नीलिमा अब निश्चिन्त थी ,अब उसका साथ देने के लिए ,उसकी मम्मी जो आ गयी थी।अगले दिन उसने बड़े उत्साह से अपनी दोनों बेटियों को तैयार कर स्कूल भेजा ,अपनी मम्मी और अपने लिए नाश्ता बनाया। अथर्व का खाना उसकी दवाई , सब मम्मी को समझाकर ,वो अपने स्कूल में आ गयी। तीन दिन बाद उसे पता चलता है ,उसे मात्र बीस हज़ार रूपये प्रतिमाह वेतन तय किया गया। इतना कम ,नीलिमा अपने मन में ,हिसाब लगा रही थी। घर के ख़र्चे कैसे पूरे होंगे ?दोनों बेटियों की फीस ,अथर्व की दवाई ,आदि सब कैसे ??अनेक प्रश्न मन में उभर रहे थे ,कैसे सब होगा ?किन्तु शुरुआत तो हुई। आगे भी रास्ते खुलेंगे ,यही सोच वो आगे बढ़ी। मम्मी के आने से अथर्व की तरफ से वो निश्चिंत हो गयी।
अभी तक ,उसका महीना पूरा नहीं हुआ था किन्तु बेटियों के स्कूल से फीस के लिए नोटिस आ गया। एक दिन वो धीरेन्द्र के ऑफ़िस जाती है ,और ऑफिस में जाकर पूछती है -कि धीरेन्द्र का कुछ पैसा बनता है या नहीं। उसे बताया तो गया किन्तु अभी उस प्रॉसिजर में समय लगेगा।
तब तक मैं क्या करूंगी ?उसने प्रश्न किया, किन्तु उन्होंने असमर्थता व्यक्त की।
वो परेशान ,क्या करे ?फीस भी बहुत है ,पैसे कहाँ से लाऊँ ? उसने स्कूल वालों से एडवांस पैसे मांगे किन्तु उन्होंने इस तरह पेशगी देने से मना कर दिया। हमारे स्कूल का ये नियम नहीं है। वो परेशान थी, कैसे ? अपनी बेटियों के ' मासिक शुल्क 'की व्यवस्था करे ? इसी पशोपेश में वो आज पैदल ही जा रही थी ,ताकि शाम के खाने के लिए सब्ज़ी भी ख़रीद सके ,अब तो मम्मी भी हैं ,तीनों बच्चों का भी ध्यान रखना है। यदि वो बैंक से पैसे निकालकर ,उनके स्कूल में जमा करा भी देती है ,तब पूरे माह फाके करने पड़ सकते हैं। अब स्थिति ये है ,बिना शुल्क दिए तो रहा जा सकता है किन्तु बच्चों को भूखा तो नहीं रख सकती।यदि बाहर के आस -पड़ोस अथवा अपने ही स्कूल के बच्चों को व्यक्तिगत शिक्षा [ट्यूशन ]भी देती हूँ तब भी ,एक माह तो प्रतीक्षा करनी ही होगी।वो किसी भी तरह से बच्चियों की पढ़ाई से समझौता नहीं करना चाह रही थी।
इसी उधेड़ -बुन में वो सब्ज़ी मंडी तक पहुंच गयी ,कुछ सब्जियां भी लीं ,तभी पीछे से किसी ने पुकारा अरे भाभीजी !आप यहाँ !
नीलिमा ने पीछे मुड़कर देखा। उसके पीछे धीरेन्द्र का दोस्त सुरेंद्र खड़ा था ,उसे देखकर नीलिमा बोली -अरे भाई साहब ! आप यहाँ ! मुस्कुराकर बोली -आप भी सब्जी खरीदने आएं हैं।
जी !हमारी श्रीमती जी तो हुकुम चला देती हैं जी, जब काम से आओ तो आते समय आलू ,गोभी , टमाटर ,चिकन की सूची बना भेज देती हैं ,ये सब लेते आना।
जी... हमें तो स्वयं ही आना होगा , सूची बनाने वाले भी हम ही हैं और लाने वाली भी ,कहकर नीलिमा थोड़ी देर के लिए चुप हो गयी।
''आई ऍम सॉरी ''मेरे कारण आपका दिल दुखा।
नहीं जी ,आपने जो कहा ,वो भी सच था और मैं जो कह रही हूँ ,ये भी एक सच्चाई है ,इसे हम झुठला तो नहीं सकते कहकर नीलिमा अपना थैला उठाकर चल दी उसके पीछे ही ,सुरेंद्र भी ,चल दिया।
भाभी जी कोई आवश्यकता हो तो बताना ,हम आपके साथ हैं।
हम....... ,मैं कुछ समझी नहीं ,
'हम' से मतलब हम सभी धीरेन्द्र के दोस्त ,जो धीरेन्द्र के सुख -दुःख के साथी रहे हैं।
ओह ,हाँ ! नीलिमा मन ही मन सोच रही थी ,ये लोग विश्वसनीय हो सकते हैं या नहीं ,इनसे अपनी परेशानी कहूं या नहीं ,कहीं अपने मन की बात या परेशानी इन्हें बताकर, कहीं मैं कोई गलती तो न कर बैठूँ ,इनके विषय में धीरेन्द्र ही अच्छे से जानता होगा ,मैं इन्हें इतना भी नहीं जानती कि अपनी परेशानी बता सहायता की उम्मीद सकूँ ,वैसे उसके दोस्त हैं ,शायद सहायता के लिए तैयार हो भी जाएँ।
क्या सोच रही हो ?एक बात पूछूं !
जी पूछिए !
पैसे -वैसे की कोई परेशानी तो नहीं ,घर का खर्चा कैसे चल रहा है ?
बस ईश्वर की दया है ,धीरेन्द्र ने कुछ पैसा तो छोड़ा नहीं ,ये तो आप समझते ही होंगे ,न चाहते हुए भी नीलिमा का दर्द फूट ही गया। अब घर खर्च के लिए एक स्कूल में नौकरी कर रही हूँ।
अच्छा ,उसने चौंकते हुए से कहा ,फिर संभलकर बोला ,उसके हालात और खर्चे देखते हुए तो, ये हालात होने ही थे। वैसे कितना देते हैं ?वो लोग !
बीस हज़ार !
एक बार को तो मुस्कुराया और बोला -क्या दिन आ गए ? इतने तो मैं अपने ड्राइवर को दे देता हूँ।
नीलिमा को उसके इस तरह कहने का अंदाज बुरा लगा ,किन्तु कहना चाहकर भी कुछ नही कह पाई।
अच्छा एक बात बताओ ! तुम घर को कैसे मैनेज़ करती हो ? बेटे को कहाँ छोड़ती हो ?
अभी तो गुजारा चल रहा है ,अथर्व के लिए मेरी मम्मी आई हुई हैं ,वो संभालती हैं। अपनी बात कहने से पहले ही, नीलिमा की नजरें झुक गयीं ,भाई साहब ! एक बात कहूं !
जी कहिये !
इस बार थोड़ी दिक्क़त आ रही है ,बेटियों की इस बार फ़ीस..... जमा नहीं हो पाई ,अगले महिने तो मुझे पैसे मिल ही जायेंगे और कुछ बच्चे, मैं घर में पढ़ाने के लिए भी ढूँढ़ ही लूँगी।
अच्छा तो ये बात है ,आप तो अपनी ही हैं ,हमें बताने में इतना झिझक रही थीं ,अब आपने बता दिया है तो अवश्य ही उनकी फीस जमा हो जाएगी ,अपने ही समय पर काम नहीं आएंगे तो और कौन साथ देगा ?
जी ,इसी उम्मीद से आपको बताया ,वो होते तो ... मुझे इतना सब करना नहीं पड़ता किन्तु अब तो घर -बार मुझे ही देखना है। अब मैं ही इनकी माँ और पिता दोनों हूँ।
भाभी जी ,मैं आपको फोन करूंगा ,बताता हूँ ,कैसे करना है ?
नीलिमा ने अविश्वास से कहा -आप इतने पैसों का इंतजाम कर लेंगे।
जी ,कोशिश करूंगा ,नहीं तो ,उन दोनों से बात कर लूँगा।
ठीक है ,अभी मैं चलती हूँ ,आपका जैसा भी विचार हो ,मुझे बता दीजियेगा ,कहकर नीलिमा अपने घर की ओर मुड़ जाती है।
क्या सुरेंद्र नीलिमा सहायता कर पायेगा या नहीं या सभी दोस्त मिलकर सहायता करेंगे या फिर नीलिमा की अच्छाई का लाभ उठाएंगे। जानने के लिए पढ़ते रहिये- ऐसी भी ज़िंदगी