कुछ समझ नहीं आता , ज़िंदगी हमारे साथ क्या खेल ,खेल रही है ?एक पल को ख़ुशी का एहसास होता है तो दूसरे ही पल वास्तविकता में ला पटकती है। नीलिमा प्रसन्न थी कि अब सब ठीक है ,किन्तु कहीं न कहीं कोई दबी चिंगारी है ,जो हवा के आते ही भड़कने को आतुर है। आज धीरेन्द्र की मंशा उसे पता चली तो वो हिल गयी ,वो कैसे अपने अबोध बालक के साथ अन्याय कर सकती है ? उसने अपने सोते हुए अथर्व की तरफ देखा। सोते हुए, कितना मासूम लग रहा था ?उसे तो शायद एहसास ही नहीं ,उसके माता -पिता हैं और उनके जीवन में उसके कारण भूचाल कभी भी आ सकता है।
प्रातःकाल जब वो सोकर उठी ,तब सर में थोड़ा भारीपन था ,दिनभर के कार्य ,ऊपर से परिवार का क्लेश, जिसके कारण वो रात्रि में देर तक सो भी नहीं पाई। नीलिमा उठी और नाश्ता बनाया ,धीरेन्द्र भी चुपचाप खाकर और अपना टिफ़िन लेकर चला गया। उस रात्रि को जो कुछ भी बात हुई ,उससे दोनों शांत तो थे किन्तु मन में कुछ दूरी सी आ गयी थी। धीरेन्द्र ने इस बात को यहीं समाप्त कर आगे बढ़ना चाहा किन्तु नीलिमा अपने फैसले पर अडिग रही। धीरेन्द्र ने हारकर चुप रहने में ही भलाई समझी। किन्तु वो इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। घर में शांति थी किन्तु देखकर ऐसा लगता था जैसे ,तूफान के आने से पहले की शांति हो। हलचल सभी के मन में थी। ऐसे में चम्पा अपने व्यवहार से सभी का ध्यान अपनी ओर खींचकर ,मन बदलने का प्रयास कर रही थी।
एक दिन नीलिमा ने धीरेन्द्र से कहा ,खर्चे बहुत बढ़ गए हैं ,इस वर्ष शिवांगी का भी स्कूल में दाखिला कराना है। अथर्व को भी ,इलाज़ के साथ -साथ अन्य चीजों की जानकारी के लिए उसे सिखाने के लिए अलग से तैयारी करनी होगी। मुझे बाहर भी जाना पड़ सकता है ,इसके इलाज के लिए ,मेरे बस में जो भी होगा ,वो करूंगी।
तुम जहाँ जाना चाहती हो ,जा सकती हो किन्तु अपनी बेटियों का ,अपने आप ख्याल रखना।
क्यों ,क्या तुम उनके पिता नहीं हो ?तुम्हारी भी तो ज़िम्मेदारी बनती है।
मैं अकेली क्या -क्या कर सकती हूँ ? बच्चे की बिमारी देखूँ या घर सम्भालूं।
क्यों ,चम्पा तुम्हारी सहायता नहीं करती है ,वो भी तो तुम्हारे साथ तुम्हारे कार्य में मदद करती है।
किन्तु वो माँ की ज़िम्मेदारी पूरी नहीं कर सकती।
उसकी बात सुनकर धीरेन्द्र के चेहरे पर एक चमक आई और मुस्कुराया। धीरेन्द्र बोला -खर्चे बहुत बढ़ रहे हैं।
इसमें मैं क्या कर सकती हूँ ? तुम तो और बच्चे बनाने के लिए तैयार हो रहे थे ,तुमसे तो इन्हीं का खर्चा उठाया नहीं जा रहा।
मैंने क्या ज़िंदगी भर का ठेका ले लिया ?वो भी बीमारी का...... मैं क्या ज़िंदगी भर इसी की बिमारी के लिए कमाने के लिए रह गया हूँ। मेरे पास कोई पैसा नहीं है ,अभी तो मैंने दूसरों का पैसा उतारा है।
पैसा नहीं है ,तो अपने पापा -मम्मी से मांग लो !
वे भला क्यों मुझे पैसे देने लगे ? उन्हें मेरी इतनी ही फिक्र होती तो इस तरह अलग नहीं करते।
तुम्हें अलग भी ,तुम्हारे ही कर्मो के कारण किया है ,वरना तुम्हारी मम्मी के इतने गलत व्यवहार के पश्चात भी ,मैं उन्ही के साथ रह रही थी। देखा नहीं ,तुम्हारी भाभी ने कैसे पैसा उड़ाया ?और किसी का इतना साहस भी नहीं ,कि उसे कोई कुछ कह सके ,मुझे तो उन लोगों ने जैसे नौकर बनाकर रख दिया था। तब तो मैं ये बात समझ नहीं पाई किन्तु बाद में मुझे एहसास हुआ। कैसे लोग हैं ? जो तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार कर रहा था ,तुम्हारी सेवा के लिए तत्पर रहा ,उसी को तुमने मूर्ख समझा। जब मैं सीधी थी ,नासमझ थी ,अब कोई कुछ कहके या करके देखे। सोचते और कहते नीलिमा जोश में आ गयी।
अरे यार....... चुप भी रहोगी ,जो हो गया सो हो गया। उन बातों को अब और न कुरेदो।
मैं कुरेद नहीं रही ,बस इतना कह रही हूँ ,हमें यहाँ पैसों की तंगी हो रही है। तो अपने मम्मी -पापा से कहो !तुम्हारा हिस्सा दें ,नीलिमा थोड़ा शांत होते हुए बोली -जो कुछ भी है ,तुम दोनों भाइयों का ही तो है ,तुम्हारे भाई का तो अभी ,घर ही नहीं बसा। उन्हें घर बसाने की आवश्यकता ही क्या है ? जब सभी कार्य बिना विवाह के ही हो रहे हैं नीलिमा ने व्यंग्य किया। सब कुछ तुम्हारे भाई पर ही न लुटा दें ,तुम भी अपना हिस्सा मांग लो। जब ये कम्पनी का मकान छोड़ना पड़ गया तब हम कहाँ जायेंगे ?
अपनी कोठी है ,न.....
उन्हें कोठी में रखना ही होता ,तो निकालते ही क्यों ? वो तो तुम्हारी माँ के नाम है ,वो तो मुझसे पहले से ही चिढ़ती हैं ,जैसे मैंने उनकी कोई भैंस खोल ली हो। तुम उनके बेटे हो ,तुम उनसे अपना हिस्सा मांग सकते हो।क्या ,सब तुम्हारे भाई को ही देकर जायेंगे ? उनसे अपना हिस्सा लो।
ये बात ,धीरेन्द्र को समझ आती है , वो सोचता है ,बहुत दिनों से मम्मी -पापा से मिला भी नहीं ,उनसे मिलना भी हो जायेगा।
नीलिमा आज जैसे ही घर से बाहर आई ,वो ही लड़की उसे दिखी ,इस लड़की को नीलिमा ने एक -दो बार पहले भी देखा था। अपनी ससुराल में भी देखा था ,मैं जहाँ भी जाती हूँ ,ये कहीं न कहीं दिख ही जाती है। ये केवल एक संयोग नहीं हो सकता। वो नीलिमा को देखकर मुस्कुराई और पूछा ,अब तुम यहाँ रहती हो।
हाँ...... किन्तु मैं ये पूछना चाहती हूँ कि तुम उधर भी कोठी में मुझे मिली थीं ,यहाँ भी ...... तुम रहती किधर हो ? क्या नाम है ? तुम्हारा !
टीना ,तुम मुझे नहीं जानती ,क्या तुम्हारा बेटा ठीक है ?
ओह !तुम मेरे बेटे के विषय में कैसे जानती हो ?
बस ऐसे ही पता चल गया ,कोई अच्छा डॉक्टर मिला तो बताऊँगी कहकर वो चली गयी।
नीलिमा खड़ी सोच रही थी ,ये मुझे कैसे जानती है ?और मेरे बेटे के विषय में भी.......
आखिर ये अंजान लड़की कौन है? जो नीलिमा के लिए पहेली बन गयी है। उसके और उसके बच्चों के विषय में भी सब जानती है। क्या रहस्य है? इस लड़की का जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी