रात भर धीरेन्द्र की तबियत बिगड़ी रही ,यहाँ तक कि धीरेन्द्र ने वमन कर ,चादर भी खराब कर दी। ऐसा नहीं कि नीलिमा उसे छोड़ कर भाग गयी। उसने उस समय उसकी सेवा की किन्तु अब उसे धीरेंद्र पर क्रोध भी बहुत आया ,एक तो नीलिमा की ऐसी हालत और ऊपर से ये सब..... क्रोधावेग में वो बाहर सोफे पर सो गयी। कुछ समझ नहीं आ रहा ,ऐसी हालत में करे भी तो क्या ?सुबह ही उसके ससुर ने उसे चाय की जगह नीबू -पानी थमा दिया। उसे तो जानकारी भी नहीं थी कि ऐसे हालात में उसे क्या करना है ?
जब वो धीरेन्द्र के पास पहुंची ,धीरेन्द्र तब भी सोया हुआ था। सोते हुए वो ,कितना मासूम सा लग रहा था ? ,कुछ देर तक नीलिमा खड़े हुए ,उसे यूँ ही देखती रही फिर उसमें एक जिम्मेदार पत्नी का भाव आया और उसने धीरेन्द्र को उठाने का प्रयत्न किया। धीरेन्द्र ने आँखें मली और अपने सामने नीलिमा को खड़े पाया उसे लगा -जैसे वो कोई सपना देख रहा है और उसने नीलिमा के हाथ से गिलास लिया और एक तरफ रख दिया। उस पर नींद और नशे दोनों की ख़ुमारी छाई थी फिर भी उसने नीलिमा का हाथ पकड़ अपने ऊपर गिरा लिया। वो रुको ,सुनो ,ठहरो ! कहती रही किन्तु धीरेन्द्र ने एक न सुनी और उसके अधरों पर अपने प्यासे अधर रख दिए कुछ देर तक तो नीलिमा ना ,नुकुर करती रही किन्तु जब से उसके गर्भ ठहरा है ,वो भी अपने तन में अजब सी कसमसाहट महसूस कर रही थी। धीरेन्द्र के प्यार की गर्मी से वो भी पिघलने लगी। धीरेन्द्र की तड़फड़ाहट को वो भी समझ रही थी और उसने धीरेन्द्र का साथ देना आरम्भ कर दिया। उसे भी एक अलग ही अनुभूति होने लगी। गर्भधारण के पश्चात ,उसका पहला समागम था किन्तु वो तो जैसे सब कुछ भुला देना चाहती थी। सब कुछ भुला ,धीरेन्द्र की बाँहों में समा गयी। दोनों प्यार की गहराइयों में डूबते चले गए ,धीरेन्द्र की तो जैसे जन्मों की प्यास आज तृप्त हो रही थी।
धीरेन्द्र उसके कोमल अंगों से खेलते हुए आगे बढ़ रहा था और नीलिमा भी प्यार की स्वर्णिम दुनिया की सैर कर रही थी। जो इस दुनिया से बेखबर ,अपने द्वारा बसाई दूसरी दूनिया के प्रेम के तालाब में गोते लगा रहे थे। जब दोनों तृप्त हुए ,अपनी दुनिया में लौट आये।
नीलिमा धीरेन्द्र की बाँहों का तकिया बना लेटी रही ,बोली -''अब बेबी के पापा को जितना भी ध्यान अपनी तरफ रखवाना है ,रखवा लें किन्तु उसके आने के पश्चात तो ,मेरी जिम्मेदारियां बढ़ जाएँगीं। हमारी इस प्रेम की दुनिया में हम मिलकर उसका स्वागत करेंगे। अच्छा ये बताओ ! हमारी इस दुनिया में नए मेहमान का आगमन होने वाला है। आपने उसके स्वागत के लिए क्या सोचा है ?
सोचना क्या है ? मैं तो उसकी माँ की सेवा में रहता हूँ ,उसकी भी सेवा करूंगा।
अच्छा जी !बड़े आये सेवा वाले ,सेवा करते हो या करवाते हो कहकर नीलिमा उठी ,उसे नीबू -पानी दिया जब वो नीबू पानी पी चुका तब धीरेन्द्र को तौलिया पकड़ाकर स्नानागार की ओर धकेल दिया। अपनी दुनिया में आते ही ,नीलिमा को डॉक्टरनी की दी हिदायतें स्मरण हो आईं। प्रेम की दुनिया से बाहर निकल ,क्रोध की तिलमिलाहट भी महसूस होने लगी। वो क्षणिक प्रेम , बाद में घबराहट में बदल गया। धीरेन्द्र जब नहाकर निकला उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी किन्तु नीलिमा के मन में घबराहट थी ।
धीरेन्द्र के जाने के पश्चात नीलिमा ने अपनी डॉक्टर को फोन लगाया और उससे समय ले लिया। डॉक्टरनी ने उसकी घबराहट दूर की और उसे कुछ बातें समझाई। शाम को जब धीरेन्द्र आया तब नीलिमा ने सम्पूर्ण बातें बताईं ,जब तक वो खाना खाकर आया ,तभी नीलिमा उसे तैयार मिली और बोली -चलो !
कहाँ ?उसे लेकर पापा के कहे अनुसार वो बाहर घूमने चली गयी। उसने कहा भी -मैं जरा अपने दोस्तों को फ़ोन कर लूँ किन्तु नीलिमा ने मौक़ा नहीं दिया। समय भी न आदमी को क्या -क्या सीखा देता है ? और ये नारी जाति है ही इतनी मजबूत ,जो लड़की अपने घर से बाहर जाने से भी घबराती थी। आज वो माँ बनने जा रही है। पति का भी ख़्याल रख रही है ,ऐसी हालत में ,उसे तो कोई क्या संभालेगा ?वो तो स्वयं ही एक मजबूत स्तम्भ बनकर अपने पति के साथ खड़ी है। समय और हालात के साथ बदलती और मजबूत होती जाती है। वह कोमलांगी मन में दृढ़ विश्वास लिए आगे बढ़ रही है।
नौ माह पश्चात उसने अपने प्यार के अंश को जन्म दिया ,जो एक कोमलांगों से सुसज्जित ,श्वेत वर्ण में दूधिया कोमल ,रुई के फाहे की तरह थी। उसे देख नीलिमा की आँखों में ,अश्रु आ गए ,उसे मातृत्व का एहसास हो रहा था। उसकी नन्ही परी अपनी बंद पलकों में ,न जाने कितने ढ़ेर सारे स्वप्न लेकर आई थी। नीलिमा अपने आप से वायदा कर रही थी। इसे वो सब सुख देगी ,जो इसके लिए सही है ,अपनी बेटी को इस क़ाबिल बनायेगी कि ये किसी को सहारा देने लायक बन सके। वो अक्सर अपनी बेटी से बातें करती रहती अब तो उसे एक खिलौना मिल गया था। वो भी प्यारा सा जीता -जागता। इतनी ख़ुशी में अपनी ममता में नीलिमा ने धीरेन्द्र पर ध्यान दिया ही नहीं कि वो भी बाप बनकर खुश है या नहीं।
उसने अपनी बेटी का नाम कल्पना रखा ,जो उसके ख्वाबों जैसी ही थी ,कभी -कभी बेटी कल्पना के साथ नीलिमा धीरेन्द्र से खेलने के लिए कहती किन्तु वो कुछ भी बहाना बना कभी अपने पिता को उसे थमा देता। कभी माँ को।
एक दिन नीलिमा ने पूछा भी -''वो मेरी ही नहीं ,तुम्हारी बेटी भी है। ''
अब तो धीरेन्द्र नीलिमा से कुछ अधिक ही अपेक्षा रखने लगा। उसे तो जैसे अपनी बेटी की कोई परवाह नहीं ,वरन उसे कभी -कभी अपनी बेटी पर ही क्रोध आ जाता ,ऐसा लगता जैसे -वो उसकी बेटी नहीं दुश्मन है और उसे अपने पापा -मम्मी के पास छोड़ स्वयं नीलिमा के अधिक करीब जाने का प्रयत्न करता जिसका परिणाम बेटी के छह माह के होते ही वो पुनः गर्भवती हो गयी किन्तु अब तो उसे काफी जानकारी हो गयी थी इसीलिए डॉक्टर से मिली और अपना गर्भपात करा लिया।
निलिमा ने अपनी जेठानी की तरह ही अपना गर्भपात करा लिया या समय रहते बच गयी आखिर धीरेंद्र अपनी बेटी के साथ क्यों नही खेलता था। क्या उनकी बेटी उनके रिश्ते के बीच आ गयी? या निलिमा की लापरवाही उसे बर्दाशत नहीं हो रही जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी