नीलिमा और धीरेन्द्र बाहर से घूमकर आये ,पल्ल्वी एकदम शांत थी ,कुछ देर पश्चात आकर बोली - बहुत हो चुका ,सम्भालो ! अपनी बेटियों को......
क्यों क्या हुआ ?धीरेन्द्र उनके उखड़े चेहरे को देखकर बोला।
क्या ,किसी बात के होने का मुझे इंतजार करना होगा ?तुम दोनों तो घूमो ,सैर -सपाटे करो और मैं इन्हें सम्भालूं ,तब तक नीलिमा भी आ चुकी थी। वो भी वहीं खड़ी होकर ,उन माँ -बेटे की बातों पर ध्यान देने लगी। पल्ल्वी धीरेन्द्र से कह रही थी -''क्या तुमने अपनी बेटियों के भविष्य के विषय में कुछ सोचा है ?आगे इनकी शिक्षा है ,अन्य खर्चे होंगे। खर्चे बढ़ते जा रहे हैं और आमदनी सीमित है और तुम दोनों का तो अभी ''हनीमून ''ही चल रहा है। इनकी जिम्मेदारियाँ कौन संभालेगा ? जीवन में इन सैर -सपाटों के अलावा भी बहुत कुछ है। अब तुम लोग अपना अलग घर बसा लो।
माँ की बातों को नजरअंदाज कर धीरेन्द्र ने सोचा -'लडकियों ने तंग कर दिया होगा ,इसीलिए थोड़ा नाराज़ हैं ,जब क्रोध शांत हो जायेगा। तब बात करेंगे ,सोचकर वो चला गया। नीलिमा भी ,बहुत कुछ धीरेन्द्र के रंग में रंग चुकी थी। महंगे और डिज़ाइनर कपड़े पहनना ,कुछ भी काम होता गाड़ी लेकर निकल जाती। वो माँ भी बनी ,गृहणी भी किन्तु उसने अपने सपने देखना और आगे बढ़ना ,कुछ नया सीखना नहीं छोड़ा। अब वो पैसों की परवाह भी नहीं करती ,पैसा कहाँ से आ रहा है ?और कितना व्यय हो रहा है ?ये सब वो नहीं सोचती। आज सास की बात सुनकर उसे लगा -इनसे हमारी ख़ुशी देखी नहीं जाती ,पापा के सख़्त नियमों में और पैसे की तंगी से अब वो बाहर आ गयी थी ,पुनः उसी तरह की सोच से अलग ज़िंदगी जी रही थी। सास की टोका -टाकी अब उसे भी बुरी लगने लगी।
नीलिमा को लगता ,यदि वो पैसे खर्चा कर रही है, तब धीरेन्द्र के नखरे भी तो वही उठाती है ,उसकी कई बुराइयों को नजरअंदाज कर जाती है ,तब धीरेन्द्र के पैसे पर उसका ही तो हक़ बनता है। उसे लगा ,ये भी सही है ,किसी की टोका -टाकी भी नहीं होगी। अकेले हम मस्त रहेंगे ,थोड़ा बच्चों को संभालने में परेशानी तो होगी किन्तु धीरेन्द्र कमा ही किसलिए रहा है ?अलग रहने के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करने लगी।
मोहनलाल जी ने ,जब अपनी पत्नी की बात सुनी, तो एकदम से बौखला गए ,बोले -बच्चों से ये तुम क्या कह रही हो ?इतनी बड़ी कोठी छोड़कर ,बच्चे कहाँ जायेंगे ?अब तो इस घर में थोड़ी ख़ुशियाँ आई हैं और तुम इस घर को फिर से सूना कर देना चाहती हो।
क्या करूं ?ये लोग अपनी जिम्मेदारी समझ ही नहीं रहे ,आप देख नहीं रहे ,कितने खर्चे बढ़ गए हैं ?आपकी लाड़ली बहु ,हमारे बेटे को समझाने से तो रही ,किन्तु उसको खुश करने के चक्कर में स्वयं ही वो कितनी बदल गयी है,क्या आपने देखा नहीं ? मैं इनकी दुश्मन नहीं ,अलग रहकर शायद इन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास हो जाये और अपने खर्चों पर थोड़ी बंदिश लगाएं। अब नीलिमा ही टिकट बुक करा लेती है और धीरेन्द्र को कह देती है ,और वो तो पहले से ही नालायक है ,सुनने का उसका कोई काम नहीं ,माँ -बाप को तो उसने अपने बच्चों की आया समझ लिया है। हम माँ -बाप हैं उसके ,हमारा मन भी है ,कि अपने पोते -पोतियों संग खेलें किन्तु इन्होंने तो हमें इनकी आया ही बना कर रख दिया है। आपने देखा नहीं ,उस दिन मेरी कितनी तबियत बिगड़ गयी थी ?और तुम भी परेशान हो गए थे। इस उम्र में ,हम थोड़ा बहुत कार्य कर लेते हैं कि हमारे बच्चों की सहायता हो जाये किन्तु ये लोग तो समझने को तैयार ही नहीं ,कि मम्मी -पापा इन बच्चियों कैसे संभालते होंगे ?अकेले रहेंगे ,तब उन्हें हमारे होने न होने का भी एहसास होगा ,खर्चों का भी एहसास होगा। यही सब सोचकर मैंने इन्हें अलग करने का निर्णय लिया है।
अपनी पत्नी की बात सुनकर ,मोहनलाल जी को लगा ,शायद वो सही कह रही है ,बोले -जैसा तुम ठीक समझो !
नीलिमा समझ नहीं पाई ,कि उसकी सास ने उसे अलग होने का ,ये दंड़ उन्हें दिया है बल्कि वो तो अपने अलग घर के सपने सजाने लगी। सास की टोका -टाकी भी बंद होगी। अपनी सोच ,अपनी ज़िंदगी ,अपने तरीक़े से रहना -सहना ,वो एक सुंदर जीवन की कल्पना करने लगी। उसने ये नहीं सोचा ,इसके विपरीत स्थिति भी हो सकती है। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है ? इसे कोई नहीं जान सका। शाम को जब धीरेन्द्र आया तब नीलिमा ने उससे अपने उसी सुनहरे ख्वाब के , विषय में बताया।
नहीं ,हम यहां यहां से अलग कहाँ जायेंगे ?मम्मी और पापा कैसे रहेंगे ? भाई भी अधिकतर बाहर ही रहता है।
क्यों ? जब हम बाहर घूमने जाते हैं ,तब क्या मम्मी -पापा अकेले नहीं रहते?
तब हमारी बेटियां उनके संग रहती हैं , उनसे उनका दिल लगा रहता है।
तुम्हारी मम्मी ने स्वयं सामने से आकर कहा है ,मुझे तो इसमें कोई बुराई नहीं दिखती।
तुम अकेले बच्चियों को कैसे संभालोगी ? मैं मम्मी से बात करता हूँ ,कहकर धीरेन्द्र अपनी मम्मी के पास जाता है। क्या बात है ?मम्मी !क्या कुछ हुआ है ?
नहीं ,अब तुम लोग अपने तरीक़े से अपनी गृहस्थी सम्भालो ,अपने घर जिम्मेदारियों को समझो।
अब इतना बड़ा घर छोड़कर हम कहाँ जायेंगे ?
ये घर तेरे पापा ने बनवाया है ,उनकी अमानत है ,जाना क्या है ?तेरी बहु से अब इतना काम भी नहीं होता ,वो भी क्या -क्या करे ?घर बड़ा है ,हम संभाल लेंगे। तुझे तो ,कम्पनी की तरफ से घर मिला है ,तुम लोग वहीं 'शिफ़्ट 'हो जाओ !कहकर वो अपने काम में लग गयीं। धीरेन्द्र कुछ देर उन्हें देखता रहा ,उसके पश्चात उठकर चुपचाप चला आया ,अपने कमरे में आकर चुपचाप बैठ गया।
क्या हुआ ,मम्मी जी ने क्या कहा ?नीलिमा ने पूछा।
क्या कहना है ?पता नहीं ,उन्हें क्या हो गया है ?वो तो कुछ सुनना और समझना ही नहीं चाहतीं ,मैंने पूछा भी कि इस घर को छोड़कर हम कहाँ जायेंगे ? कहने लगीं -तुम अपनी कम्पनी वाले घर में चले जाओ ?वो तो जैसे सब सोचे बैठी थीं ,अब जाना ही होगा।
नीलिमा मन ही मन खुश हो रही थी ,वो तो एक नई ज़िंदगी की कल्पना में खो रही थी।
क्या निलिमा और धीरेंद्र घर छोड़कर चले जायेंगे? उनका आगे का जीवन किन परिस्थितियों से होकर गुजरेगा? क्या उसकी मम्मी का यह फैसला सही होगा? जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी