मम्मी ! मैं जा रही हूँ ,शीघ्र ही आ जाउंगी ,कहकर नीलिमा घर से बाहर निकली ,उसके पैरों में तो जैसे बिजली लगी थी ,वो द्रुत गति से चले जा रही थी ,उसे आज सुरेंद्र ने पैसे देने के लिए जो बुलाया था। चलो ,उससे कहकर इतना लाभ तो हुआ, कि वो मेरी बेटियों की फीस भरने के लिए तैयार हो गया। वैसे ये बात भी सही है ,जब तक किसी को अपनी परेशानी बताओगे नहीं ,तो दूसरा जानेगा कैसे ? दोस्त ! कब काम आते हैं ?वैसे वे मेरे दोस्त तो नहीं हैं किन्तु धीरेन्द्र के मरने पर भी ,उसकी दोस्ती का मान रख रहे हैं , वरना लोग तो पहचानते भी नहीं। मेरे पापा को ही देख लो ,एक बार भी नहीं पूछा ,-कि बेटा तुझे किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं ,दीदी से भी नहीं मांग सकती थी। अभी तो वो काफी पैसा लगाकर गयीं ,उनका भी अपना परिवार है। बस अबकि बार मेरी ये समस्या हल हो जाये तो आगे पहले से ही सब तैयारी करके रखूंगी और खर्चों में भी कटौती करूंगी। मन ही मन योजना बनाती ,उसे पता ही नहीं चला ,कब वो स्थान आ गया ?
ऑटो रिक्शा वाले ने जब उसे पुकारा ,मैडम ! वो चौक आ गया।
नीलिमा का ध्यान भंग हुआ और मुस्कुराते हुए बोली - अच्छा भइया ! कहते हुए उतरी।
रिक्शेवाले को पैसे देकर तब वो सुरेंद्र के बताये अनुसार ,उस चौक की एक गली में जाने लगी ,तब रिक्शेवाले ने उससे पूछा ,मैडम !क्या आप यहाँ रहतीं हैं ?
नहीं ,यहाँ जानने वाले रहते हैं ,उनसे ही मिलने आई हूँ ,कहकर वो आगे बढ़ गयी।
नीलिमा उस गली में आगे बढ़ती गयी ,उस गली में कई बड़े -बड़े मकान थे ,तब उसने मकान नंबर देखना आरम्भ किया ,इस स्थान पर आज वो पहली बार आई है। उस गली में घूमते हुए ,उसे बड़ा अजीब लग रहा था ,वो सोच रही थी , सुरेंद्र चाहता तो, मुझे पैसे मेरे अपने घर भी दे सकता था किन्तु उसने यहां बुलाया है। जब वो ऐसे समय में सहायता कर ही रहा है ,तो एहसान भी तो दिखायेगा ही। हमें तो अपनी गरज है ,काम हमारा है ,तो उसका कहा तो मानना ही पड़ेगा। वैसे यहाँ तो वो रहता भी नहीं ,पता नहीं ,यहाँ क्यों बुलवाया है ? तभी एक मकान के सामने वो रुकी, जिस पर उसने लिखा देखा ''सात सौ बहत्तर ''हाँ ,यही नंबर तो सुरेंद्र ने उसे बताया था।
मकान नंबर -''सात सौ बहत्तर '' मन ही मन ये अंक दोहराए,दरवाजे पर जाकर उसने घंटी बजाई। कुछ देर पश्चात अंदर से सुरेंद्र आता है। अरे ,भाभीजी ! आप आ गयीं कहकर उसने झुककर उसका स्वागत किया ,आइये ,आइये -कहते हुए ,अंदर आने का इशारा किया। नीलिमा मुस्कुराते हुए ,बोली -आपने मुझे यहाँ क्यों बुलाया ? ये तो आपका घर नहीं है ,या दूसरा ले लिया ,हो सकता है ,ले भी लिया हो ,पैसे वाले लोग हैं ,कहते हुए ,अंदर आती है ,तो देखते ही चौंक जाती है। उस कमरे में पहले से ही, दो अन्य लोग बैठे थे। नीलिमा उन्हें देखकर पहचान तो गयी किन्तु इस तरह तीन -चार लोगों के बीच आने को अकेला महसूस कर ,अपने को असुरक्षित महसूस कर रही थी ,उन लोगों के रहने से, वो असहज हो गयी थी ,जो उसके चेहरे से साफ झलक रहा था।
अरे भाभीजी !बैठिये !
अपने मन में साहस भर नीलिमा बोली -भाई साहब !आपने बताया नहीं ,कि और लोग भी हैं ,शायद आप लोगों को मैंने डिस्टर्ब कर दिया।
अरे नहीं -नहीं ,आप तो ऐसे घबरा रहीं है ,जैसे आप हमें जानती ही नहीं ,हम भी तो धीरेन्द्र के दोस्त ही हैं।
उनकी किसी भी बात का जबाब न देते हुए ,नीलिमा सुरेंद्र से बोली -मैं चलती हूँ ,आप मुझे पैसे दे दीजिये ,जिस कार्य के लिए आपने मुझे बुलाया था।
अरे ! किस कार्य के लिए ,बुलाया था ,अकेले -अकेले ही सारी मौज तू ही लेने वाला था ,कहते हुए ,तपन सुरेंद्र के पीछे -पीछे अंदर आया।
सालों !तुम्हें भी तो, इनकी मदद करनी होगी ,कहते हुए ,उसने नीलिमा के लिए ठंडा बनाया और लेकर बाहर आ गया।
नहीं ,मैं ठंडा नहीं पीती ,आपने जिस कारण से बुलाया था ,वो बात हो जाती तो..... उसके दोस्तों के सामने वो जाहिर नहीं करना चाह रही थी कि वो उससे कुछ पैसे उधार मांगने आई है।
अब तो बन गया ,आप पी लीजिये ,कहते हुए ,उन सबने भी ,पीना आरम्भ किया ,नीलिमा कभी भी ऐसी स्थिति में नहीं पड़ी थी ,इसीलिए वो शीघ्र ही अपना ठंडा पीकर और पैसे लेकर उस घर से बाहर आ जाना चाहती थी ,उसे वहां बैठे घुटन हो रही थी , वह ठण्डा पीकर बोली -अब आप मेरा इंतजाम कर दीजिये ,मैं चलती हूँ।
जी नकद लेंगी या फीस ही बच्चों के स्कूल में जमा करा दूँ।
यदि आपको वहीं फीस जमा करानी थी तो ,मुझे क्यों बुलाया ?
कितने कर दूँ ?तीस.... इससे आगे के शब्द नीलिमा नहीं सुन पाई ,उसे चक्कर सा आने लगा।
प्रदीप बोला -अरे ,ये तूने क्या कर दिया ?एक अच्छे भले घर की महिला को क्या पिला दिया ? तू हमारे दोस्त की विधवा के साथ क्या करना चाहता है ? यानि कि तेरा दिल भी इस पर आया हुआ था ,हम तो अपने को ही कमीना समझे बैठे थे ,तू तो हमसे भी ज्यादा...चुप, कमीना निकला कहते हुए तीनों हँसने लगे।
चुप करो !मैंने तो इसकी सहायता के लिए इसे बुलाया है ,ये हमारी मदद करेगी ,हम इसकी..... कहकर वो वहशीपन से हंसा ,अब चलो भी ,इन भाभीजी को अंदर शयनकक्ष में ले जाने में मेरी सहायता करो ,तुम भी तो इनका प्यार हासिल करोगे ,जब ललचाते रहते थे ,अब तो सारी सजी -सजाई थाली तुम्हारे सामने है। आओ !मिलकर अपनी शाम रंगीन करते हैं।
नीलिमा बेहोश हो चुकी थी ,तीनों दोस्तों ने उसे उठाया और अंदर बिस्तर पर लिटा दिया ,उसने जो शर्ट पहनी थी ,उसके उन्होंने बटन खोल दिए ,तीनों उसके उजले बदन को निहार रहे थे। तब तपन बोला -अब तेरा रहस्य पता चला ,तूने एक रात्रि के लिए ,ये मकान किराये पर क्यों लिया था ?
उधर शाम के खाने के समय बेटियों ने ,उसकी प्रतीक्षा की ,नानी ने ,तब तक खाना बना दिया था ,बच्चों ने खाना भी खा लिया किन्तु नीलिमा नहीं आई ,उसकी मम्मी को भी अब परेशानी हुई ,इतनी रात्रि हो गयी किन्तु अभी तक नही आई ,कितनी लापरवाह हो चुकी है ? ये नहीं पता कि बच्चे उसकी प्रतिक्षा कर रहे होंगे ,जैसे -जैसे रात्रि बढ़ती जा रही थी ,उनका क्रोध भी बढ़ता जा रहा था। आज आने दो ,इस लड़की को ,इसके सिर पर अब कोई बड़ा तो रहा नहीं ,जो इसे रोके -टोके ,तभी उनका मन बदला ,पता नहीं, बेचारी ! कहाँ धक्के खा रही होगी ?अकेली जान पर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी ! इतनी कम उम्र में ये सब देखना लिखा था। इन बच्चों के लिए ही तो करती फिर रही है। सोचते -सोचते पार्वती जी को भी नींद ने घेर लिया।
आगे क्या होगा? जब नीलिमा को उन तीनों की असलीयत का पता चलेगा। जब उनके धोखे से बुलाये जाने का पता चलेगा? क्या वे तीनों अभी भी उसकी सहायता करेंगे या अपनी बात से मुकर जायेंगे? जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी