नीलिमा,अपनी बेटियों को उनके स्कूल भेजकर , घर के कार्य निपटा रही थी ,तभी उसके घर में कोई अजनबी आता है ,और उसे अपना परिचय देता है, कि वो उसके मामा का लड़का है। किन्तु इससे पहले नीलिमा ने न ही ,कभी मामा को देखा ,न ही उनके बेटे को...... तब भी वो ज़बरदस्ती घर में घुस ही जाता है। उसे उस व्यक्ति पर विश्वास नहीं होता ,तब वो अपनी मम्मी को फोन करके पूछती है , तब उसे पता चलता है ,कि सच में ही ,कोई सूरज नाम का उसके मामा का लड़का है। वो इस बात से निश्चिन्त होकर ,अपने घर के कार्य में जुट जाती है। सूरज सो जाता है ,लगभग दो घंटे बाद उसकी बेटियां आ जाती हैं। उनकी आवाज सुनकर सूरज उठ जाता है।
ओह ! तो ये तुम्हारी बेटियां हैं।
हाँ ,कहकर नीलिमा ,जो उनके बैग थामे हुए थी ,लेकर अंदर गयी।
मम्मा ये कौन है ?
मेरे मामा का बेटा है ,तुम्हारे मामा लगते हैं।
ये क्या बात हुई ?आपके मामा ,हमारे मामा ,कितने सारे मामा हो गए ?
अपनी बेटी की बात सुनकर नीलिमा हंसी ,एक ही मामा है वो भी तुम्हारा ,ये मेरा मामा नहीं ,तुम्हारा मामा लगता है, कहकर उन्हें बिठाकर खाना खिलाने लगी , सूरज को भी खाना दिया।
अब तुम क्या करोगी ? खाना खाते हुए ,सूरज ने पूछा।
मतलब !मैं कुछ समझी नहीं।
इसमें न समझने की बात ही क्या है ?पति तो तुम्हारा अब रहा नहीं ,सासरे जाओगी या यहीं रहोगी।
ससुराल तो नहीं जाऊँगी , हाँ ! ये अवश्य है , यदि ये मकान मुझे छोड़ना पड़ गया ,तब सोच रही हूँ ,कहाँ जाऊँगी ? अभी तो कहीं नौकरी भी नहीं मिली ,परेशानी तो है ही ,तुम यहाँ रहो तो ,मैं थोड़ा इधर -उधर घूम आऊं ,धक्के तो खाने ही पड़ेंगे ,घर बैठे तो कोई खाने को नहीं दे जायेगा। नौकरी के लिए बाहर तो जाना ही होगा ,किसी को क्या मालूम ?मुझे नौकरी की सख़्त जरूरत है।
तुम परेशान तो न हों ,वो उसके करीब आया ,तब तक कल्पना और शिवांगी अपने कमरे में जाकर अपना गृहकार्य करने में व्यस्त हो गयीं थीं। अथर्व का होना न होना समान था ,वो तो कुछ महसूस ही नहीं कर पाता था। सूरज उसके पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोला -तेरे साथ मैं हूँ ,न..... तुझे कुछ नहीं होने दूंगा। अब मैं आ गया हूँ ,दोनों साथ रहेंगे, मिलकर सभी काज करेंगे।
मतलब ,मैं कुछ समझी नहीं ,तुम यहाँ रहोगे तो तुम्हारे बीवी बच्चों का क्या होगा ? उनकी वे देख लेंगे ,अब तो मैं यहीं रहूंगा कहते हुए उसने नीलिमा का हाथ अपने हाथ में लिया। हम दोनों एक -दूसरे का सहारा बनेंगे। मैं तो तुम जैसी पत्नी ही चाहता था ,अब तुम मिल गयी हो तो हम एक हो जायेंगे ,कहकर उसने नीलिमा को अपनी बाजुओं में भरना चाहा। इस तरह अचानक उसके बदले व्यवहार से नीलिमा हतप्रभ रह गयी।
ये तुम क्या कर रहे हो ?कहते हुए ,उसने उसे झटका दिया और उस स्थान से उठ बैठी।
मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ ,तुम नहीं जानती -''मैं तुमसे कितना प्यार करने लगा हूँ ?
तुम होश में तो हो ,तुम मेरे मामा के लड़के हो ,इस रिश्ते से तुम मेरे भाई हुए ,तुम मेरे विषय में ऐसा सोच भी कैसे सकते हो ? तुम तो पहले से ही शादीशुदा हो।
हाँ, बस यही तो गलती हो गयी ,इससे पहले तुम्हारा पता नहीं चला वरना तुमसे ही ब्याह रचाता।
नीलिमा ने मुँह बनाते हुए कहा -तुम हो कौन ?पहले भी पता चल जाता तो क्या मैं तुमसे ब्याह करती ?कुछ तो शर्म करो !रिश्ते में तुम मेरे भाई हो।
हम लोगों में ये सब चलता है ,मामा बुआ के बच्चों का ब्याह हो जाता है ,अब भी कुछ नहीं बिगड़ा ,दोनों साथ रहेंगे, किसी को कुछ पता भी चलेगा कहकर उसने नीलिमा को लपककर पकड़ लिया और उसके साथ अश्लील हरकतें करने लगा।
तब नीलिमा को लगा,' रिश्ता तो बाद में देखा जायेगा ,जब इसे ही रिश्ते की कदर नहीं ,तो मैं ही क्यों ?इससे रिश्ता निभा रही हूँ ,सोचकर उसने जोर से उसके मुँह पर तमाचा जड़ दिया। तमाचा जोरदार था, जिसकी गूंज से एक बार को तो वो अलग हो गया तभी नीलिमा उठी और बोली -तुम ,निकलो मेरे घर से ,और आइंदा यहाँ कभी भी कदम मत रखना। तब भी वो ढीठ सा खड़ा रहा ,उसे इस बात पर विश्वास था ,ये अकेली औरत, मेरा क्या बिगाड़ लेगी ?उसे वहीं खड़े देख एक बार को तो नीलिमा ड़र गयी कि मैं किस तरह से इसका सामना करूंगी ?फिर भी उसने साहस से काम लिया और लगभग चिल्लाते हुए बोली -अभी तुम गए नहीं ,मेरे घर से बाहर...... कहकर वो तेजी से आंगन की ओर भागी और वहाँ से एक बड़ी सी डंडी उठा लाई और खींचकर ,उसके मारी ,उसकी चोट से वो बिलबिला गया।
गाली देकर बोला -सल्ल्ल्ल्ली विधवा !मेरे को मारती है ,कुत्तिया !तुझे कोई कुत्ते के बराबर भी न पूछे ,मैंने समझाया ,समझ नहीं आया।
तू भागता है या दूँ एक और खींचकर ,कहकर वो आगे बढ़ी ,शोर मचा दिया न ,तेरे शरीर पर ये कपड़े भी नहीं बचेंगे। जाता है कि नहीं ,मुझे कोई पूछे या न पूछे किन्तु अब इधर कदम मत रख देना। नीलिमा का इस तरह का रौद्र रूप और उसकी शोर मचाने की धमकी ने उस पर असर किया और वो बाहर की ओर भागा। नीलिमा भी उसके -उसके पीछे आई ,जब तक की वो दहलीज़ से बाहर नहीं चला गया ,उसके जाते ही नीलिमा ने अपने घर का दरवाजा बंद किया ,उसका शरीर काँप रहा था। अपने को संयत करने के लिए,कुछ देर ऐसे ही बैठी रही ,उसकी सांसे अभी भी तेज़ चल रही थीं तब उसने पानी पीया। उस डंडी को फेंककर ,कुछ देर इसी तरह बैठी रही। थोड़ा शांत होकर उसने अपने बेटे की तरफ देखा जो अभी भी ,ऐसे ही बैठा था ,हाँ ,अपने कपड़े जरूर गीले कर लिए थे।
नीलिमा ने उसके कपड़े बदले ,और पुनः उस डंडी को उसी स्थान पर रख दिया ,मन ही मन सोच रही थी ,शायद अब मुझे ऐसी परिस्थितियों के लिए भी तैयार रहना होगा कहकर उस डंडी को पुनः निहारा ,आगे भी इसकी आवश्यकता पड़ सकती है , उसने अपने आपसे कहा।
कैसे लोग हैं ? औरत अकेली देखी नहीं ,कि लगे, लार टपकाने..... ऐसे कमीनों को औरत में ,उसकी भावनाएं, रिश्ते ,उसकी परेशानी ,कुछ नहीं दिखता ,दिखता है तो उसका शरीर ,इस कमीने ने तो रिश्ते का भी लिहाज़ नहीं रखा ,आते ही अपनी औकात दिखा दी ,सबसे बडे दुश्मन तो अपने ही हो जाते हैं ,सास -ससुर ,जेठ कहने को तो अपना ही परिवार है किन्तु पड़ोसी भी एक बार आकर पूछ लें ,उन्होंने तो पूछा भी नहीं।
ये क्या हो गया जो मामा का लड़का था, जिससे सहारे की थोड़ी उम्मीद लगा बैठी थी। वो ही उसके चरित्र को डसने चला था। आज एक छड़ी ने उसे बचा लिया क्या ये आगे भी काम आयेगी? क्या ये नीलिमा की परेशानियों की शुरुआत है? जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी