जो लड़की घर से ,स्कूल और स्कूल से घर का रास्ता ही जानती है ,उसे एक लड़के ने ''प्रेम पत्र ''लिखा ,वो ''प्रेम पत्र ''ही था या कुछ और...... किसी लड़की को ,चुपचाप कोई पर्ची देता है ,तो वो ''प्रेम पत्र ''ही माना जाता है जो नीलिमा के लिए जी का जंजाल बन गया और नीलिमा ने उसे बिन पढ़े ही ,फाड़ दिया। वो प्यार तो क्या करेगी ?उसकी प्यार को समझने की , उम्र ही कहाँ थी ?वो तो ,लोगों सहेलियों के कथनानुसार उसे भी लगता कि कोई उसे चाहे और पत्र लिखे, किन्तु पापा की सख्ताई देखकर ,ड़र के कारण ,एक पत्र मिला भी ,वो पत्र बिना पढ़े ही फाड़ दिया और उस लड़के [लंगूर नीलिमा का दिया नाम ] से भी आगे से ,उसका पीछा न करने के लिए कह दिया। वो जानना चाहता था -कि नीलिमा ने उसका दिया पत्र पढ़ा कि नहीं।वो तो स्वयं भी उस पत्र को पढ़ना चाहती थी ,किन्तु तब तक देर हो चुकी थी।वो पत्र ही ,उसकी ज़िंदगी का पहला और आख़िरी पत्र था।
तुम आगे से ,मेरा पीछा कभी नहीं करना ,नीलिमा घबराते हुए बोली।
क्यों क्या हुआ ?आज से पहले तो, तुमने कभी भी इंकार नहीं किया।
तभी तो तुम्हारी इतनी हिम्मत बढ़ गयी कि मुझे पत्र लिख दिया ,तुम नहीं जानते ,मैंने कैसे -कैसे उसे छिपा कर रखा ? मेरे पापा या परिवार में किसी के भी सदस्य के हाथ लग जाता ,तो मुझे गोली मार देते। नीलिमा ने ,ये बात ,एक दिन पहले की बात स्मरण करके उससे कही।
नीलिमा का ड़र देखकर ,वो लड़का हंसा और बोला -तुम तो बहुत ही डरपोक हो ,जो प्यार करते हैं ,वो कभी ड़रते नहीं हैं। यदि तुम्हारे पापा ने कुछ कहा है ,तो माता -पिता तो ,इस तरह की धमकी, बच्चों को देते ही रहते हैं।
जी नहीं ,मेरे पापा धमकी नहीं देते ,वो आदमी को सीधा ही कर देते हैं। अब तो हमारे मौहल्ले में ,एक लड़की ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया ,अब देखना ! वो लोग नहीं बचेंगे और अब तुम भी मेरे पीछे मत आना।
वो अब भी मुस्कुरा रहा था ,बोला -तुमने मेरा पत्र पढ़ा।
नहीं...... न ही पढ़ना चाहती हूँ ,कहकर वो तेज़ गति से आगे बढ़ गयी। तभी नीलिमा को उसकी कही बात स्मरण हो आई ,उसने कहा था -''जो प्यार करते हैं ,वो डरते नहीं ''और मुझे तो बहुत ड़र लगा इसका अर्थ है -मुझे उससे प्यार हुआ ही नहीं था ,चलो ,अच्छा हुआ !कहकर अपने स्कूल के अंदर चली गयी।
जब वो अपने स्कूल से बाहर आई ,तब वो बाहर ही खड़ा ,मुस्कुरा रहा था ,उसे देखकर नीलिमा ने अपना मुँह फेर लिया ,उसका इस तरह उसे देखना अच्छा नहीं लगा ,वो भी उसे जाते देखता रहा किन्तु उसके पीछे नहीं आया। नीलिमा ने देखा ,अब वो उसके पीछे नहीं आता ,उसे अच्छा लगा -उसके दिल में जो पकड़े जाने का भय था ,अब उससे निज़ाद पा ली थी अब वो सुकून भरी ज़िंदगी जी रही थी। न ही किसी की प्रतीक्षा ,न ही पकड़े जाने का भय ,इन सबने उसे बहुत ही विचलित कर दिया था। अब वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर रही थी। इस वर्ष ''बोर्ड ''था ,एक सहेली उसे ऐसी मिल गयी। दोनों ही साथ बैठकर ,अपनी पढ़ाई करतीं। ट्यूशन के लिए ,उसके पापा के पास पैसा नहीं ,और नीलिमा के पापा लड़की की शिक्षा पर इतना ध्यान नहीं देते थे।
नीलिमा की दीदी ,जब भी आती -घर में ,हंसी -ख़ुशी का वातावरण बन जाता ,शुरू -शुरू में सब अच्छा लगता किन्तु धीरे -धीरे उनकी ज़िंदगी में ,कई बदलाव आये और वो अक़्सर परेशान रहने लगी। तब वो ,अपने पिता की बुराई कहो या शिकायत माँ से करती। पापा ने क्या देखा ?उसका तो घर भी छोटा सा है ,परिवार बड़ा है ,सास समय से खाना भी नहीं खाने देती। अपने घर में तो बंधन में रही किन्तु ससुराल में वो ,अपनी सोच और आज़ादी से जीवन जीना चाहती थी। जब भी कभी ,उसके घर में ,झगड़ा होता। अपने मायके आ जाती। वो बहुत कुछ ,अपनी माँ से बयान करती किन्तु नीलिमा से छुपाती। नीलिमा की परीक्षा हुई और वो बाहरवीं में ,अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण भी हुई। उस लड़के के पश्चात ,उसने प्रेम- प्यार ,मुहब्बत जैसे विषयों पर ध्यान देना और उन पर चर्चा करना ही छोड़ दिया है। स्नातक की पढ़ाई के लिए ,उसने दाख़िला लेना चाहा ,तभी उसके लिए रिश्ता आ गया।
मम्मी मुझे ,अभी विवाह नहीं करना ,अभी पढ़ाई करनी है।
क्यों ?विवाह कर ले ,उसके पश्चात भी तो पढ़ाई की जा सकती है मम्मी ने उसे समझाया।
विवाह के पश्चात ,उस घर -परिवार की ज़िम्मेदारियाँ आ जाएँगी ,पढ़ाई को समय ही कहाँ मिलेगा ?दीदी को भी तो पढ़ाया था।
हाँ ,पढ़ाया था ,जब तक कोई रिश्ता नहीं मिला था। तुम्हारी बहन ने ,इतना पढ़कर भी तो विवाह ही किया ,तब तुम्हें करने में क्या परेशानी है ?स्नातक करने के पश्चात भी तो ,विवाह ही करना है ,कौन सा हमें नौकरी करानी है।
मम्मी को इतना समझाने पर भी, वो पापा की ही बोली बोल रही थीं। नीलिमा को क्रोध आया -कैसा घर है ?कोई कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं , मम्मी ने यही बात पापा को बता दी।
पापा का कहना था -स्नातक करके ही क्या कर लेगी ?स्नातक करके भी तो विवाह ही करना है। लड़का अच्छा है ,अभियंता है ,हमने उससे' हाँ 'कह दी है।
अब तो कहने सुनने के लिए कुछ रह ही नहीं जाता ,ये उनका आख़िरी निर्णय था।
यह बात भी मेरी सहेली और रिश्तेदारों में ''जंगल में आग की तरह फैल गयी। ''नीलिमा का विवाह तय हो गया। उनके लिए आश्चर्य की भी बात थी अभी मैं अट्ठारह की हो ,उन्नीसवें में ही तो लगी थी। बाहरवीं पास की थी।
तभी दीदी भी दौड़ी -दौड़ी आईं और उनकी बातों से लगा कि उन्हें मुझसे ईर्ष्या हुई क्योंकि वो मम्मी से कह रही थीं -मेरे लिए तो ,ऐसा ही परिवार ढूँढ दिया , जिनका परिवार इतना बड़ा और सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी इन्हीं के ऊपर है। मेरे लिए ऐसा अच्छा घर -परिवार क्यों नहीं ढूँढ़ा ?
माँ मेरे इस रिश्ते से प्रसन्न थीं ,इसीलिए दीदी से बोलीं -तेरे समय पर जो मिला उससे कर दिया अब ये इसका नसीब है, कि अच्छे पैसे वाले घर में जा रही है।
चाचा की दोनों बेटियाँ भी जल -भून गयीं और बोलीं -उसने तुझमे ऐसा क्या देखा ?जो रिश्ते के लिए' हां' कर दी। लोगों के इस तरह हैरत भरे प्रश्न सुनकर मुझे लगा -अवश्य ही मुझमें कोई विशिष्ट बात है या फिर मेरी क़िस्मत इन लोगों से अच्छी है।
न ही मैंने ,उस लड़के की कोई तस्वीर देखी ,न ही उसके विषय में कोई जानकारी थी, यहां तक की उसका नाम भी मुझे मालूम नहीं था। जब दीदी ने ,मुझसे उसका नाम पूछा ,तब मैं बता नहीं पाई।
तब उन्हें आश्चर्य हुआ ,तू कैसी लड़की है ?जिससे तेरा रिश्ता तय किया है ,उसका नाम तक भी नहीं जानती।
मैंने बताया -न ही मुझसे कुछ पूछा, न ही कुछ बताया ,बस आकर कह दिया कि तेरे रिश्ते की बात हम तय कर आये हैं।
मेरी बातें सुनकर, शायद दीदी को अपनी बहन पर तरस आ गया और स्वयं ही पापा से पूछा - उस लड़के का क्या नाम है ?वो लोग कहाँ रहते हैं ?क्या उस लड़के का कोई फोटो नहीं है ?दीदी पापा से इतना तो बोल ही लेती थी किन्तु मैं इतना भी नहीं बोल पाती थी।
निलिमा के घर में, रिश्ते की बात क्या चली सभी के लिए वो इर्ष्य का पात्र बन गयी । क्या उस लड़के से निलिमा का विवाह हो पायेगा ? उसका क्या नाम है? पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी