सम्पूर्ण वातावरण ग़मगीन था ,पुलिस अपना कार्य कर रही थी ,नीलिमा के चाचा और पापा कुछ लोगों के साथ मिलकर ''दाह संस्कार '' की तैयारी कर रहे हैं। सीधा सा केस है ,इसमें है ही क्या ?घर की परेशानियों से तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। कई लोगों के अनेक प्रश्न थे ,कि उसने आत्महत्या क्यों की ?दोस्तों का कहना था -हमें तो नही लग रहा था, कुछ लोगों का कहना था कि उसने बहुत कर्ज़ लिया हुआ था, जिसे चुका पाने में वो असमर्थ था।कि वो अपनी परेशानी में ऐसा भी कर सकता है। कुछ लोग , ऐसे वातावरण में कुछ भी ज्यादा कहना और पूछना भी नहीं चाह रहे थे। इस समय सभी अपनी -अपनी जिम्मेदारी की औपचारिकता पूर्ण करने आये थे और कर रहे थे। पार्वती बेटी के भविष्य का सोच -सोचकर रोये जा रही थी।
चंद्रिका ,नीलिमा को समझा रही थी -तुझे हिम्मत से काम लेना होगा ,जो हो गया उसे तो वापस लाया नहीं जा सकता किन्तु तुझे अब मजबूत बनना होगा। वैसे हुआ क्या था ?क्या तुम दोनों में कोई अनबन.....
नीलिमा अभी चुप थी ,कुछ भी कहना नहीं चाह रही थी।
चन्द्रिका ने उसके दर्द को समझते हुए ,और कुछ कहना और पूछना ठीक नहीं समझा। उसकी चाची मेहमानों के बीच बैठी ,उनके विचार सुन रही थी। कोई महिला ,जो शायद पड़ोस की होगी ,बैठी कह रही थी -बेचारी कम उम्र की ही लग रही है ,तीन बच्चों के साथ अकेली कैसे करेगी ?अभी तो बच्चे छोटे -छोटे हैं ,उनमें भी बेटा बिमार है।
अरे बहनजी ! मैंने तो सुना है , इसकी ससुराल इसी शहर में है।
तब ये लोग वहां क्यों नहीं रहते ? ऐसे वातावरण में उसने ज्यादा बात करना उचित नहीं समझा और बोली -इनकी तो अब ये जाने , कहकर ,वो शांत बैठ गयी।
नीलिमा की ज़िंदगी ,न जाने अब किस मोड़ पर जाने वाली है ? और न जाने इसकी ज़िंदगी में अब क्या और लिखा है ? ये अकेली ,भला कैसे तीनों बच्चों को संभालेगी ? घर का खर्चा कैसे चलेगा ? इन्हीं सब बातों को सोच -सोचकर उसकी माँ सिहर उठती। यही सब सोचकर पार्वती जी ,उसकी सास के समीप गयीं और आँखों में आंसू भरकर बोलीं -जो हम सोचते हैं ,वो होता नहीं ,ये तो हमने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारी बिटिया ,इतनी कम उम्र में...... कहकर फिर से उनकी हिड़की बंध गयी।
पल्ल्वी ने उनकी पीठ थपथपाई और बोली -होनी को कौन टाल सका है ? इस उम्र में जवान बेटे का ग़म , हमारी सोचो !हमारा बुढ़ापा कैसे कटेगा ?
तुम्हारा तो अभी एक बेटा और है ,उसका सहारा हो जायेगा किन्तु मेरी बेटी तो अकेली रह गयी ,उसके अभी छोटे -छोटे बच्चे हैं ,वो कैसे अपने आप को संभालेगी ?
जब उसने ग़म दिया है ,तो सम्भलने की ताकत भी वही देगा पल्ल्वी का जबाब था।
अंतिम संस्कार में ,महिलाओं का जाना वर्जित था किन्तु नीलिमा अपने लड़के को साथ लेकर गयी। उससे ही सभी कार्य करवाये। धीरे -धीरे सभी मन में गहरा दुःख लेकर अपने -अपने घर के लिए प्रस्थान करने लगे।सभी के लिए जैसे ये एक ऐसी घटना थी- जिस पर, किसी को विश्वास नहीं हो पा रहा था किन्तु आँखों देखी झुठलाया भी नहीं जा सकता। इन सभी कामों में ,लगभग शाम के चार बज चुके थे। सभी वहीं गंगाजी में नहा लिए ,घर आकर सभी ने चाय पी ,भूखे भी थे। नीलिमा के चाचा ने ,सभी के लिए बाहर से ही खाना मंगवाया किन्तु पल्ल्वी और उनके पति मोहन जी ने खाने से इंकार कर दिया और अपने घर आ गए।
उनके जाने के पश्चात ,चंद्रिका बोली -अब तू ही यहाँ रहकर क्या करेगी ? तू भी अपनी ससुराल चली जा अपने सास -ससुर के साथ रहना।
नीलिमा मुस्कुराई और बोली -वो नहीं रखेंगी ,देखा नहीं ,कैसे मुँह फेरकर चली गयीं ? एक बार भी सिर पर हाथ नहीं फेरा, न ही बच्चों से मिलीं ,उन्होंने ही तो उसके [धीरेन्द्र ]के कान भरे थे ,अपनी माँ की तरह ही लड़कियों की लाइन लगा रही है। वो तो हमें तब भी घर से बाहर निकालने के बहाने ढूँढ रही थीं। अब तो उनका बेटा भी नहीं रहा। अब वो किस मोह में हमें बुलायेगी ? क्या उन्हें स्वयं नहीं कहना चाहिए था ?बच्चों के साथ अकेली कैसे रहेगी ?चल ,हमारे साथ चल !
नीलिमा के पापा भी कहने लगे ,अब हमें भी चलना चाहिए ,अब हम ही यहाँ रहकर क्या करेंगे ? वहां भी घर ख़ाली पड़ा है।
अपने घरवालों के जाने के नाम से ही ,नीलिमा की रुलाई फूट पड़ी ,अब मैं अकेली कैसे रहूँगी ? एकदम से सारा घर सूना हो जायेगा वो चंद्रिका के गले लगकर रोने लगी ,उसके आने से ही उसे लग रहा था कि उसका कितना बड़ा सहारा है ?
अब हमें जाना ही होगा इस तरह रात्रि में ,नहीं रहते ,कहकर उन्होंने अपनी पत्नी की तरफ इशारा किया जो उन्हें ,आशाभरी दृष्टि से देख रही थीं कि वो रुकने के लिए हाँ कहें और वो रुक जाएँ किन्तु उनका इशारा मिलते ही ,उनकी ये उम्मीद भी समाप्त हो गयी।
तभी नीलिमा ने अपनी बहन का हाथ पकड़ा और जीजाजी से बोली -कम से कम दीदी तो यहाँ रह जाती ,मैं अकेली रह जाउंगी ,दीदी के बच्चे तो अब बड़े हो गए ,कहकर रोने लगी।
तब चंद्रिका ने अपने पति की तरफ इशारा किया कि आप जाइये ! बोली -ऐसा करते है ,आप लोग जाइये ,मैं यहीं ठहरती हूँ ,जब तेहरवीं में आओगे तो मैं भी साथ चली जाऊंगी, तब तक यहीं ठहरती हूँ।
उसकी बात सुनकर सभी चुपचाप गाड़ी में बैठ गए और उन्हें सांत्वना देकर चले गए।चंद्रिका अपनी बहन के साथ ही रह गयी। अब तू मुझे बता कि असल में हुआ क्या था ?क्या तुम दोनों में कोई झगड़ा हुआ था ? वो वहाँ कैसे पहुंचा ? इस तरह के प्रश्नों से चंद्रिका ने नीलिमा के मन को टटोला।
नीलिमा पहले तो उदास बैठी रही ,सोचते हुए बोली -वो चाहता था कि आर्यन तो बिमार है इसीलिए एक बेटा और हो ,इस कारण अक्सर मुझसे झगड़ा हो जाता किन्तु उस दिन तो कोई झगड़ा नहीं था। उस दिन तो वो अपने घरवालों से मिलकर अपना हिस्सा मांगने गया था। हम भी कब तक यहीं रहेंगे ?इसीलिए मैंने ही उस पर दबाब बनाया था।
हाँ ,ठीक ही तो है ,कल को तेरी बेटियां बड़ी भी होंगी ,उनके खर्चे भी होंगे इसकी भी हारी -बिमारी है ,ये तो तेरे ससुर को पहले ही सोचना चाहिए था कि दोनों भाइयों का,अपने जीते जी बराबर हिस्सा कर दें। कल को किसी भी तरह की गलतफ़हमी या झगड़ा न हो। तब उन्होंने क्या कहा ?
अब मुझे क्या मालूम ? उसके बाद तो वो मुझसे मिला ही नहीं ,न ही मुझे ,ये पता चल पाया वो ट्रेन के नीचे कैसे आया ?
मुझे तो लगता है ,ये आत्महत्या नहीं हत्या है ,चंद्रिका ने जैसे रहस्य खोला।
नीलिमा चौंक गयी ,ये आप क्या कह रही हैं ?
सही तो कह रही हूँ।वो अपने घर अपना हिस्सा मांगने गया होगा ,उन्होंने देने से इंकार कर दिया होगा। हो सकता है ,उसके जेठ ने ही बहाने से ,उसे बुलाया होगा और ट्रेन के आने पर उसे धक्का दे दिया होगा।
नीलिमा थोड़ी अनमनी सी हुई ,और बोली -बिना देखे ,हम किसी पर यूँ ही इल्ज़ाम तो नहीं लगा सकते ,पुलिस को भी तो आत्महत्या का केस ही तो लग रहा है।
पुलिस तो जब तक सक्रिय नहीं होगी जब तक हम उनके विरुद्ध कोई रिपोर्ट दर्ज़ न करा दें।
क्या नीलिमा अपने पति की हत्या का आरोप अपने ससुराल वालों पर लगा कर , उन लोगों के विरुद्ध थाने में रिपोर्ट दर्ज़ करायेगी ? जानने के लिए पढ़ते रहिये -''ऐसी भी ज़िंदगी ''