धीरेन्द्र कई दिनों से थका हुआ था ,घर और नीलिमा को भी देखने जाता था किन्तु अबकि बार उसके बेटा हुआ था ,इसीलिए वो खुश था ,कल तो नीलिमा को आ ही जाना है। आज थोड़ा अपने मन को शांत महसूस कर रहा था। जिस तरह ज़िंदगी में उलझा था आज थोड़ी उलझन सुलझी ,तब उसने जाना हमारे घर में जो चम्पा काम करती है ,वो कितनी मेहनती है ? ये सब उसने उससे कहा ,किन्तु उसका मन तो कहीं और ही भटक रहा था।
चम्पा जब उसे दूध देने के लिए कमरे में आई ,तब धीरेन्द्र ने उससे कहा -तुम कितना काम करती हो ?थक जाती हो ,लाओ ?तुम्हारे कंधे दबा दूँ। वो बड़े प्यार से उसके कंधे दबाने लगा ,कंधे दबाते -दबाते उसके हाथ थोड़ा नी चे आ गए।
चम्पा को थोड़ा अजीब लगा ,और बोली -अब मैं जाती हूँ ,चली जाना ,कहकर धीरेन्द्र ने उसका हाथ पकड़कर बिस्तर पर खींच लिया। मैं तुम्हें कुछ कह थोड़े ही रहा हूँ ,तुम्हारी दीदी भी नहीं है ,कई दिनों से थका हूँ ,आज नींद नहीं आ रही ,सोचा -तुमसे थोड़ी बातें कर लूँ। कल को तो तुम्हारी दीदी आ ही जाएगी फिर तुम छोटे और दीदी के कामों में ही लगी रहना। तब न ही मुझे समय होगा न ही तुम्हें ,इसीलिए तो आज की रात तुम्हें रोका है ताकि तुम दीदी का ठीक से स्वागत कर सको।
धीरेन्द्र की बातें चम्पा को ठीक लगीं ,वो उससे इस तरह बातें करने लगा जैसे वो इसी घर की है और सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी भी उसी की है। घर ही उसका है ,वो भी बैठी उसकी बातें सुनती रही ,धीरेन्द्र धीरे से जम्हाई लेते हुए ,उसकी गोद में ख़िसक गया। तुम कितनी अच्छी और सुंदर हो ? तुम्हारा जिससे भी विवाह होगा कितना खुशनसीब होगा ? यदि मेरा विवाह पहले न हुआ होता ,तो तुमसे ही करता ,उसकी बात सुन चम्पा शरमा गयी। शरमा रही हो ,क्या तुम्हें मैं पसंद हूँ ? कहते हुए उसने ,अपना मुँह ऊपर किया ,जो उसके सीने की धड़कनों को महसूस कर पा रहा था। बोला -तुम्हारी धड़कने कह रहीं हैं ,साहब बहुत अच्छे हैं , कहकर उसने एक गहरी श्वास ली। धीरेन्द्र की गर्म सांसें ,चम्पा के सीने को छू रही थी किन्तु धीरेन्द्र इतने प्यार से बातें कर रहा था वो चाहकर भी उसे हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।
धीरेन्द्र धीरे -धीरे उसकी टांगों को सहलाने लगा ,सहलाते -सहलाते उसके हाथ ऊपर तक आ गए। चम्पा की धड़कने बढ़ने लगीं। बोली -अब आप सो जाइये ,मैं भी सो जाती हूँ।
कैसे सो पाओगी ?तुम्हारे सीने में जो ये दिल मुझसे मिलने के लिए ,धड़क रहा है ,उसे कैसे समझाओगी ?कहकर उसने बिना देर किये उसके अधरों पर अपने अधर रख दिए ,यही तो उम्र है ,जीवन में कुछ नया महसूस करने की। आज देखना ,तुम्हें स्वर्ग की सैर कराऊँगा। चम्पा भी बेक़ाबू होने लगी थी , विरोध करना चाह रही थी , किन्तु धीरेन्द्र का छूना उसे अच्छा लग रहा था। चाहकर भी विरोध नहीं कर पा रही थी। अब तो धीरेन्द्र की हिम्मत और बढ़ गयी। वो प्यार से कुछ न कुछ बोले जा रहा था और अपने हाथों से उसके तन को सहला रहा था। पैंतालीस साल की उम्र ,तीन बच्चों का बाप ,वो पंद्रह साल की लड़की ,उसे बहलाने में धीरेन्द्र को ज्यादा समय नहीं लगा। धीरे -धीरे चम्पा को निवस्त्र कर दिया। चम्पा भी धीरे -धीरे उसके आगोश में समा गयी। वो खेला खाया आदमी ,उस गरीब की इज्जत से खेल गया। इसका उसे भी एहसास नहीं हुआ।
अगले दिन तो नीलिमा को आना ही था ,उसकी अस्पताल से छुट्टी हो गयी। किन्तु अब धीरेन्द्र को उसका आना अच्छा नहीं लग रहा था। उसे पछतावा हो रहा था इतने दिन उसने व्यर्थ ही गँवा दिए। चम्पा घर के कार्य तो कर रही थी किन्तु आज उसके क़दमों में जैसे बिजली भर गयी थी। आज उसे अपने घर की भी याद नहीं आई। धीरेन्द्र नीलिमा को घर भेजकर अपने काम पर चला गया।
नीलिमा ने पूछा -चम्पा कैसी हो ?मेरी बेटियों ने तंग तो नहीं किया।
नहीं ,दीदी जी ! कहकर गुनगुनाते हुए कार्य करने लगी। नीलिमा ने महसूस किया ,आज चम्पा बहुत ही खुश है ,फिर सोचा ,शायद आज मैं आ गयी हूँ इसीलिए प्रसन्न होगी।
तब नीलिमा बोली -ज्यादा प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं ,अभी तुझे ही संभालना होगा अभी तो ये दस दिनों का ही हुआ है। मेरे आपरेशन के कारण अभी मुझे और आराम की आवश्यकता है।
जी दीदी !मैं सब संभाल लूँगी आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं।
शाम को जब ,धीरेन्द्र आया वो नीलिमा और बच्चे के साथ थोड़ी देर बैठा भी ,तब तक चम्पा ने खाना बना भी दिया। नीलिमा से बोला -चम्पा को तुमने बहुत होशियार बना दिया ,इसने तो तुम्हारे जाते ही सारा घर संभाल लिया वरना मैं अकेला परेशान हो जाता।
सही कहा तुमने ,मैं सोच रही हूँ ,रात में भी इसकी आवश्यकता पड़ सकती है ,इसके थोड़े पैसे बढ़ा देंगे और इसे रात्रि में भी यहीं रख लेते हैं।
ये तुमने सही कहा और हाँ ,मैं अब यहाँ नहीं सो पाउँगा क्योंकि रात -बेरात में ,ये शैतान रोने लगा तो ख्वाहमख़्वाह मेरी नींद खराब होगी। मुझे अपने काम पर भी जाना है फिर दिन में अपने दफ्तर में सोऊँगा।
ठीक है ,तुम अपनी बेटियों के पास सो जाना और चम्पा मेरे साथ इसी कमरे में सो जाएगी।
अरे यार...... वो नौकरानी है ,तुम उसे अपने कमरे में कैसे सुला सकती हो ?वो भी मेरे बिस्तर पर ,वो जानबूझकर ऐसे शब्द बोल रहा था। या वो अपने आपको ही नीलिमा के सामने झुठला रहा था।
कल ही तो चम्पा और वो एक साथ इसी बिस्तर पर थे या यूँ कहें ,धीरेन्द्र ने एक बच्ची ,अपने घर की नौकरानी के साथ ''मुँह काला किया। ''ये शब्द सुनने में कितने अभद्र या डरावने लगते हैं ?लगता है ,जैसे किसी ने गाली दी हो या फिर किसी ने मुँह पर तमाचा जड़ दिया हो। किन्तु ये शब्द अदृश्य हैं ,इन्हें महसूस करते हुए भी ,आदमी बाज नहीं आता। यदि यही कार्य कोई दूसरा करे तो कितना क्रोध और न जाने कितने अपशब्द निकलते हैं ?किन्तु जब स्वयं वो करे तो ,अपनी चतुराई समझता है। धीरेन्द्र भी अपने को चतुर समझ रहा था। उसका उद्देश्य ,फिर से चम्पा के माध्यम से अपनी शारीरिक भूख मिटाना था ,इसीलिए वो नीलिमा से दूर जाना चाहता था। अभी नीलिमा इसके लिए तैयार भी नहीं थी , जब तक नीलिमा पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो जाती तब तक तो चम्पा है ,ही यही सोचकर मन ही मन मुस्कुराया।
इधर नीलिमा भी सोच रही थी ,किसी की स्यानी लड़की को रात्रि में ,इस तरह घर में रखना ठीक नहीं ,अपनी नजरों के सामने ही रहेगी तो कार्य भी होता रहेगा और उसकी सुरक्षा भी किन्तु वो ये नहीं जानती थी जिस सुरक्षा के लिए वो सचेत हो रही है वो घेरा तो कल रात्रि को ही ,कब का टूट चुका था। अब तो दोनों तरफ ही बराबर की आग लग रही थी। चम्पा भी जैसे अपने को इस घर की मालकिन समझने लगी थी सभी तो उसी को पूछ रहे थे। अब तो धीरेन्द्र किसी न किसी बहाने रसोईघर में जाता और चम्पा के कोमल अंगों को छेड़ता ,कभी उसकी गर्दन चूम लेता ,कभी उसके अधरचूस लेता , जिस कारण उसके रगो में लहू तेजी से दौड़ने लगता। उसके लिए तो जैसे दिन काटना मुश्किल ही हो जाता और रात्रि में ,धीरेन्द्र की प्रतीक्षा में रहती।सभी कार्य निपटाकर वो नीलिमा के पास चली जाती और धीरेन्द्र बच्चियों के पास। जिन बच्चियों से वो चिढ़ता था ,आज वही बच्चियां उसके काले करतूतों की छाया बन गयी थीं जिनकी ओट में वो अपनी सोच को अंजाम देता।
आखिर उसका ये पाप कब तक छिपा रह सकता है? क्या निलिमा को एहसास होगा। दुनिया और समाज की नजरों में जो पाप है, वही आजकल धीरेंद्र और चम्पा की नजरों में चतुराई है, वो समझ रहे हैं, एक दूजे से प्रेम कर रहे हैं। धीरेंद्र का यह कर्म समाज से कब तक छुपा रह सकता है? जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी