नीलिमा आज एक नई स्थिति से गुजरी है ,बाहर के शोर के कारण ,उसकी बेटियां बाहर आती हैं और पूछती हैं ,मम्मा बाहर से ,कहीं से शोर आ रहा था, क्या हुआ था ?
कुछ नहीं बेटा ,पहले हुआ था ,अब नहीं है ,उसे समझाते हुए सुनो !अब आवाज आ रही है।
नहीं।
चलो तो..... अब अपना काम पूरा कर लो !
नहीं मम्मा ! मेरे को मैथ्स में कुछ समझ नहीं आ रहा ,आप मुझे समझा दीजिये।
नीलिमा अभी भी अपने में नहीं थी ,उसका मन अभी नियंत्रित नहीं था ,वो अभी तक सहज महसूस नहीं कर पा रही थी। उसे लग रहा था ,अभी उसका दिमाग काम नहीं कर रहा है। वो अभी उसे नहीं समझा पायेगी ,सोचकर बोली -बेटा ,मेरा मन ठीक नहीं है ,अभी आप कोई दूसरा विषय पढ़ लो !
और सब तो मैंने पढ़ लिया।
ठीक है ,अब अपने भाई के साथ खेलो !तब तक मैं और कार्य निपटाती हूँ। कहकर वो चली गयी ,मन ही मन सोच रही थी ,चलो ,बेटियां ! कहना तो मानती हैं किसी भी तरह की ज़िद नहीं करतीं। तभी उसे एक महाशय का स्मरण हो आया ,वो मुझे ,एक बार बैंक में मिले थे आपस में बातचीत हुई ,तो मुझसे बहुत ही प्रभावित हुए थे। अपना नंबर भी दिया था ,शायद वो मेरी कोई सहायता कर दें ,सोचकर नीलिमा फोन नंबर ढूंढ़ने लगी। कुछ देर पश्चात ही नंबर मिल गया और उसने उन्हें फोन लगा दिया ,उधर से आवाज आई -हैलो !
नमस्ते अंकल !मैं..... ''नीलिमा सक्सैना '' आपसे एक माह पहले एक बार बैंक में मिली थी।
ओह हाँ ! याद आया ,कहो ! इतने दिनों पश्चात कैसे याद किया ?उस दिन के बाद से ,तुमने तो एक बार भी फोन नहीं किया ,और कहो ! कैसी हो ?
अंकल मैं कुछ परेशानी में चल रही थी ,इसीलिए समय ही नहीं मिल पाया ,आज समय मिला तो सोचा ,आपसे बात कर लूँ।
अच्छा किया ,मेरे पास तुम्हारा नंबर भी नहीं था ,वैसे कैसी परेशानी ?मेरे लायक कोई काम हो तो बताना।
इसीलिए तो ,आज आपको कष्ट देने के लिए फोन किया।
कष्ट कैसा ?तुम मेरी बेटी जैसी हो ,निःसंकोच कह सकती हो ,मेरे बस में होगा तो अवश्य ही कुछ करूंगा ,वैसे तुमने बताया नहीं ,कैसी परेशानी ?
तब नीलिमा ने उन्हें अपने पति के न रहने और अब आर्थिक परेशानी आगे न हो, इसके लिए ,उनसे कहा -आपकी नजर में कोई ऐसी जगह हो, जहाँ मैं नौकरी कर सकूं।
उसकी बातें सुनकर दत्ता साहब थोड़े गंभीर हो गए और बोले -तुम इतना परेशानी में हो ,हमें अब तक बताया नहीं ,तुमने हमें अपना समझा ही नहीं।
उनकी प्यार भरी बातें सुनकर नीलिमा को ,रोना आ गया ,नहीं अंकल जी ! ऐसी कोई बात ही नहीं। एक के बाद एक परेशानी आती चली गयी। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था ,क्या करूं ?कहाँ जाऊं ?तभी अचानक आपका ख्याल आया तो सोचा ,शायद आप मेरी कुछ मदद कर सकें।
अच्छा ये बताओ !तुम कहाँ तक पढ़ी हो ,क्या कोई कोर्स भी किया है ?या इससे पहले कोई नौकरी की हो , कोई अनुभव है।
नहीं अंकल ! मैं जब इंटरमीडिएट कर रही थी ,तभी पापा ने विवाह तय किया ,यहाँ आकर स्नातक किया और परा स्नातक कर ही रही थी कि घर के उत्तरदायित्व बढ़ते गए ,उन कर्त्तव्यों को पूर्ण करने में वो पढ़ाई भी बीच में ही छूट गयी। तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी ऊपर से बेटा बिमार ,समय ही नहीं था किन्तु अब इनके भरण -पोषण के लिए ,समय तो निकालना ही होगा , कहकर उसकी रुलाई फूट पड़ी ,वो अपने को कितना असहाय महसूस कर रही थी ? आज उसके साथ कोई नहीं खड़ा था ,अकेली खड़ी ,उस रणक्षेत्र को देख रही थी, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। इतना बड़ा रणक्षेत्र ,उसमें न दिखने वाले अनजान दुश्मन ,पता नहीं कब ,कहाँ से, कौन आक्रमण करे ? वो अपने बच्चों को अपनी आड़ में लेकर, उनकी सुरक्षा के लिए ,तत्पर खड़ी है। उसके पास कोई हथियार भी नहीं किन्तु वो अपनी आख़िरी साँस तक लड़ना चाहती है ,अपने बच्चों के लिए निर्भीक हिरणी सी खड़ी है।
कुछ देर तक नीलिमा कुछ नहीं बोली -तब उधर से आवाज आई ,बेटा क्या सोच रही हो ?
कुछ नहीं ,अंकल जी ! हताश स्वर में नीलिमा बोली।
उसकी आवाज को पहचानते हुए दत्ता जी बोले -हताश होने की आवश्यकता नहीं ,कोई भी ऐसी चीज जो तुम मन से करती थीं या जिसे करने में ,तुम्हें ख़ुशी मिलती हो।
नीलिमा ने कुछ देर अपनी स्मरण शक्ति पर जोर दिया और बोली -मैं ड्राइंग ,क्राफ्ट अच्छा करती थी ,पांचवी तक तो मैं सभी विषय पढ़ा भी सकती हूँ।
हूँ.... कुछ सोचते हुए बोले -मेरे एक जानने वाले हैं ,मेहरा जी ,उनका स्कूल है ,मैं उनसे बात कर लूँगा। तुम उनके स्कूल में चली जाना ,वे अवश्य ही तुम्हें कोई न कोई कार्य दे ही देंगे।
ठीक है ,अंकल !नीलिमा के दिल को सुकून मिला ,मन में , एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और उसी प्रसन्नता में बोली -आपका बहुत बहुत धन्यवाद !आप नहीं जानते ,आपने मेरी कितनी बड़ी समस्या हल कर दी ?
ऐसी कोई बात नहीं है ,तुम कल उनके पास जाकर उनसे मिल लेना और उन्हें बता देना कि दत्ता जी ने भेजा है।
जी अंकल जी !मैं कल उनसे मिलने जाऊँगी और आपको आकर बताती हूँ कि क्या हुआ ?
ओके -ओके कहकर उन्होंने फोन रख दिया।
नीलिमा खुश थी ,अभी तक जो समस्या उसका सिरदर्द बनी हुई थी ,उसे भी वो भूल गयी ,उसे तो लग रहा था जैसे उसके हाथ आसमान लग गया हो ,अब तो सभी किले जीत लेगी। तभी अपनी बेटी को आवाज़ लगा ते हुए बोली -कल्पना.... कल्पना !
कल्पना दौड़ती हुई आई ,जी मम्मा ! अपनी माँ को खुश देखकर उसे भी ख़ुशी हुई ,कुछ देर पहले उसने अपनी माँ को उदास देखा था किन्तु अब नीलिमा खुश थी उसे देखकर बोली -मम्मा क्या हुआ ?
लाओ !अपना गृहकार्य ले आओ !उसे पूरा कर लेते हैं ,तब तुम्हारी पसंद की कोई अच्छी सी चीज बनाऊँगी।
लगता है ,अब नीलिमा की समस्याओं का हल मिल गया । क्या ऐसा हो जायेगा? अब नीलिमा की ज़िंदगी सुचारु रूप से सही दिशा ले लेगी या और भी समस्याओं का सामना नीलिमा को करना पड़ जायेगा। जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी