धीरेन्द्र की अचानक मौत से सभी हतप्रभ रह गए ,किसी को समझ नहीं आया कि ये अचानक क्या हुआ ? पुलिस को उसकी लाश रेलवे ट्रैक पर ,टुकड़ों में पड़ी मिली किन्तु ये अच्छा हुआ, उसके चेहरे पर चोट लगने के बावज़ूद भी ,उसकी शिनाख़्त हो गयी। नीलिमा का कथन था -'' वो अपने मम्मी -पापा से मिलने उनके पास गया था।'' मम्मी -पापा ने अभी तक कोई बयान नहीं दिया। अभी तक तो उसके दाह संस्कार का कार्य ही हुआ। पुलिस ने भी इसे आत्महत्या का केस समझ ,उसके मृत शरीर को उसके परिवार को सौंप दिया। उसके दाह संस्कार के पश्चात ,नीलिमा के परिवारवाले और सभी रिश्तेदार ,दोस्त सभी अपने -अपने घर चले गए किन्तु चंद्रिका वहीं रह गयी। चंद्रिका ने नीलिमा से घर की स्थिति और धीरेन्द्र के विषय में उससे जानना चाहा।
जो कुछ भी नीलिमा ने बताया ,उस आधार पर तो चंद्रिका को लगा ,धीरेन्द्र ने आत्महत्या नहीं की वरन उसकी हत्या हुई है। इस बात से ,नीलिमा एकाएक अचकचाकर बोली -पुलिस ने तो आत्महत्या बताई है।
वो तो यही करेगी ,इसके लिए हमें ही कदम उठाना होगा।तब पुलिस हरकत में आएगी ,हमें उन लोगों के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट करनी चाहिए। तुझे क्या लगता है ?तू क्या सोचती है ?उसके साथ ऐसा ही हुआ होगा तो... क्या उसके मुज़रिमों को सजा नहीं मिलनी चाहिए ?
छोडो, दीदी ! अब क्या करना है ? अब वो वापिस तो नहीं आ जायेगा। मुझे जो भुगतना है ,झेलना है ,वो तो झेलूंगी ही किन्तु वो लोग भी चैन से नहीं रह पाएंगे कहकर नीलिमा रोने लगी।
इस तरह रोने और कमजोर पड़ने से ,जो उन्होंने गलती की है ,उनकी सजा उन्हें मिल जाएगी और न ही तेरे बच्चों का हिस्सा तुझे मिल पायेगा ।
अब हिस्सा लेकर भी क्या करूंगी ?जब वो ही नहीं रहा ,अब मेरा उसके परिवार से कोई मतलब नहीं रहेगा ,जब तक वो था ,वो अपने परिवार से जुड़ा था ,उसके साथ ही, मैं भी थोड़ा जुडी हुई थी ,मुझे भी लगते थे ,कि वे मेरे अपने हैं ,उन पर मेरा अधिकार है और उस घर पर भी। जब वो लोग जमीन जायदाद के लिए ,अपने बेटे को मार सकते हैं, तो क्या ?मेरा ये अबोध अथर्व ! इसको मारना तो मामूली बात होगी।उसकी तरफ करुणा भरी दृष्टि से देखते हुए बोली। जब इसके पिता ने ही इसे अपना नहीं माना ,तब मैं उनसे कैसे किसी भी तरह की अपेक्षा रख सकती हूँ ?
बात तो नीलिमा की भी सही थी ,चंद्रिका ने सोचा -जब इसे ही कोई दिलचस्पी नहीं है ,तब मैं ही क्यों जबरदस्ती करूं ? हो सकता है ,जो ये कह रही हो ,सही हो। जो गया ,अब वापिस तो आ नहीं सकता ,सोचकर वो चुप हो गयी। मन ही मन सोच रही थी ,अभी ये अचानक हुए ,इस हादसे से डरी हुई है ,पता नहीं ये अकेले सब कैसे संभालेगी ?तभी उसे स्मरण हुआ- नीलिमा ने तो एक लड़की भी रख रखी थी ,वो कहीं नहीं दिख रही। नीलिमा अक्सर उसके विषय में फोन पर भी चर्चा करती रहती थी। नीलिमा !
जी दीदी !
तेरी वो बच्चों को संभालने वाली लड़की कहाँ चली गयी ?तू तो कहती थी -'कि वो तेरी बहुत सहायता करती है ,ऐसे में उसे तेरे संग होना चाहिए था और वो मुझे दिख ही नहीं रही।
मैंने कल रात्रि को उसे दो -तीन दिन की छुट्टी दे दी थी ,मुझे क्या मालूम था ?ऐसा कुछ हो जायेगा। उसे आप छोडो ! कल आप मेरे साथ बैंक चलना , घर में पैसे भी नहीं हैं ,बैंक से पैसे भी निकालने हैं।नीलिमा सोच रही थी - उसके बैठने से अब काम तो नहीं चलेगा ,अब तो उसे वो कार्य भी करने होंगे ,जो धीरेन्द्र करता था। एक बात पूछूं, दीदी !
पूछो !
मैं अकेली ये सब कैसे सम्भालूंगी ? अब तो मुझे कमाई की भी चिंता हो रही है ,मुझे तो कोई न कोई नौकरी भी ढूँढ़नी होगी। दीदी! अब तो सोचकर ही ड़र लग रहा है ,ये सब कैसे सम्भालूंगी ? ये सब सोचते और रोते हुए सो गयी। अगले दिन जब उठी ,घर सूना लग रहा था , बच्चों के लिए खाने को कुछ बनाया थोड़ी घर की साफ -सफाई की।
तब तक चंद्रिका भी उठकर आ चुकी थी ,नीलिमा को सफाई करते देख ,उसने कहा -अब अपनी उस कामवाली को बुला ले ,तू अकेली ,ये सब कैसे करेगी ? तुझे बाहर भी चलना है ,क्या नाम है उसका ?
चम्पा......
हाँ तो ,उसे फोन करके बुला ले ,आजकल तो सभी के पास फोन होते हैं। नीलिमा उसे बुलाना तो नहीं चाहती थी किन्तु अब समय और परिस्थिति बदल चुकी थी ,ऐसे समय में कोई नई कामवाली भी नहीं मिलेगी। वो ही अभी तक बच्चों को भी अच्छे से संभालती आई है ,सब जानती है ,कौन क्या खाता है ?किसको, किस समय में किस चीज की आवश्यकता है ?तब नीलिमा ने बहन के दबाब देने पर चम्पा को बुला ही लिया।
चम्पा जब आई ,और उसे पता चला -कि साहब नहीं रहे ,वो तो एकाएक सदमे में आ गयी।कुछ देर तक ,इसी तरह बैठी रही।
उसे देखकर चंद्रिका ने पूछा -तुझे क्या हुआ ?
कुछ नहीं ,सुनकर एकदम से विश्वास नहीं हो रहा ,परसों रात्रि को तो मैं यहीं थी ,जब दीदी.....
चम्पा कुछ आगे कहती ,उससे पहले ही ,नीलिमा बोली -अब ज्यादा बातें न बना ,मैंने घर में सफाई भी कर दी है ,अब बस तुझे अथर्व जब उठेगा उसे खाना खिलाना होगा। आज मैंने अपनी दोनों बेटियों को स्कूल नही भेजा ,उनका नाश्ता भी मैंने अपने नाश्ते के साथ ही बना दिया है , उसे कुछ विशेष बातें समझा कर नीलिमा बहन के साथ बाहर आ गयी।
तूने बड़ी जल्दी अपने को संभाल लिया, चंद्रिका हैरत से बोली।
क्या करती ? कब तक रोती रहूँगी , रोने से तो कोई खाने को तो नहीं दे जायेगा ,इसीलिए जितना जल्दी अपने को संभाल सकते हैं ,संभाल लो ! नीलिमा ने स्कूटी बैंक के सामने खड़ी की और दोनों बहनें अंदर जा पहुंची। धीरेन्द्र ने नॉमिनी नीलिमा को ही बनाया हुआ था किन्तु जब उसने अकाउंट में पैसे देखे तो उसका सिर चकरा गया ,सिर्फ आठ -दस हज़ार रूपये पड़े थे।
नीलिमा का चेहरा देखकर चंद्रिका को लगा ,अवश्य ही कोई गड़बड़ है ,पूछा -क्या हुआ ?
ये देखो ! न जाने पैसे कहाँ लुटा रहा था ? अब बताओ !मैं इतनी जल्दी सब कैसे सम्भालूंगी ? इतनी जल्दी नौकरी भी नहीं मिलती ,कुछ कागजों की औपचारिकता पूर्ण करके वो बाहर आ गयी। इतना दुःख उसे तब नहीं हुआ जब धीरेन्द्र के न रहने की उसने ख़बर सुनी। इस समय उसे बहुत दुःख हो रहा था ,सोच रही थी ,बच्चों के लिए तो उसने कुछ सोचा ही नहीं ,''जो कमाया वो लुटाया ''मैंने भी ध्यान नहीं दिया। जैसा भी हो रहा है ,ठीक ही है। आज वो अपने को लुटा -पिटा महसूस कर रही है ,घर का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व उसके कँधों पर है। वो सब कैसे करेगी ? अभी तो ये भी मालूम नहीं ,कि जहाँ वो नौकरी करता था ,वे लोग भी कुछ देंगे या नहीं। कुछ समझ नहीं आ रहा कि कहाँ से शुरुआत करे ?जो व्यक्तिगत शिक्षा ग्रहण की ,उसका भी कोई लाभ होगा या नहीं ,सोचकर ही उसकी आँखों में आंसू आ गए।
इंसान चला जाता है, किंतु अपने पीछे छोड़ जाता है वो उत्तरदायित्व जिन्हें उसे जीते जी पूर्ण करना था। किंतु अब वही जिम्मेदारियां किसी दूसरे के कन्धों पर आ जाती हैं, जिनके विषय में उसने अभी तक सोचा नहीं था। इस वक़्त यही हालत नीलिमा की भी हो रही है। क्या वो अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभा पायेगी? उसे किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है? जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी