कुछ पल में लगता है ,''जिंदगी में कुछ भी नहीं ,हमीं हैं ,जो ज़िंदगी को इतना मुश्किल बना देते हैं, किन्तु ज़िंदगी ऐसा समझने की, हमारी भूल को, तुरंत ही सुधार भी करती नजर आती है ,कि ज़िंदगी को इतने हल्के में न लें।'' नीलिमा आज साक्षात्कार के लिए ''मेहरा जी '' के स्कूल में आई है। उसे वो नौकरी दत्ता साहब की सिफारिश पर मिल तो गयी किन्तु अब बेटे को कहाँ छोड़ें ?ये समस्या ,सामने आन खड़ी हुई। यहाँ की ''प्रधानाचार्या जी ''ने तो स्पष्ट शब्दों में ,स्कूल के नियमों का वास्ता देते हुए, 'अथर्व को ',स्कूल में लाने से इंकार कर दिया। गलती उनकी भी नहीं है ,सभी के साथ समस्यायें हैं। स्कूल के भी कुछ नियम होते हैं ,नियम बनाये ही इसीलिए जाते हैं ,ताकि उन नियमों का उलंघन न हो।
नीलिमा को प्रधानाचार्या जी की बात का, बुरा नहीं लगा ,वो स्कूल चलाने बैठी हैं ,न कि समाज -सेवा करने ,सोचते हुए ,वो बाहर आ गयी और उन माईजी को ढूंढने लगी ,जिन्हें वो अपना बेटा सौंपकर आई थी। जब वो नहीं दिखीं ,एक बार को तो वो हिल गयी ,कहीं गलती से मैंने किसी गलत हाथों में ,अपना बेटा तो नहीं दे दिया।
उसकी नजरें तेजी से चारों ओर घूम रही थीं ,तभी वो दूर किसी कक्षा से बाहर आती दिखी ,नीलिमा के मन को राहत मिली और उसके समीप गयी। मैं आपको ही ढूँढ रही थी ,मेरा बेटा कहाँ है ?
जी उसे तो ,मैंने एक ख़ाली कमरे में सुला दिया है , वो तो मेरी गोद में ही सो गया था ,इस तरह उसे लिए ,बैठे नहीं रह सकती थी ,मैडम जी ! ने भी बुलाया था।
चलो ठीक है ,उसने तुम्हें तंग तो नहीं किया।
नहीं जी ,वो तो बड़ा सीधा है ,मैंने ऐसा शांत बच्चा तो देखा ही नहीं ,उसे कुछ दिक्क़त तो नहीं ,इतना बड़ा बच्चा तो अपनी माँ के लिए रोने लगता है किन्तु उसने तो जैसे कुछ महसूस ही नही किया।
उसकी बातों को सुनकर नीलिमा को लगा ,शायद ये मेरी बात को समझे ,मेरी समस्या का हल निकले ,उसके पीछे चलते हुए बोली -मेरा बच्चा बड़ा सीधा है ,अभी वो कुछ भी समझ नहीं पाता है ,अभी उसका इलाज़ भी चल रहा है किन्तु समस्या ये नहीं है ,समस्या ये है ,कि जब मैं स्कूल में पढ़ाने आऊँगी, तब इसे कहाँ छोडूंगी ?
आपकी नौकरी लग गयी ?
नीलिमा ने हाँ में गर्दन हिलाई।
ये तो बड़ी अच्छी बात है।
हाँ ,लगी तो है।कहते हुए नीलिमा ,उसके इशारे पर उस कमरे में गयी ,जहाँ उसका बेटा अभी भी सो रहा था। उसने उसे उठाया और मेरा लाल !कहकर उसे सीने से लगा लिया।
क्या आपके घर में कोई बड़ा नहीं है ? जैसे दादी -बाबा ,या फिर बुआ.... नीलिमा ने 'नहीं' में गर्दन हिलाई।
मैं सोच रही थी ,इसी तरह तुम्हारे पास छोड़ दूँ तो.... या फिर कोई ऐसी जगह मुझे बता दो ,जहाँ किसी पर विश्वास किया जा सके और इसे सम्भाल ले। आधे दिन की ही तो बात है।
मैं तो रख लूँ , मैडम जी !किन्तु मुझे तो काम से कभी कोई ,कभी कोई बुला ही लेता है ,इसके दादी -बाबा नहीं हैं तो इसकी नानी तो होगी ,उन्हें बुला लो !'' माँ ''बेटी की परेशानी को समझेगी भी।
अरे हाँ ! ये तो मैंने सोचा ही नहीं ,अच्छी सलाह दी किन्तु जब तक मम्मी नहीं आ जातीं ,तब तक तुम संभाल लोगी नीलिमा ने उसकी चिरौरी की।
जी.... एक -दो दिन तो संभाल लूँगी किन्तु अपनी माताजी को जल्दी ही बुला लेना ,किसी दिन प्रधानअध्यापिका मैडम ने देख लिया तो मेरी भी छुट्टी हो जाएगी।
नहीं होगी ,मैं आज ही जाकर ,मम्मी को फोन करती हूँ , नीलिमा खुश होते हुए बोली। ''ईश्वर एक रास्ता बंद करता है ,तो दूसरा खोल भी देता है। ''वो मन ही मन सोच रही थी ,उसने अब जल्दी -जल्दी अपने घर की ओर क़दम बढ़ाये। जब वो अपने घर के नजदीक रिक्शे से उतरी ,तब उसने देखा ,एक व्यक्ति उसके घर के आस -पास मंडरा रहा था। उसे देखकर नीलिमा चौंकी ,रिक्शे वाले को पैसे देकर अपने घर की ओर तेजी से बढ़ चली ,वो मन ही मन सोच रही थी -ये कौन हो सकता है ? जब तक वो घर के नजदीक गयी ,वो जा चुका था। नीलिमा ने आस -पास देखा ,कोई दिखलाई दे, तो उससे पूछूं।
घर का ताला खोलते हुए ,वो परेशान हो रही थी ,अंदर आकर अपने बेटे को दूध दिया ,अपने लिए चाय चूल्हे पर चढ़ाई ,तभी उसे ,उन माईजी की सलाह का स्मरण हो आया ,अपने कपड़े बदल हाथ में चाय का प्याला लेते हुए उसने अपने घर फोन कर दिया। हैलो !!
उधर से थोड़ी मधुर सी ,थोड़ी बनावटी सी आवाज आई ,हैलो दीदी ! नमस्ते , मैं रेखा बोल रही हूँ।
नीलिमा को स्मरण हो आया ,अब उस घर में ,हमारे आने के पश्चात ,मयंक की पत्नी रेखा भी आ चुकी है। अब तो मम्मी को इंकार करने का बहाना भी नहीं होगा क्योंकि अब रेखा जो आ गयी है। नमस्ते !कैसी है ?और दादा कैसे हैं ?
मैं ठीक हूँ ,आपके भाई भी ठीक हैं। एक बात पूछूं दीदी !
हाँ पूछो !
आप अपने भाई को दादा कहती हो ,उस हिसाब से मैं तो दादी हुई, कहते हुए वो हंसने लगी।
उसकी बात सुनकर नीलिमा को भी हंसी आ गयी। हँसते हुए बोली -बहुत हंसी -मज़ाक सूझ रहा है , हम तो कहने लगेंगे दादी किन्तु तुझे ही परेशानी होगी ,कि मुझे बूढी बना दिया। तुम खुश तो हो ,दादा तंग तो नहीं करते।
हाँ दीदी !मैं तो ठीक हूँ ,आप कैसी हो ?
एक ठंडी साँस भरते हुए नीलिमा बोली -मैं भी ठीक हूँ ,मम्मी क्या कर रही है ,वे कैसी हैं ?
वे भी कुशल से हैं ,अभी खाना खाकर अपने कमरे में लेटने गयी हैं ,उन्हें बुलाऊँ !
पहले तो नीलिमा ने सोचा -उन्हें आराम करने दो ,किन्तु उसका काम बहुत जरूरी है, यही सोचकर बोली -हाँ ,थोड़ी देर के लिए मम्मी को बुला लाओ !उनसे कुछ बात करनी है।
जी..... कुछ देर पश्चात ,नीलिमा की मम्मी ने फोन का रिसीवर पकड़ा और बोलीं -हैलो !
हैलो, मम्मी ! कैसी हो ?अपनी मम्मी की आवाज सुनकर नीलिमा को रोना आ गया ,अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए ,नीलिमा बोली -मम्मी आ जाओ !
आ जाऊं ,क्यों क्या हुआ ?
मम्मी अकेली पड़ गयी हूँ ,कुछ दिनों के लिए मेरे पास आ जाओ ! मैं अब स्कूल पढ़ाने जाऊँगी तो अथर्व को कौन रखेगा ?उसके साथ कौन रहेगा ?इसीलिए आप आ जातीं तो मेरी हैल्प हो जाती।
तू क्यों परेशान हो रही है ? मैं तेरे पापा से बात करती हूँ ,आ जाऊंगी।
ओके ,मम्मा !खुश होते हुए ,वो अपनी बेटी की तरह इठलाकर बोली। कल तक आ जाओगी।
कह तो रही हूँ ,तेरे पापा से कहूंगी और आ जाऊँगी।
ठीक है कहकर ,नीलिमा ने फोन रख दिया। नीलिमा के सिर पर से जैसे बहुत बड़ा बोझ उतर गया।
शाम को, जब नीलिमा के पिता घर आये -सुनो जी !नीलिमा का फोन आया था ,वो परेशान है ,किसी स्कूल में पढ़ाने जाने लगी है ,बेटे को किस पर छोड़कर जाएगी ?इसीलिए मुझे बुलाया है।
हम्म.... तुम क्या आया हो ? तुमने क्या कहा ?
मैंने कहा ,तेरे पापा से पूछकर आती हूँ।
तुम्हारा ,जाने का मन है ,जाओगी ! यहाँ कौन संभालेगा ? तुमने कैसे' हाँ 'कह दिया ?
बहु है ,न....
वो ,कल की आई ,वो ,कैसे सारा घर संभालेगी ?
वो भी तो अपनी बच्ची है ,आज वो परेशान है ,उसने हमसे कोई धन नहीं मांगा है,बस अपनी माँ का साथ माँगा है ,पता नहीं ,वो अकेली सब कैसे संभाल रही होगी ? माँ हूँ ,उसकी , उसके दर्द को नहीं समझूंगी तो किसके दर्द को समझूंगी ?
तुमने जाने का फैसला कर ही लिया है ,तो पूछ क्यों रही हो ?जाना चाहती हो तो ,बस में बैठो ,और चली जाओ !
अपने पति के जबाब से रुष्ट होकर ,पार्वती बोली -ये क्या बात हुई ?हमारी बेटी परेशानी में है ,आज हम उसके साथ खड़े नहीं होंगे तो कौन होगा ?
क्या नीलिमा के पिता अपनी पत्नी को, जाने की इजाज़त देंगे या नही नीलिमा क्या नौकरी करने जा पायेगी? जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी