आपको क्या लगता है ? जो लड़की इतनी व्यस्त रही ,और इतनी परेशानियाँ देखीं ,आज तीन बच्चो की माँ है ,क्या उसकी ज़िंदगी में ,कभी प्यार ,रोमांस भरे दिन, कभी आये भी होंगे ?हाँ ,आये थे ,जब वो दसवीं कक्षा में थी। जब अपने स्कूल से घर आती थी ,तब वो उसके पीछे -पीछे उसके स्कूल तक जाता था। वो उसे देख अक़्सर मुस्कुरा देती ,उसे लगता -शायद वो भी कुदरत का बनाया कोई अनमोल उपहार है ,जो उसे देखते हैं ,किन्तु तब वो ये नहीं जानती थी -कि उसका एक लड़की होना ही उसके लिए अनमोल उपहार है ,जो उसके लिए अभिशाप भी बन सकता है। उसने अपनी दोस्त को उसे दिखाया ,देख !मेरी तरफ ही देख रहा है किन्तु उसकी दोस्त को ऐसा कुछ भी नहीं लगा क्योंकि उसकी नजर में वो एक सामान्य लड़की थी।
ठंडी का मौसम था ,बाहर कोहरा था वो कदमताल करते हुए ,अपने स्कूल की तरफ तेज क़दमों से बढ़ी जा रही थी। उस समय पैदल ही ,लड़कियाँ अपने स्कूल की मंज़िल तय करतीं थीं। आज तो वैसे भी ,उसे देरी हो गयी ,ठंड में उठने का मन ही कहाँ करता है ? ज़बरदस्ती उठना पड़ता है ,वो चाहती ,तो छुट्टी कर सकती थी। पहले तो बारिश हुई नहीं कि छुट्टी हो जाती थी। छुट्टी कर भी लेती ,तब भी उसे कोई नहीं रोकता किन्तु उसे जाना पड़ा। आज भी तो वो आएगा ,इतनी ठंड में उसकी प्रतीक्षा करेगा। वो समझ ही नहीं पा रही थी कि ये प्यार है ,या फिर महज़ आकर्षण ! जो भी हो , उसे तो जाना ही है।उसका इस तरह नीलिमा के पीछे आना ,उसे अच्छा लगता। ये कैसा प्यार या उम्र का आकर्षण है ?वो जाती है किन्तु आज कहीं नहीं दिखा ,एक तो कोहरा ,ऊपर से इतनी ठंड और आज कहीं दिखाई भी नहीं दे रहा। उसी के कारण तो वो इतनी ठंड में बाहर निकली ,आज वो ही नहीं आया। निराशा से वो सोचने लगी -कहीं वो आज उठा ही न हो या फिर उसने मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न देखकर निराशा से भर गया हो किन्तु उसे आना तो चाहिए था। पूरे रास्ते वो यही सोचे जा रही थी। इससे पहले उसने कभी ऐसा नहीं सोचा किन्तु जब से बड़ी बहन का विवाह हुआ और बहन के जीजा के संग घूमने -फिरने के फोटो देखे ,उसके मन में भी गुदगुदी होने लगी।
एक बात तो है ,विवाह होते ही ,लड़की में अलग ही नूर सा आ जाता है। मन पढ़ाई में भी नहीं लगता और जब मायके आती है ,तब उसके लिए विशेष व्यंजन ,उसकी पसंद की ही सभी चीजें बनती हैं। जीजा और दीदी का छुप -छुपकर आँखों ही आँखों में मुस्कुराना और फिर दीदी का शर्म से नजरें झुका लेना। ये सब देखकर नीलिमा भी शर्म से लाल हो जाती। दीदी- जीजा तो अपने घर गये किन्तु वे उसकी नजरों में ,एक ख़ुशी चमक छोड़ गए ,जो उसे अब अपने लिए महसूस होने लगी। उन्हीं दिनों में वो' लंगूर 'भी उसके पीछे आने लगा। ये उस लड़के का नाम नहीं ,वो तो उसका नाम जानती भी नहीं। ये उसको ,नीलिमा का दिया गया ,अपना नाम है। आज कैसा कठोर हो गया ?आज आया ही नहीं ,सोचते -सोचते ,वो कब स्कूल आ गयी ,उसे स्मरण ही नहीं रहा ?स्कूल के मुख्य दरवाज़े पर वो असमंजस में खड़ी रही। उसका अंदर जाने का मन नहीं कर रहा था। उसका दिल किया ,वापस घर चली जाये। तभी एक अध्यापिका अंदर आते हुए बोलीं -बेटे यहाँ क्यों खड़ी हो ?अंदर चलो ! न चाहते हुए भी ,वो उनके कहने पर अंदर आ गयी।
किन्तु पढ़ाई में तो मन ही नहीं लग रहा था ,आज वो क्यों नहीं आया ?कहीं वो बीमार तो नहीं हो गया ,हो भी गया तो मुझे क्या ?मैं क्यों उसके विषय में इतना सोच रही हूँ ,अपने आप को स्वयं ही समझाती ,तभी एक लड़की ने उसे हिलाया ,तब उसका ध्यान भंग हुआ क्योंकि अध्यापिका उससे कुछ कह रहीं थीं। अचकचाकर वो उठी और बोली -जी मेम ! उसकी हालत देखकर सभी लड़कियां हँस दीं।
तब अध्यापिका ने पूछा -तुम्हारा ध्यान किधर है ?क्या सोच रहीं थी ,बहुत ही गहन चिंतन में थीं।
जी कुछ भी नहीं ,कहकर वो बैठने ही जा रही थी। अध्यापिका ने उसे रोका और बोलीं -अबकी बार बोर्ड के पेपर हैं और ये ख्यालों में खोई हैं ,खड़ी रहिये और ध्यान से पढ़िए। नीलिमा खड़ी हो गयी। उसे क्रोध आ रहा था। अच्छे खासे दिन चल रहे थे ,जब से इसने पीछा करना आरंभ किया तब भी कुछ इतना एहसास नहीं हुआ क्योंकि लड़के तो कभी 'व्यक्तिगत कक्षा' में कभी राह में चलते हुए कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं। अपनी हाजिरी लगा ही जाते थे किन्तु जब से इसने पीछा करना आरम्भ किया ,एक शब्द भी नहीं बोला। बस पीछे -पीछे जाता रहता था। एक दिन अपनी सहेली से भी यूँ ही मजाक में, मैंने कहा भी -देख मेरे पापा ने मेरे लिए'' बॉडी गार्ड ''रखा है, कहकर हँस दी।
तेरे पापा ,तेरे लिए ''बॉडी गार्ड ''उसने मुँह बनाते हुए कहा। तेरे लिए आज तक एक साईकिल तो ली नहीं गयी। ''बॉडी गार्ड ''रखेंगे। उस समय तो उस पर क्रोध आया था ,कई दिनों तक उससे बोली नहीं थी किन्तु आज सोचती हूँ ,तो लगता है -उसने ग़लत ही कहाँ कहा था ?मुझसे ज्यादा तो मेरे पिता को वो जान गयी। उसकी कही बातें ,उस समय मुझे व्यंग्य लगी थीं किन्तु आज लगता है ,वो सही थी।
अध्यापिका के डांटने पर और खड़े होने की सजा देने पर ,कुछ देर तो जबरदस्ती पढ़ाई में मन लगाया किन्तु फिर से वो ही दिमाग़ में छाने लगा। बार -बार मन ये जानने को उत्सुक था कि वो क्यों नहीं आया ?किसी तरह ,स्कूल की छुटटी हुई और मैं बाहर थी ,इतनी भीड़ में ,मेरी निग़ाहें उसे ख़ोज रहीं थीं। मेरी एक दोस्त मेरे संग थी ,उसके साथ मैं यूँ ही घूम रही थी। उसे कुछ किताबें और सामान लेना था किन्तु मुझे नहीं पता नहीं ,मैं क्यों घूम रही थी ?उसे लगा ,मैं उसका साथ देने के लिए उसके संग हूँ। तभी दूर से वो साईकिल पर आता दिखा। उसे देखकर नीलिमा ने राहत की साँस ली ,वो उससे पूछना चाहती थी। आज सुबह कहाँ था ?किन्तु अपने को संयत रखा।
उस लड़की से विदा ले ,जैसे ही गली में आई ,आज वो अपने आप ही बोला -आज थोड़ी देर हो गयी। आँख ही नहीं खुली ,सोचा -शायद इस समय मिल जाये इसीलिए आ गया।
नीलिमा मन ही मन प्रसन्न थी ,बिना पूछे ही ,उसे उसके प्रश्नों के जबाब मिल रहे थे। तब वो बोला -सुना है ,तुम्हारे पापा -चाचा बहुत ही क्रोधी हैं ,एक पत्र लिखा है -ठीक लगे तो ,इसका जबाब देना ,कहकर उसने एक कागज की पर्ची ,उसके हाथ में थमा दी और साईकिल पर बैठकर चला गया। हाथ में ,उस पर्ची को पाकर नीलिमा का दिल जोरों से धड़कने लगा। घबराहट से ,उसकी हालत खराब हो गयी ,उसका दिल तो नियंत्रित करने का प्रयत्न करते हुए भी नियंत्रित नहीं हो रहा था। बल्कि और जोरों से धड़कने लगा ,लग रहा था पसलियाँ तोड़कर बाहर आकर ही दम लेगा। आज उसे महसूस हो रहा था सोचने और करने में कितना अंतर् है ? जैसे किसी ने उसे चोरी करते पकड़ लिया हो ,उसका मुँह लाल हो गया था वो घर जाकर सीधे अपने कमरे में घुस गयी। वो कमरा उसका अकेली का नहीं था ,उसकी दीदी भी उसके साथ रहती थी किन्तु उनका विवाह हो जाने के पश्चात ,अब उसका अकेली का है।
आखिर उस लंगूर ने यानी निलिमा का दिया नाम उसने उस पर्ची में ऐसा क्या लिखा था? क्या वो उस पत्र को पढ़ पायेगी या उससे पहले ही पकड़ ली जायेगी जानना है तो पढ़ते -रहिये ऐसी भी ज़िंदगी