अस्पताल में नर्सें ,इधर से उधर ,उधर से इधर आ जा रही थीं ,धीरेन्द्र वहीं चहलक़दमी कर रहा था ,उसे घर का भी स्मरण नहीं रहा कि उस घर में, उसकी दोनों बेटियां अकेली हैं। अंदर से नीलिमा की तड़पने की आवाज आ रही थी। धीरेन्द्र ने डॉक्टर से बात करनी चाही किन्तु वो उसे नजरअंदाज कर चली गयी। इस परेशानी में धीरेन्द्र को ये भी स्मरण नहीं रहा कि मम्मी -पापा को भी सूचना दे दे। एक पल के लिए आया भी था किन्तु तभी उसकी नकारात्मकता ने उसे रोक दिया ,अरे क्या बताना ? उन्हें हमसे इतना लगाव और प्रेम होता ,तो क्या ,हमें अपने से इस तरह अलग करते ?कुछ देर पश्चात एक नर्स आई ,तभी धीरेन्द्र लपक कर उसके पास गया। सिस्टर ! कुछ बताएंगी भी ,नीलिमा ठीक तो हैं ,न.......
जी ,अभी कुछ कह नहीं सकती ,उन्हें बहुत दर्द हो रहे हैं ,हो सकता है ,उनका ऑपरेशन करना पड़ जाये। ये क्या भगवान !आपने मुझे दो -दो बेटियाँ दी, मैंने शिकायत नहीं की किन्तु अबकि बार जब मैं बेटे की तमन्ना कर रहा हूँ, तब ये परेशानी दिखला रहे हो। अब शायद वो !अपनी ज़िंदगी में बदलाव चाहता था। अपनी गृहस्थी को ठीक से बसाना चाहता था ,एक ज़िम्मेदार पिता बनना चाहता था ,अपने उस आने वाले बच्चे के लिए। उसका बेचैन मन जैसे थक सा गया और शांत होने लगा ,इसी उधेड़ -बुन में तीन -चार घंटे निकल गए ,तब उसे अपनी बच्चियों का ख़्याल आया। उसने घर में ,फोन करके चम्पा से पूछा।
चम्पा ने बताया -साहब ! मैंने दोनों बच्चियों को नाश्ता करा दिया है ,आप बेफिक्र रहिये ,मैं सब संभाल लूँगी।
आख़िरकार डॉक्टरनी साहिबा ने निर्णय लिया और नीलिमा का ऑपरेशन कर दिया ,सफेद मोटा रुई जैसा बेटा हुआ है ,उसे देखकर ,धीरेन्द्र की आँखों में कुछ सपने जगमगा उठे और कुछ आंसुओं की नमी भी। चम्पा ने घर में उसकी बेटियों को संभाला हुआ था ।नीलिमा को नर्सों के हवाले कर ,आज वो अपने दफ्तर चला गया। दोनों ही पति -पत्नी प्रसन्न थे। शाम को धीरेन्द्र अपने दफ्तर से सीधे अस्पताल ही पहुंच गया और नीलिमा की छुट्टी के विषय में पूछा।
ले जाना चाहें , तो आप इन्हें कल ही ले जा सकते हैं किन्तु इनका ऑपरेशन हुआ है ,थोड़ी एहतियात बरतनी होगी ,इनके खाने -पीने से लेकर ,दवाइयों तक का सारा ध्यान रखना होगा ,अभी इनके टांके भी कच्चे हैं ,इनका विशेष ध्यान रखना होगा। डॉक्टरनी साहिबा ने ,इतनी हिदायतें दीं ,जिन्हें सुनकर ,धीरेन्द्र ने सोचा -ये यहीं ठीक है। कम से कम नर्सों और डॉक्टर की देखरेख में तो रहेगी। वहां चम्पा तो सब संभाल ही रही है। वो प्रतिदिन आता और उसे देखकर चला जाता। नीलिमा से दूर हुए ,उसे लगभग दस दिन हो गए। उसके अपने शरीर की भी कुछ इच्छाएं थी। मानसिक और शारीरिक थकावट झेल रहा था। आज उसने पी ही ली, जबकि उसने नीलिमा से वायदा किया था किन्तु ज़िंदगी में कब क्या मोड़ आ जाये ? कोई नहीं जानता।
चम्पा ने दोनों बेटियों को खाना खिलाकर सुला दिया ,वो सोच रही थी -साहब आ जाएँ, तो मैं जाऊँ। चम्पा के घर में ,चार बहन -भाई हैं ,बाप की कमाई इतनी नहीं कि वो अच्छी सी ज़िंदगी जी सकें ,दोनों भाइयों को पढ़ाने के लिए ,तीनों माँ -बेटी जी तोड़ मेहनत करतीं हैं। माँ का तो एक ही सपना है ,दोनों बेटियां अपनी ससुराल चली जाएँ और दोनों बेटे पढ़कर कमाने लायक हो जाएँ। उस घर में ,छह लोगों में ,चार कमाते हैं ,ताकि बाकि के दो का भविष्य सुधर जाये। चम्पा अभी है ही, कितने बरस की ?पन्द्रहवें बरस में ही तो चल रही है। किन्तु वक्त ने उसे समय से पहले ही समझदार बना दिया था। उसकी उम्र अब सपने देखने की ही तो थी। वो भी सपने देखती थी ,अपने प्यारे से घर के, जिसमें उसका भी कोई चाहने वाला ,उसके बच्चों का बाप हो। इसीलिए वो नीलिमा के घर काम करती ,वो पैसे भी अच्छे देती और काम भी ज्यादा नहीं लगता।अपने घर के कच्चे घर से तो बेहतर है। नीलिमा का व्यवहार भी उसके लिए अच्छा है ,कुछ भी खाने -पीने से मना नहीं करती। आज भी उसने दोनों बच्चियों को खाना खिलाया और धीरेन्द्र की प्रतीक्षा में थी। धीरेन्द्र के आते ही ,उसने खाना गर्म किया और उसके लिए खाना परोस दिया।
अब मैं जाऊँ साहब !
बच्चियों ने खाना खा लिया !
हाँ......
तुमने भी खाना खाया या नहीं ,
जी ,मैंने भी खा लिया।
बच्चियों ने तंग तो नहीं किया ,कुछ कह रहीं थीं।
जी नहीं ,कहते हुए ,उसे एक और रोटी देने आई ,खाना खाते हुए ,उसने कहा -आओ !यहाँ बैठो !
जी....... कहते हुए वो उसके बराबर की कुर्सी पर ही बैठ गयी। धीरेन्द्र खाना खाते हुए देख रहा था ,कम उम्र में भी उसके शरीर के उभार अच्छे हैं। खाना तो खा रहा था किन्तु उसका ध्यान उसके शरीर को अपनी आँखों से नाप रहा था। तभी उसके मन ने उसे सचेत किया उसने झटका सा खाया और बोला -तुम्हें यहाँ किसी चीज की कमी तो नहीं ,अपनी माँ को बता देना ,कभी देरी हो जाये तो यहीं सो जाना।
वो तो दीदी जी ने माँ से पहले ही पूछ लिया था नन्हा बाबा आया है न ...... जरूरत पड़ सकती है।
तुम तो बड़ी समझदार हो ,चम्पा अपनी प्रशंसा सुनकर शरमा गयी। चलो तो !अब इस समय कहाँ जाओगी ?तुम यहीं सो जाओ ! कल शायद तुम्हारी दीदी भी आ जाये ,उसके आने पर बहुत कार्य बढ़ सकता है। माँ पूछे तो बता देना दीदी आने वाली थी इसीलिए रुकी।
क्या सच !उसकी ख़ुशी से आँखें चमकने लगीं।
ठीक है , मैं यहीं सो जाती हूँ ,कहकर वो रसोईघर में चली गयी और धीरेन्द्र अपने कमरे में।
कुछ देर पश्चात ,चम्पा उसके लिए दूध रखने आई ,धीरेन्द्र तो जैसे उसी की प्रतीक्षा में था। बोला -तुमने दूध पीया।
जी मैं दूध नहीं पीती ,उसके गालों को छूते हुए ,धीरेन्द्र बोला -कितने गर्म हैं ?
चम्पा ने समझा दूध ,और बोली -मैंने तो ज्यादा गर्म नहीं किया।
कुछ नहीं आओ बैठो !मुझसे बात करो ! क्या तुम पढ़ती नहीं ,कहते हुए उसने चम्पा के हाथों को पकड़ा और उन्हें सहलाने लगा। तुम भी दिनभर काम करके थक जाती होंगी ,लाओ !तुम्हारे कंधे दबा दूँ।
चम्पा झेंप गयी ,साहब , कितने अच्छे हैं ?सोचकर बोली ,अब मैं जाती हूँ।
नहीं ,मुझे अभी नींद नहीं आ रही ,तुम्हारी दीदी भी यहां नहीं है ,आओ बैठो तो सही ,कहकर उसका हाथ पकड़कर बिस्तर पर बैठा लिया।
क्या धीरेंद्र परेशां है, जो आज उसने शराब पी है, चम्पा को रात्रि में रोकने का कारण क्या निलिमा ही थी? या कुछ और वजह थी। चम्पा तो इतनी छोटी है, तब वो इस तरह की हरकतें उसके साथ क्यों कर रहा था? जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी