ज़िंदगी भी ,क्या -क्या खेल दिखाती है ? आज माँ की वो लाड़ली बेटी दो बच्चियों की माँ बन चुकी है। अपने घर की देखभाल के साथ -साथ उन बच्चियों को भी पाल रही है। वो अपनी ज़िम्मेदारियों के चलते ,अपनी शिक्षा , अपना आगे बढ़ने का सपना ,जैसे सब भूल चुकी है। ये माँ की ममता ही तो है ,जो अपनी बेटियों के लिए ,अपना समय उन पर न्यौछावर करती है। किन्तु धीरेन्द्र पर कोई असर नहीं ,उसे तो सिर्फ़ नीलिमा से मतलब है। जब भी आता ,न कहीं बाहर घूमने जाना , न ही अपनी बेटियों के भी साथ खेलना। न ही निलिमा की किसी कार्य में सहायता करता। बाहर गया तो पीकर आयेगा । नीलिमा ने उसे बहुत समझाया ,तुम इस तरह बेटियों के सामने पीकर आये तो....... इन पर क्या असर होगा ?
ठीक है ,मैं नहीं पियूँगा किन्तु एक शर्त है -''तुम रात्रि में हमेशा यानि रोज़ाना मेरे साथ होंगी। ''मुझे प्रतिदिन ''सैक्स ''चाहिए। तुम मुझे प्रतिदिन अपने पास होनी चाहिये । निलिमा ने सोचा- धीरेंद्र अपने को अकेला महसूस करता होगा । इसलिये ऐसा कह रहा है
मुस्कुराकर नीलिमा बोली -ठीक है। मैं तो हमेशा से ही तुम्हारे पास और साथ हूँ ।उस समय वो उस शर्त का अर्थ नहीं समझ पाई ,कि ये बात उसे कितनी भारी पड़ने वाली है ? सोचा ''ये मज़ाक कर रहा होगा। अब तो दोनों बेटियाँ ,घर का कार्य ,इस बीच दो -तीन बार गर्भपात भी हुआ। उसका शरीर थकने लगा। धीरेन्द्र अपनी शर्त के अनुसार ,उसके समीप आया ,नीलिमा उसे देखकर बोली -अभी बच्चियों को सुलाकर आती हूँ ,कहकर उन बच्चियों के काम में लग गयी। दिनभर की थकी थी ,उन्हें सुलाते -सुलाते ,न जाने कब नींद आ गयी ?जब उसकी आँख खुली तो रात्रि के बारह बज चुके थे। वो हड़बड़ाकर उठी और धीरेन्द्र के पास गयी ,उसने तो सोचा था -सो गया होगा ,किन्तु वो तो बैठा ,शराब के घूँट भर रहा था।वो तो ये सोचकर आई थी ,अब तक तो मेरी प्रतीक्षा करके सो गया होगा किन्तु वो तो नशे में झूम रहा था। नीलिमा ने शिकायत भरे लहज़े में कहा -तुमने अपनी शर्त तोड़ दी।
बच्चियों को सुलाकर ही तो आती मैने तो सोचा था, तुम सो गये होंगे
कैसे सो जाता ? तुम्हारी प्रतिक्षा में जो था ।
उसे शराबी पीते देख निलिमा ने पूछा तुमने पीने के लिए मना किया था तब ये क्यों पी रहे हो ?
नहीं ,मेरी जान ! ये तो तुम्हारे इंतजार का परिणाम है- जितनी देर इंतजार करवाओगी ,उतनी ही तुम्हें सजा मिलेगी। कहकर उसने गिलास एक तरफ रखा और नीलिमा की तरफ बढ़ा। धीरेन्द्र के अब उसे नए -नए रूप देखने को मिल रहे थे। कभी -कभी उसे ध्यान से देखती और जानने का प्रयत्न करती ,क्या ये वही आदमी है ? जिसको लेकर मैंने सुंदर सपने सजाये थे। इंसान कैसे, इतना बदल सकता है ? धीरेन्द्र को किसी भी बात की कोई परवाह नहीं थी। वो तो उसके वस्त्र उतारने में व्यस्त था। आज नीलिमा उसके सामने एक जीवित पुतली की तरह खड़ी थी ,वो समझने का प्रयत्न कर रही थी -क्या सही है ,क्या गलत ? अपने इस हाल पर रोये या प्रसन्न हो। वो दिन भर के कार्यों से थकी थी किन्तु धीरेन्द्र को तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी। उसने तो उसके अंगों से खेलना आरम्भ कर दिया था ,उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नीलिमा क्या सोचती है ?उसकी इच्छा -अनिच्छा उसके लिए कोई मायने नहीं रखती।
नीलिमा को आज किसी नई दुनिया के ही दर्शन हो रहे थे ,जिस दुनिया की उसने कल्पना भी नहीं की थी कल्पना तो उसने ऐसी दुनिया की भी नहीं की थी ,जिसको उसने जिया किन्तु उस दुनिया में उसकी ख़ुशी नहीं थी तो परेशानी भी नहीं थी। उस दुनिया में अपने आप को ढूंढ़ रही थी किन्तु अब वही दुनिया उसे बेगानी नजर आ रही थी। देखने में सब अपने ही हैं किन्तु वही अपने ,उसे बेगानों जैसा व्यवहार करते नजर आ रहे हैं। आज अपने कपड़े उतरने पर ,जो रोमांच जो ख़ुशी का एहसास होता था ,आज वो नहीं ,वरन उसे लग रहा था जैसे - शर्त की आड़ में उसका बलात्कार हो रहा है।
जो घर उसे स्वर्ग सा लगता था ,आज उसी घर में उसे अंगारे बरसते से नजर आ रहे थे। किसलिए मैं ये सब कर रही हूँ और किसके लिए ,ये बच्चियाँ क्या मेरी ही हैं ?अभी वो ये सब सोच ही रही थी ,तभी एक झटका सा उसे लगा। तब वो अपनी सोच से बाहर आई ,तब धीरेन्द्र बुदबुदाता नजर आया। किसी लाश तरह पड़ी है ,कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही। वो जानता नहीं ,नीलिमा अंदर से अपने आप से लड़ने में ही ,अपनी शक्ति गंवा रही है। प्यार और समर्पण की भावनाएं ,वो कहाँ से लाएं ? समर्पण का भाव तो थकावट ले गयी। प्यार को वो ढूंढने का प्रयास कर रही है ,क्या कहीं ,दिल के किसी कोने में तनिक सा छुपा बैठा हो ? वो ही उसे आगे बढ़ने के लिए ,उत्साहित करे।
ये तन तो नश्वर है ,भावनाएं दिल से जुडी होती हैं ,वहीं भावनाएं न जाने कहाँ छिप गयीं ? या मर गयीं। जिसे वो प्यार समझ बैठी थी ,उसकी उम्र का धोखा था ,प्यार तो शायद धीरेन्द्र को भी नहीं था। उसे तो एक नया,खूबसूरत जिस्म अय्याशी के लिए मिल रहा था।नीलिमा अपने बेचैन ,बेज़ार मन से धीरेन्द्र के उस तन को संतुष्ट करने का प्रयास कर रही थी ,तभी उसकी बेटी के रोने की आवाज़ आई , ऐसे में वो और अधिक घबरा गयी। दुविधा में फंसी वो शीघ्रता करने लगी ,इस समय उसे पति और बच्ची दोनों को ही संतुष्ट करना था। भगवान का शुक्र है ,धीरेन्द्र शीघ्र ही संतुष्ट हो गया तब वो अपनी बेटी के लिए दूसरे कमरे की तरफ दौड़ी। क्या एक औरत की ज़िंदगी ऐसी होती है ? क्या मेरी माँ भी ऐसे ही परिस्थितियों से जूझी थी ? क्या सभी के सामने मेरे जैसी परिस्थिति आती हैं ?अनेक प्रश्न उसके मष्तिष्क में हथौड़े की तरह ,चोट कर रहे थे।
लोग भाषण तो बहुत देते हैं ,औरत देवी है ,दुर्गा है ,शक्ति है , मानता कौन है ?यदि पुरुष के विचारों को, इन शब्दों की चाशनी में न लपेटकर ,नंगा देखा जाये तो नारी उसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ भोग्या है।
निलिमा के मन में धीरेंद्र के प्रति जो समर्पण भाव, और प्रेम था कहीं तिरोहित होता नजर आ रहा था। वो उसके उस वहशी व्यवहार में कहीं प्रेम की तलाश कर रही थी। इस रिश्ते का आगे क्या अंजाम होगा? जानने के लिए पढ़ते रहिये- ऐसी भी ज़िंदगी