नीलिमा की ज़िंदगी में भी हलचल होती है ,जब उसे एक लड़का अपनी साईकिल से ,उसका पीछा करते हुए आता है, उसे अपने होने का एहसास दिलाता है। वो तो स्वयं भी नहीं समझ पा रही थी कि ये प्यार है या महज़ आकर्षण ,बस उसे तो तब अच्छा लगता ,जब वो उसका पीछा करता है,शुरू -शुरू में तो ,उसे बुरा भी लगा। शायद ,उसे अपने पापा और चाचा के देख लेना का डर था या फिर मौहल्ले वालों का किन्तु अब तक तो किसी ने भी नहीं देखा ,शायद इसी कारण से उसका इस तरह ,अपने पीछे आना अच्छा लगने लगा। नीलिमा के साथ की लड़कियों में ,किसी न किसी लड़की के लिए ,कोई न कोई या तो अभिनेता या फिर कोई लड़का आकर्षण का केंद्र ही था, किन्तु नीलिमा को ऐसा कुछ भी नहीं लगा। नीलिमा की जिज्ञासा बढ़ती गयी -कि किसी को ,मैं भी देखूं या फिर कोई मुझे भी चाहे। ये जिज्ञासा ही शायद ,उस साइकिलवाले के लिए बढ़ गयी थी और वो नीलिमा के लिए आकर्षण का केंद्र था।
कभी -कभी अपने आप से ही प्रश्न करती ,प्यार क्यों और कैसे हो जाता है ? क्या उसका मेरे पीछे आना ?प्यार है !,कहीं किसी ने देख लिया तो, बच्चू को नानी याद आ जाएगी। आज तो उसने पत्र दिया है ,पता नहीं ,उस पत्र में ऐसा क्या लिखा होगा ?सोचने मात्र से ही ,उसका दिल जोरों से धड़कने लगा। वो शीघ्र अति शीघ्र घर आई और अपना कमरा बंद कर लिया। माँ ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया ,शायद कपड़े बदल रही होगी किन्तु वो अपने धड़कनों को संभालने में लगी थी , जिनकी गति बढ़ती ही जा रही थी। उसने उस पत्र को सबसे पहले किसी सुरक्षित स्थान पर रखा , तब पानी पिया। उसे पत्र मिल जाना भी ,किसी मुसीबत से कम नही लग रहा था। वो नहीं चाहती थी ,उसकी किसी भी हरकत से ,घरवालों को उस पर किसी भी तरह का शक़ हो। जब भी पत्र पढ़ने का सोचती कोई न कोई उसे काम दे देता या बुला लेता।
वो शीघ्र अति शीघ्र उस पत्र को पढ़कर ,उससे निज़ाद पा लेना चाहती थी।शाम का समय था ,उसने पत्र उठाया ,सभी अपने -अपने कार्यों में व्यस्त थे। आज तो वो इस पत्र को पढ़कर ,देख लेगी उसने ऐसा क्या लिखा है ?ये उसकी ज़िंदगी का पहला' प्रेम पत्र 'था ज़रा मैं भी तो देखूं ,लड़की को पटाने के लिए ,लड़के ऐसा क्या लिखते हैं ?ये जानने की अधिक उतकंठा उसमें अधिक थी। मेरी जान...... अभी उसने ये शब्द ही पढ़े थे कि बाहर कुछ शोर सुनाई पड़ने लगा। घर के लोग भी बाहर की तरफ ही जा रहे थे ,उसने भी कमरे से आवाज़ दी ,क्या हुआ ???
पता नहीं ,हम भी देखने ही जा रहे हैं।
एक -एक कर घर के सभी सदस्य घर से,बाहर आ गए ,तब नीलिमा ने सोचा -ये अच्छा मौका है ,पत्र पूरा पढ़ लूँ किन्तु घरवाले पूछने लगे ,कि वो अब तक कहाँ थी ?जब आदमी चोरी करता है या उसके मन में चोर होता है तब यही प्रयत्न रहता है कि उससे कोई गलती न हो जाये। यही नीलिमा को भी लगा और वो घबड़ाकर पत्र को पुनः उसी स्थान पर छुपाकर रख दिया और स्वयं भी, बाहर आ गयी। बाहर के हालात बड़े ,ही ख़राब लग रहे थे ,पूरा मौहल्ला ही बाहर था। कुछ भी समझ न आने की स्थिति में ,उसने पूछा -क्या हुआ ?
क्या होना था ?तिलोत्तमा भाग गयी।
कहाँ ??किसके संग ?नीलिमा आश्चर्य से बोली।
हमें क्या मालूम ? सुना है - किसी लड़के के संग भागी है।
क्या???? नीलिमा को भी आश्चर्य हुआ ,वो तो ऐसी नहीं दिखती थी।
जरूरी नहीं ,जो जैसे दीखते हैं ,वैसे ही हों ,हमें क्या मालूम किसी के मन में क्या चल रहा है ?ये वाक्य नीलिमा को लगा -''जैसे उसी के लिए था।'' तभी उसे भी अपना वो पत्र ,स्मरण हो आया और साथ ही दिल की धड़कनों ने अपनी गति तीव्र कर दी।
लड़कीवालों ने पुलिस में ,खबर कर दी थी। पूरे मौहल्ले में चर्चा हो रही थी ,ये कोई आम बात नहीं थी ,एक लड़की अपने माता -पिता की इज्ज़त दांव पर लगाकर , भाग गयी थी और सभी रिश्तेदारों में पड़ोसियों में बदनामी हो गयी थी। उस समय घरवालों के लिए डूब मरने वाली बात थी। इज्जत की ख़ातिर जान देने और जान लेने का माद्दा रखते थे। घरवाले भी ,इसी कारण से ,उसकी ख़ोज कर रहे थे ,दोनों को देखते ही गोली मार देनी है। नाक कटवाकर वो तो गयी किन्तु मौहल्ले वाले तो ताने सुना -सुनाकर ही , हमें मार डालेंगे। कैसे किसी को बिरादरी में मुँह दिखाएंगे ?सभी हार -थककर अपने घरों के अंदर तो आ गए किन्तु तिलोत्तमा चर्चा का विषय रही।
शाम को ,जब नीलिमा के पिता ने ,ये सभी बातें सुनी तब उन्हें आश्चर्य के साथ ही क्रोध भी आया और बोले - उसके घरवाले उसे ठीक ही ढूँढ रहे हैं ,ऐसे बच्चे को तो गोली मार देनी चाहिए ,हमारे घर में ,यदि किसी ने भी ऐसा किया ,हम मौहल्ले वालों को खबर होने से पहले ही ,उन्हें गोली मार देंगे। नीलिमा अपने पापा को खाना पकड़ा रही थी ,अचानक उसके हाथ काँपे और प्लेट हाथ से छूट गयी।
पापा ने और सख्ताई से कहा -ध्यान कहाँ है ?तुम्हारा !!!!!
पापा वो हाथ घी से चिकने हो गए थे ,उसने सफाई दी।
ठीक है ,बस एक रोटी ही लाना। कहकर वो फिर से खाने में लग गए।
नीलिमा आज की घटना से ही घबरा गयी थी ,पापा की बातें सुनकर उसके हाथ ही नहीं ,सारा शरीर काँप गया था।
पापा के खाना खाने के पश्चात ,वो सीधे अपने कमरे में गयी और सबसे पहले उस पत्र के टुकड़े किये और फिर मोमबत्ती लेकर उन्हें जला भी दिया तब जाकर ,उसने राहत की साँस ली। उस पत्र के रहते ,उसका दम सा घुट रहा था। अब वो ,चैन की खुलकर साँस ले रही थी। उसने मन ही मन सोच लिया था ,अब आगे से ऐसे किसी भी पचड़े में नहीं पड़ेगी। थोड़ी देर के पश्चात ही, उसे अवसाद ने घेर लिया। जोश और ड़र के कारण उसने उस पत्र को ,फाड़ भी दिया और जला भी दिया किन्तु अब उसका दिल कह रहा था -उसने पत्र को जलाने में जल्दबाजी दिखाई ,कम से कम एक बार तो पढ़ ही लेती फिर चाहे ,उससे झूठ ही कह देती -कि पत्र पढ़ा नहीं वरन फाड़ दिया। पता नहीं उसने ,क्या लिखा होगा ?बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई। अगले दिन ,वो फिर से उसके पीछे -पीछे आ रहा था किन्तु नीलिमा कल की घटना स्मरण करते ही ,वो बोली -इस तरह मेरे पीछे अब कभी मत आना।
क्या उस लड़के ने निलिमा के पीछे जाना छोड़ दिया ? या अपने प्यार का उसे एहसास दिलाया, उनकी प्रेम कहानी आगे बढ़ी या उसने वहीं दम तोड़ दिया इसके लिए पढ़नी होगी ये कहानी -ऐसी भी ज़िंदगी !