नीलिमा के बुआ का लड़का उससे मिलने आता है ,उससे ढ़ेर सारी बातें करता है। नीलिमा थकावट के कारण उसकी बातें सुनते -सुनते सो जाती है। वो भी अपनी धुन में कुछ न कुछ कहे जा रहा था, किन्तु जब उसने नीलिमा की तरफ देखा ,तो वो सो रही थी।
लो कर लो बात, हम यहाँ इसे अपने दिल की बात कहे जा रहे हैं ,और ये है ,कि खर्राटे भरकर सो रही है। वो उसकी तरफ देखता है और गहरी स्वांस लेकर रह जाता है। इसने भी न जाने, कितने दुःख देखे होंगे ?अब हम आ गए हैं ,इसे अब कोई दुःख नहीं होने देंगे ,वो मन ही मन सोचता है।वो कभी टहलता है ,कभी सिगरेट के कश लगाने लगता है। नीलिमा को सोते ,अब तक दो घंटे हो गए थे ,वो भी बुरी तरह बोरियत महसूस कर रहा था। तब उसने एक बार फिर उसके क़रीब जाकर देखा और थोड़ा झुक गया ,उसे नीलिमा सोते हुए बहुत ही भोली और मासूम लग रही थी। उसका जी चाहा ,इसके अधर चूम ले और वो और करीब आया किन्तु जैसे ही नीलिमा के गाल को उसकी गर्म सांसों ने छुआ और उसके मुख से सिगरेट की बदबू नीलिमा के नथुनों में पड़ी उसने अपनी आँखें खोल दीं।
उसकी आँखें खुलते ही वो पीछे हट गया ,और बोला -हम तो बोले जा रहे हैं और तुम पड़ी खर्राटे भर रही हो।
नीलिमा को अपनी गलती का एहसास हुआ और बोली -हाँ... वो सुबह जल्दी उठती हूँ ,अथर्व के कारण..... ,आज थोड़ा थक गयी थी ,नीलिमा मुस्कुराते हुए बोली -तुम्हारी बातों ने तो जैसे ,मेरे लिए लोरी का काम किया और मुझे अच्छी नींद आई किन्तु तभी मुँह बनाते हुए बोली -छी... तुम सिगरेट भी पीने लगे ,आज बहुत दिनों बाद ,इसकी बदबू का एहसास हुआ। वहां तो पापा -चाचा पीते थे किन्तु यहाँ कोई नहीं पीता ,तो अब ये बदबू भी नहीं सुहाती ,तभी उसने घड़ी में समय देखा। अरे चार बज गए ,चाय बनाती हूँ , कल्पना और शिवांगी का ट्यूशन भी है ,देखती हूँ ,वे क्या कर रही हैं ? कहकर वो वहां से उठकर चली गयी ,जाते समय उसके हाथों में एक पत्रिका थमा गयी। राघव को तो उस पत्रिका में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसने कुछ पेज़ उलटे -पलटे और पत्रिका वहीं मेज पर रख दी।
वो सोच रहा था ,न जाने किसका कूड़ा उठाये घूम रही है ? अभी भी कितनी जवान है ? मामा जी ने भी , दुबारा इसके विवाह के विषय में नहीं सोचा। तभी नीलिमा अपनी बेटियों संग उसे नीचे आती दिखाई दी और बोली -ये दोनों भी ,अपने भाई को सुलाती स्वयं भी सो गयीं थीं। अब उठाकर लाई हूँ ,कहकर उसने उन्हें डांटा -आज कम से कम दस मिनट लेट हो ,अब जल्दी जाओ !
मम्मा गाड़ी से चले जाएँ ,जल्दी पहुंच जायेंगे।
नहीं ,दोनों शीघ्र ही दौड़ लगाओ ! जितनी देर में गाड़ी बाहर आएगी तुम पहुंच भी जाओगी। इतनी छोटी -छोटी चीजों के लिए ,गाड़ी नहीं चलती ,हमें किसी को दिखाना नहीं है ,कहते हुए उन्हीं के साथ, बाहर तक आई और उन्हें विदाकर तब अंदर आई। अंदर आकर बोली -बच्चे भी न..... जब तक डांटों न , सुनते ही नहीं।
राघव ने अब पत्रिका उठा ली और कनखियों से उसे देखने लगा और बोला -तुम्हें साथ ले जाना चाह रही होंगी ,तभी गाड़ी से जाने की बात कर रहीं थीं।
नहीं , बड़ी वाली को तो गाड़ी चलानी आती है ,जबसे उसने गाड़ी सीखी है ,तबसे उसे लगता है हर जगह गाड़ी से जाये।
इतनी कम उम्र में उसे गाड़ी सीखा दी ,राघव आश्चर्य से बोला।
क्या करती ? कहीं मजबूरी में जाना हो ,किसी भी काम के लिए हर जगह ,अकेली तो नहीं भाग सकती न....
तब अपनी बात को जारी रखते हुए बोला -अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है ?मामा जी ने कहीं और जगह अच्छा सा लड़का देख , तुम्हारा विवाह करने का नहीं सोचा।
उसकी बात सुनकर नीलिमा को लगा ,जैसे उसने कड़वा करेला खा लिया हो और बोली -उन्होंने तो न जाने ये विवाह ही कैसे -कैसे कर दिया ?उनकी तरफ से अपनी जिम्मेदारी पूर्ण हुई। अब वो चाहे ,मरे या गिरे कहते हुए ,उसकी आँखें नम हो आईं उन्होंने तो आज तक ये भी नहीं पूछा -नीलिमा !तू कैसी है ? तुझे किसी चीज की जरूरत तो नहीं ,चाय और पापड़ मेज पर रखते हुए बोली -पैसों का पूछना तो दूर ,उनके तो दो प्यार के बोल भी, मेरे लिए नहीं थे , उनमें तो पैसा नहीं लगता। नीलिमा का दर्द उसके गालों पर लुढ़क आया था।
सच में....... मामा जी !जैसा कठोर इंसान मैंने नहीं देखा, कहते हुए नीलिमा के आंसूं पोंछने के लिए उठा किन्तु नीलिमा उससे पहले ही अपने आंसू पोंछते हुए बोली - ''अब इतनी कमजोर भी नहीं ,कि अपने आंसू न पोंछ सकूँ।'' कहते हुए मुस्कुरा दी। तब एक आंसूं अपनी अंगुली से छिड़का और बोली -' ऐसे न जाने ,कितने आंसू मैंने बहाये और पोंछे हैं ? अब तो मुझे इनकी कीमत भी कुछ नहीं लगती , सिर्फ़ मन का सैलाब है ,जो अधिक बढ़ने पर इस तरह निकलकर हल्का हो जाता है।'' लोग कहते हैं ,ये मोती हैं ,किन्तु इन मोतियों की कीमत आज तक कोई नहीं समझ सका ,जब तक इनको परखने वाला न हो ,तब तक तो ये आंसूं ही हैं ,जिनकी कोई कीमत नहीं।
तुम तो बड़ी गहरी बातें करने लगी हो।
ये बातें तुम्हें गहरी लग रही होंगी किन्तु मैंने तो इन्हें जिया है।
चलो !अपनी चाय समाप्त करो ! ठंडी हो गयी होगी।
चाय पीते हुए ,अब तो मेरी जिंदगी का एक ही मक़सद है , मैं धीरेन्द्र की स्मृतियों में कमज़ोर नहीं पड़ूँगी वरन अपने बच्चों को मजबूत बनाऊंगी।
फिर भी, तुम्हें भी तो कभी अकेलापन महसूस होता होगा ,अपने लिए जीना चाहती होंगी ,एक साथी की इच्छा.... इससे पहले नीलिमा उठकर जा चुकी थी ,शायद वो अथर्व को देखने गयी है। वहीं से कुछ आवाज आ रही थी।
राघव सोच रहा था ,अपना दर्द भूलकर ,अपने बच्चे की परेशानी इतनी दूर से भी ,उसे समझ आ गयी।
अथर्व को लेकर वो बाहर आई ,बोली -इसने अपनी पेण्ट में ही शु..शु कर ली थी।
ये इतना बड़ा हो गया ,क्या अभी बताता नहीं या स्वयं करने नहीं जाता ?
नहीं ,अभी मुझे ही ध्यान रखना पड़ता है ,किन्तु इसे धीरे -धीरे सब समझा रही हूँ ,ताकि और बड़े होने तक स्वयं करना सीख़ जाये ,नीलिमा एक उम्मीद से बोली।
नीलिमा के सामने कितनी समस्यायें थी? बच्चे की बीमारी बेटियों की शिक्षा आर्थिक अभाव तब भी वह अपने को मजबूत कर आगे बढ़ रही है, अब उसने बिना किसी सहारे के जीना सीख लिया है। अब रोने के लिए किसी सहारे को नहीं तलाशती है। आगे क्या होगा? जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी