नीलिमा को अपने जेठ के व्यवहार पर बहुत क्रोध आ रहा था ,कैसे मतलबपरस्त लोग हैं ? दूसरे की कमज़ोरी का लाभ उठाने से भी बाज नहीं आते। अब सोचा होगा ,ये परेशान होगी ,कमजोर क्षणों में मेरा दामन थाम लेगी। रिश्तों को भी ताक पर रख देते हैं। वो अपने जेठ से कहती है -तुम लोग मेरा हिस्सा नहीं दे सकते तो ,मुझे मत देना ,मुझे आवश्यकता भी नहीं ,तुम्हारे पैसे की। देखना, ये तुम्हें भी नहीं फलेगा। कहकर नीलिमा कहती है- ,निकल जाओ ! मेरे घर से ,आइंदा इधर कदम मत रखना , कहकर उसने उसे बाहर का रास्ता दिखाया।
नीलिमा के कारण उस संस्था ने बहुत तरक्की की ,एक दो कमरे से कमरे भी ज्यादा हो गए ,लोग भी आने लगे। अपने बेटे के कारण नीलिमा ,बाहर भी गयी ,ताकि उसके इलाज के लिए कुछ तो नया सीख सके।चेन्नई जाकर पहले स्वयं सीखा उसके पश्चात ,अपने बेटे और अन्य बच्चों के साथ भी जुड़ गयी। कुछ लोगों के मन में ये प्रश्न उठ रहे थे , कि वो इतना सब कैसे कर रही है ?किन्तु किसी का पूछने का साहस भी नहीं हुआ क्योंकि वो सबके लिए ,समय पर खड़ी रहती।लोगों की परेशानियों को हल करने का प्रयास करती।एक दिन से उसे सूचना मिली उनकी वो कोठी बिक गयी।जिस कोठी को देख उसके पिता ने उसका हाथ धीरेंद्र के हाथ में दिया था। अमीर और शरीफ लोगों के मुखोटे उसी कोठी में उतरे।
नीलिमा को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। इसी कोठी के कारण ,उसका विवाह हुआ ,इसी शानोशौक़त के कारण वो अपने ही घर में ,नौकर बन कर रह गयी थी। इसी के कारण ,आज वो, इस उम्र में विधवा का चोला ओढ़े घूम रही है।कोठी खरीदनेवालों से कुछ धनराशि नकद लिया और कुछ के' चैक' में । यहीं पर उन्हें भी चैक मिल गयी ,अपने को बड़े खिलाडी समझ रहे थे ,किन्तु जब ऊपरवाला खेलता है ,तो सीधे मात ही मिलती है।
वो आठ नवंबर का दिन था ,जब दूरदर्शन पर एलान किया गया -आज से पांच सौ के नोट बंद ,इतना सुनते ही ,मोहनलाल जी को एकदम से धक्का लगा और वो अपने को संभाल नहीं पाए ,उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया। तब डॉक्टरों ने बताया इन्हें किसी बात का ,बहुत गहरा सदमा लगा है। सदमा लगना स्वाभाविक था ,घर में इतना पैसा जो रखा था और उसमें पांच -पांच सौ की गड्डियाँ भी थीं। डॉक्टर ने चौबीस घंटेका समय दिया था किन्तु मोहनलाल जी चौबीस घंटे से पहले ही ,इस दुनिया की मोहमाया के बंधन के मोह के कारण ही ,चल बसे। नीलिमा को भी सूचना मिली और वो अपने बच्चों के साथ जाकर अंतिम विदाई दे आई। किसी से कुछ भी कहना सुनना नहीं और अपने घर आ गयी।
अब तो बेटियां बड़ी हो गयीं ,बड़ी वाली तो दसवीं में आ गयी ,छोटी आठवीं में ,अथर्व भी अब कुछ -कुछ शब्द बोलने लगा था। उसे बार -बार शब्दों को बोलना सिखाया जा रहा था। अब माँ समझाती तो मुस्कुरा भी देता ,बहनें अपने छोटे भाई का पूरा ख्याल रखतीं। नीलिमा को कुछ पैसा धीरेन्द्र के ऑफिस से भी मिल गया था। बेटियों को लेकर ,छुट्टियों में बाहर घुमाने भी ले गयी। ताकि उन्हें अपने पिता की कमी महसूस न हो ,उन्हें ये न लगे कि पिता के न रहने पर हम कुछ भी नहीं कर पाए या देख पाए। जिंदगी की ऊंच -नीच समझाते वो आगे बढ़ रही थी।
एक दिन उसकी बेटी बाहर से आई और बोली -मम्मा देखो !कौन आया है ?
नीलिमा रसोईघर में खाना बना रही थी ,बाहर आकर देखा तो खुश हुई। अरे तुम..... अब याद आई, हमारी नीलिमा शिकायत भरे लहज़े में बोली।
नहीं ,याद तो तुम्हारी प्रतिदिन आती थी, किन्तु घर के कामों से ही फुरसत नहीं थी। अबकि बार पक्का मन बना लिया ,अबकी बार जाकर ही रहेंगे।
नीलिमा उसे चाय पकड़ाते हुए ,बोली -और सुनाओ ! बुआजी ,कैसी हैं ?
वे भी ठीक ही हैं ,अब बुढ़ापा भी है। तुम्हें बड़ा याद करती हैं।
नीलिमा मुस्कुराकर बोली -चल झूठा ! यदि वे याद करतीं तो, एक बार भी उन्होंने मुझे फोन किया ,फोन पर ही ख़ैर -ख़बर पूछ लेतीं ,अपनी भतीजी से मिलने ही आ जातीं। जब धीरेन्द्र का पता चला होगा ,तब भी नहीं आईं ,न ही तुम कहीं दिखे।
अब तो हम , आ गए ,तुम्हारी ख़ैर -खबर लेने ,बताओ ! कैसे हमारी ख़ातिरदारी करोगी ?वो नैन मटकाते हुए बोला।
तुम्हारी सेवा में अभी खाना तैयार है ,और सुनाओ ! तुम्हारी पत्नी और बच्चे कैसे हैं ?
नीलिमा की ये बात सुनकर ,उसकी बुआ के लड़के का मुँह बन गया और बोला -बस कट ही रही है ,तुम्हारी बुआ ने तो, नागिन हमारे मत्थे मढ़ दी है। उसकी फुफकार के कारण ,उससे आगे -आगे डोलते फिर रहे हैं। उसकी बात सुनकर नीलिमा खूब हंसी ,खाना खाते हुए बोला -इतना स्वादिष्ट खाना उसने आज तक नहीं बनाया। हमने तो जब होश संभाला ,तब मम्मी से कह दिया था ,नीलिमा जैसी लड़की ही हमको पसंद है। [उसकी चमचागिरी देखकर नीलिमा मन ही मन समझ गयी ये भी कोई अच्छी नियत से नहीं आया किन्तु वो चुपचाप उसकी बातें सुनती रही। देखें !अपनी ओेकात पर आने के लिए किस तरह भूमिका बांधता है ?] जब बच्चों ने भी खाना खा लिया तब नीलिमा ने कहा -जाओ !अपने कमरे में ,अपने भाई को भी ले जाओ ! तब उससे बोली -तुम भी सफर से आये हो ,थक गए होंगे ,तुम भी आराम कर लो !
अब इतने दिनों में मिले हैं ,तो क्या अब भी आराम में समय निकाल दें ?तुम आराम करना चाहती हो तो कर सकती हो।
जब तुम्हें ही आराम नहीं करना ,तब मैं भी यहीं सोफे पर लेट जाती हूँ ,नीलिमा को थकावट भी बहुत हो रही थी किन्तु औपचारिकतावश कुछ कह न सकी और वहीँ लेटकर उसकी बातें सुनने लगी।अब हम क्या बताएं ?जब हमें पता चला ,तब तक मामा जी ने तुम्हारा रिश्ता किसी इंजीनियर से पक्का कर दिया। अब हम तो इंजीनियर नहीं थे ,हम तो पढ़ रहे थे ,तुम्हारी ही तरह। बाद में हमें पता चला ,तुम बड़े पैसेवाले घर में गयी हो। तुम विश्वास नहीं करोगी ,हमें तुम्हारे जाने का बहुत गम हुआ था , सबसे छुपकर बहुत रोये थे।
तुम्हारे रोने से क्या होता ?बुआ भी शायद ये रिश्ता न करती नीलिमा ने अपना मत रखा।
वो तो जब की जब देखी जाती किन्तु जब हमें पता चला -कि लड़का तो उम्र में बहुत बड़ा है ,तब हमने एक दिन मम्मी से कहा ,मामा को तुम्हारा विवाह करने की इतनी जल्दी क्या थी ?हम पढ़ रहे थे न.... इंजीनियर भी बने ,तब कर लेते।
तब बुआ ने क्या कहा ? कहकर नीलिमा की आँखें झपक गयीं। वो जो अपनी थकावट पर इतनी देर से नियंत्रण कर रही थी ,उसका नियंत्रण हट गया ,इसके पश्चात वो कुछ भी नहीं सुन पाई कि उसने क्या कहा, क्या नहीं ?
क्या नीलिमा का सोचना सही है? क्या उसकी बुआ के लड़के की नीयत में कोई खोट है? जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी