दी।
पापा जी !लाइए ! मैं चाय बनाती हूँ ,आज उठने में थोड़ी देरी हो गयी।
नहीं चाय तो मैंने बना ली ,किन्तु आज तुम सोफे पर कैसे सो रही हो ?
वो पापा जी ,रात्रि को इनकी तबियत ख़राब हो गयी थी ,मैंने चादर बदली और वहां से सफाई की ,मुझे नींद भी जोरों की आ रही थी ,यहीं सो गयी।
मोहनलाल जी समझ रहे थे कि बहु ने बात बदल दी फिर भी वो मन ही मन ख़ुश भी हुए अपने पति की कमियों को छिपा रही है ,इसे संभाल भी लेगी बोले -बेटा ,तुम इसे बाहर जाने ही क्यों देती हो ? अपने किसी न किसी काम में लगाए रखा करो। इसके साथ घूमने जाया करो ,बाक़ी तुम समझदार हो।
जी पापा जी कहकर ,उसके लिए चाय लेकर चल दी ,तब ससुर ने उसे रोका और उसे नीबू पानी दिया। पहले इसे पिलाना।
क्या धीरेंद्र को अपनी गलती का एहसास होगा? क्या उसके व्यवहार में कोई बदलाव आयेगा? क्या निलिमा अपने ससुर द्वारा सुझाई गयी बातों पर अमल करेगी ?जानने के लिए पढ़ते रहिये ऐसी भी ज़िंदगी