धीरेन्द्र के जाने पर ,सब कुछ अब नीलिमा को ही संभालना है। चंद्रिका भी कुछ दिनों तक उसके पास रहकर चली गयी। नीलिमा ने किसी स्कूल में पढ़ाने के लिए ,अपना आवेदन भी दिया है किन्तु अभी उन लोगों ने कोई सूचना नहीं दी है। वो अभी अपनी आने वाली ज़िंदगी की योजना बना रही है। कैसे बेटियों को उनके स्कूल भेजकर बेटे को, किसके पास छोड़ना है ?किसी काम की तलाश करनी है , वो अब चम्पा को अपने पास रखना नहीं चाह रही थी क्योंकि उसका वेतन भी तो देना होगा।
उधर पुलिस थाने में ,''इंस्पेक्टर विकास खन्ना ''के पास एक अनजान लड़की का फोन आता है और वो धीरेन्द्र के केस की छानबीन करने के लिए ,कह रही थी ,उसके अनुसार धीरेन्द्र की हत्या हुई है। लगता तो ,विकास को भी ऐसा ही था किन्तु जब किसी की रिपोर्ट नहीं की ,तब वो ही क्यों ?केस की तह तक जाये ?किन्तु जब से ये ग़ुमनाम फोन आया है ,वो कुछ सोचने पर मजबूर हो गया है।
थाने में हवलदार चेतराम और सिपाही ज़ोरावर सिंह भी हैं ,ज़ोरावर तो अभी थोड़ी देर पहले ही चाय और ''ब्रेड पकौड़ा ''लेकर आया है। तब वो कहता है ,साहब ! शायद किसी ने यूँ ही मज़ाक किया होगा।
ये कोई मज़ाक की बात नहीं ,अवश्य ही कोई सबूत तो उसके पास होगा ,जब वो लड़की इतने विश्वास से कह रही है कि उसकी हत्या हुई है। कौन हो सकती है ?वो लड़की ! कुछ सोचते हुए , विकास ने चेतराम से कहा -तुम जरा इस धीरेन्द्र के विषय में पता लगाओ !कि ये क्या चीज है ?
जी...... कहकर उसने जयहिंद किया और चल दिया किन्तु तभी विकास ने टोका -चाय तो पीते हुए जाओ !
आप पीजिये ,मैं चलता हूँ।
चम्पा अब मैं तुम्हें नहीं रख पाऊँगी ,क्योंकि साहब ,तो अब नहीं रहे ,कमाई का कोई जरिया दिखलाई नहीं पड़ रहा , कहीं से कुछ इंतज़ाम होता है ,तो मैं तुम्हें फिर से बुला लूँगी।
जी..... दीदी ! एक बात पूछूं ! उस रात आप कहाँ गयीं थीं ?
किस रात ?
जिस रात्रि को आपने मुझे तीन -चार दिन की छुट्टी दी थी।
उसकी बात सुनकर ,नीलिमा लगभग उस पर चीखी -देख !तुझे मैंने ,घर की सदस्या की तरह रखा है ,तेरा जितना काम है उतना कर.... ज़्यादा किसी भी बात में ज़बान मत चलाना , कुछ सोचते हुए,अपने व्यवहार को संभालते हुए ,नम्रता से बोली -उस रात्रि को तो मैं ,अथर्व के डॉक्टर से मिलने गयी थी ,देख उस रात्रि की याद मुझे मत दिला ,उसी रात्रि ने ही तो मेरा सब कुछ छीना है। अब तू जा...... जब तेरी जरूरत होगी ,तुझे बुला लूँगी। जब चम्पा जाने लगी ,तभी नीलिमा ने पीछे से पुकारा -सुन..... तू क्या समझती है ? मुझे कुछ नहीं मालूम ,मैं सब जानती हूँ। चम्पा ने एक नजर नीलिमा को देखा और चुपचाप चली गयी। चम्पा को इस तरह बोलने का नीलिमा का उद्देश्य था कि वो ज्यादा ज़बान न चलाये और उससे डरी रहे।
अगले दिन नीलिमा की बेटियाँ अपने स्कूल गयी हुई थीं ,नीलिमा अपने घर के कार्य निपटा रही थी। तभी दरवाजे की घंटी बजी। नीलिमा ने दरवाजा खोला ,कोई अनजान व्यक्ति उसके घर के दरवाजे पर खड़ा था। जी कहिये !आप कौन ?
अरे तूने मुझे पहचाना नहीं ,मैं तेरे मामा का लड़का, सूरज !
नहीं ,मैं नहीं जानती ,आज से पहले तुम्हें मैंने कभी नहीं देखा।
अब अंदर तो बुला लो ! कहते हुए ,स्वयं ही अंदर आ गया।
मैं तो तुम्हें जानती ही नहीं ,अरे ,तुम कैसे जानोगी ? जब से बुआ का विवाह हमारे फूफा से हुआ है ,तब से वो तो आई ही नहीं। मेरे बाप अक्सर तुम्हारी माँ यानि हमारी बुआ का ज़िक्र करते ,हमारी भी इच्छा होती कि अपनी बुआ से मिला जाये।
तुम यहाँ क्यों आये ?तुम्हारी बुआ यहां नहीं रहती ,मैं उनकी बेटी हूँ।
हाँ -हाँ मैं जानता हूँ ,मैं बुआ से भी मिला ,तभी तुम्हारे बारे में उन्होंने बताया ,सुनकर बहुत दुःख हुआ ,मुझसे तो रहा नहीं गया। नीलिमा को लगा -शायद ये सही कह रहा हो ,फिर भी एक बार मम्मी से बात कर लेना ही बेहतर है। अभी नीलिमा ये सब सोच रही थी ,तभी सूरज बोला -अब खड़ी क्या हो ?कुछ चाय -पानी पूछोगी, कि नहीं।
नीलिमा रसोई में चाय बनाने चली गयी और वहीँ से पूछा -तुम लोग तो मेरे विवाह में भी नहीं आये ,अब अचानक हमारी याद कैसे हो आई ?
अब क्या बतायें ?फूफाजी तो हमें अपने लेवल का मानते ही नहीं ,मेरे पिता अकेले ,सारी बहनों के ब्याह के बाद ,जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ ,समझदार हुआ ,तब वो बताते थे ,कि मेरी बुआ कहाँ -कहाँ गयी हैं ? तुम्हारे पिता ने तो हमसे कोई संबंध रखा ही नहीं ,हमें कैसे पता होता ?कि तुम लोग कहाँ रहते हो ?तब एक दिन बाबा के पास एक नंबर मुझे मिला ,तब मैंने उस नंबर पर कई बार फोन किया ,तब जाकर पता चला कि ये नंबर तो पार्वती बुआ का है। एक दिन,अचानक उनसे मेरी बात हुई ,बेचारी !!!बड़ा रो रही थीं। हमने सोचा ,हमसे मिलने की ख़ुशी में रो रही हैं ,तब बातो ही बातों में उन्होंने बताया कि तुम्हारे साथ दुर्घटना हुई है। तब हम ट्रैन में बैठे और आ गए ,बुआ से मिले उनसे तुम्हारे बारे में पूछा ,सोचा -'लगे लगाव तुमसे भी मिल लें। 'कहकर वो आराम से सोफे में पसर गया।
नीलिमा को ख़ुशी थी ,कि कोई तो अपना मिला जो उसके दुःख में शामिल होने आया है। चाय लाते हुए बोली - तुम क्या करते हो ?तुम्हारा विवाह हो गया।
हम अपना वो ही पुश्तैनी काम करते हैं ,खेती और भेड़ो को पालना। ब्याह की तो पूछो मत ,आजकल की मेहरारू को तो पैसे से मतलब है। इतनी लड़ाकू है ,मौहल्ले में भी उसका ख़ौफ है ,चुड़ैल है पूरी चुड़ैल !तुम्हारी तरह सीधी -साधी नहीं। तुम कितने प्रेम से बात करती हो ?
अपनी प्रशंसा सुनकर नीलिमा प्रसन्न हुई ,किन्तु मन ही मन दुःखी भी ,जिसे प्रशंसा करनी चाहिए थी उसने तो आजतक प्रशंसा की ही नहीं।
चाय नाश्ता करके ,उसने चारों तरफ देखा और बोला -घर में और कोई नहीं है।
हैं न ,मेरी दोनों शैतान बेटियाँ ,अपने स्कूल से आने ही वाली हैं और ये बेटा !जो तुम्हारे सामने खेल रहा है। तुम अभी इसके साथ बातें करो ,मैं अभी आती हूँ कहकर वो ऊपर के कमरे में आ गयी और अपने घर फोन लगाया। संयोग से फोन उसकी मम्मी ने ही उठाया -हैलो ,मम्मी !क्या हमारे मामा का भी कोई लड़का है ?
हाँ ,है तो....... तू ये सब क्यों पूछ रही है ?
वो इसीलिए ,हमने कभी मामा को ही नहीं देखा ,तब उनका बेटा कैसे पहचानूँगी ? उसका क्या नाम है ? क्या वो अभी आपसे मिलने आया था।
हाँ ,आया तो था ,पता नहीं ,कहाँ से उसने हमारा पता निकाला ?और आ गया। चलो !अच्छा ही हुआ ,घर की ख़ैर -ख़बर मिल गयी ,अब मेरी माँ तो रही नहीं ,पिता की भी बहुत उम्र हो गयी ,पता नहीं कब चल बसें ?
मम्मी ! मैं ये सब इतिहास नहीं पूछ रही ,क्या उसका नाम सूरज है ?आपने उसे मेरे घर का पता दिया।
हाँ सूरज ही तो नाम है ,उसका !मैं भूल रही थी ,तेरा पता तो मैंने उसे दिया ही नहीं ,बस ये बताया था ,कि तू कहाँ रहती है ?
नीलिमा ने माथा पीटा और बोली -और पता किसे कहते हैं ?अब वो यहाँ आ गया है।
कुछ नहीं ,वो तुम्हारे दुःख में तुमसे मिलना चाहता होगा ,पहली बार मिलने आया है ,चला जायेगा। उन्हें अपने भतीजे के आने की इतनी ख़ुशी थी ,उन्होंने कुछ और सोचा ही नहीं, कि अकेली लड़की कैसे संभालेगी ?नीलिमा ने भी कुछ कहना ठीक नहीं समझा,आया है ,तो जायेगा भी, यही सोचकर चुप हो गयी।
नीलिमा अपने बेटे के पास गयी ,तो वो चुपचाप बैठा था और सूरज सो गया था। नीलिमा ने सोचा -शायद ये सफ़र से थक गया होगा सो नींद आ गयी होगी।उसके पश्चात वो अपने काम में लग गयी ,अब उसे ये विश्वास तो हो ही गया था कि ये उसके मामा का लड़का ही है।
नीलिमा ने ये तो अच्छा किया जो सूरज का पता लगवा लिया वरना किसी भी अंजान व्यक्ति को इस प्रकार घर में बुलाना उसके लिए सही नहीं था। कुछ अपने रिश्ते ही तो होते हैं जो बुरे समय में साथ खड़े दिखलाई देते हैं। क्या ये रिश्ता भी ऐसा ही है, जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी