नीलिमा का विवाह तय तो हो जाता है ,किन्तु न ही उसने लड़के की कोई तस्वीर देखी है , न ही उसके विषय में कोई जानकारी है। नीलिमा की दीदी आकर ,लड़के के विषय में पापा से जानकारी लेना चाहती है और जब उसकी तस्वीर मांगती है ,तब वे उसे एक फोटो दिखाते हैं। एक लड़का जो ,चमड़े की जैकेट में ,मोटरसाईकिल के साथ था ,उसकी फोटो बड़ी मनोहरी लग रही थी। जिसने भी देखा ,उसने ही पसंद किया और निलिमा की हमउम्र तो ठंडी सांसे लेने लगीं ,आहें भरने लगीं और नीलिमा की क़िस्मत से डाह करने लगीं। लड़का स्मार्ट ही नहीं वरन पैसे वाला भी था। एक बेटी वाले को और क्या चाहिए ?
जब बात उठी ,तो कहने लगे -अच्छा ख़ासा दहेज़ मांगा होगा ,सब चर्चा करते ,आपस में ही बातें करते किन्तु नीलिमा के पापा से पूछने का ,किसी का भी साहस नहीं होता। अपने आप ही अटकलें लगाते रहते। अब तो नीलिमा भी प्रसन्न थी। जब उसे मालूम हुआ, कि उन्हीं के शहर जाकर विवाह होगा और बड़े से होटल में इंतज़ाम है। अभी तक तो , बेटी वाले के घर पर ही बारात आई हैं ,किन्तु ये पहला विवाह ऐसा होगा जब इन्हें ही वहीं जाना है। सब कुछ अलग ही हो रहा है। अभी विवाह को एक माह बाकि है ,सभी उसके विवाह की प्रतीक्षा में हैं और अपनी तैयारियों में जुटे हैं। नीलिमा ने भी अपनी एक -दो सहेली से अपने संग चलने के लिए कहा। मेरे विवाह में आना, किन्तु उस समय का वातावरण ऐसा नहीं था। कि कोई भी परिवार अपनी स्यानी बेटी को, किसी भी सहेली के साथ उसके विवाह में दूसरे शहर भेज दे। कुछ गिने -चुने रिश्तेदार और एक सहेली ही तैयार हुए।
घर में विवाह की तैयारियाँ चल रही थीं ,चलना भी क्या था ?सभी अपनी -अपनी तैयारी में जुटे थे ,कौन सी रस्म में क्या पहनना है ?होने वाली दुल्हन की किसी को भी फ़िक्र नहीं थी। नीलिमा की मम्मी ने उसके पापा को सामान की सूची थमाई ,उन्होंने उस सूची को देखकर कहा -इसे किसी भी सामान की आवश्यकता नहीं ,इसके लिए ,वहाँ सभी चीजे हैं। बस तुम ,इसकी सेहत का ख़्याल रखना। एक दिन ,चंदा की चाँदनी में ,सभी छत पर थे ,किन्तु इतने लोगों के होते हुए भी नीलिमा अकेलापन महसूस कर रही थी। वो सोच रही थी -विवाह के पश्चात ये घर मेरे लिए ,अजनबी हो जायेगा।पता नहीं ,वे लोग कैसे होंगे ,लड़के का स्वभाव कैसा होगा ?कैसा अज़ीब है ?उसने भी मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर नहीं की ,अपने होने वाले जीवन साथी की एक झलक देखने की इच्छा तो हो ही जाती है। न जाने ,वो मेरे विषय में क्या सोचता होगा ? हँसमुख या पापा की तरह ही क्रोधी होगा। उसकी तस्वीर तो सुंदर है ,अभी तो मेरी ही तरह ,कम उम्र का ही लग रहा है।
तभी पीछे से आकर उसकी चचेरी बहन ने ,उसका ध्यान भंग कर दिया ,बोली -क्या सोच रही हो ? दीदी !क्या हमारे होने वाले जीजाजी के बारे में सोच रही हो ?
नीलिमा ने मुस्कुरा कर देखा और बोली -आजा बैठ !अब तो मुझे यही काम है ,उनके विषय में सोचना है , अब मेरे जीवन में उसके विषय में सोचने के सिवा कोई कार्य नहीं रह गया है।
वो समझ नहीं पाई ,दीदी व्यंग्य कर रही हैं या सच में ही ,ऐसा सोच या कह रही हैं। एक बात बताओ दीदी !अब तो आप चले जाओगे ,इस घर की और हमारी याद तो आएगी ही ,मुझे तो याद करोगी न !
वो ही तो मैं सोच रही थी ,पता नहीं ,वो लोग कैसे होंगे ,कैसा व्यवहार करेंगे ? कितना अजीब लगता है ?किसी को न जानते हैं ,न ही पहचानते हैं,और जीवनभर का साथी बन जाता है। जीवनभर साथ निबाहेगा भी या फिर...... प्यार करने वाला होगा या ज़िंदगी यूँ ही कट जाएगी। कभी -कभी सोचकर ही ड़र लगता है ,किसी अनजान जगह पर हम कभी न जाएँ किन्तु अब पापा भेज रहे हैं ,न जाने वे अनजाने लोग कैसे होंगे ?
नीलिमा का ड़र देखकर ,वो बोली -इतना मत सोचो !जो भी होगा ,अच्छा ही होगा। ताऊजी ने देखा है तो अच्छा लड़का ही देखा होगा ,मेरी प्यारी दीदी को ऐसे ही ,कहीं भी न भेज देंगे। अब आपके विवाह में ,सभी देख लेंगे कैसी उनकी कोठी है ?और कैसे वो लोग हैं ?कुछ भी कहो ,जीजाजी तो मुझे बेहद पसंद आये। क्या आपको पसंद नहीं ?
नीलिमा सोच रही थी -उस तस्वीर को देखते हुए तो ,अच्छे लग रहे हैं ,सोचकर मुस्कुराने लगी।
देखा, हमारे जीजाजी ने हमारी बहन का दिल तो चुरा लिया ,अब हमसे ,हमारी बहन को भी चुरा लेंगे ,पता नहीं हमारी बहन ,उनके घर जाकर हमें भूल तो नहीं जाएगी कहकर उसने अपना चेहरा गंभीर बनाने का अभिनय किया।
उसके अभिनय को समझते हुए ,नीलिमा हँस दी और बोली -बस ,अब रहने दे। तू तो जैसे ,मेरे बिना मरी जा रही है। अब तो तुझे प्रसन्न होना चाहिए। हम दोनों बहनें तो चली जाएँगी किन्तु अब तेरा ही नंबर है ,मेरा कोई देवर होता तो उसके संग तुझे ले जाती और दोनों बहनें संग रहतीं किन्तु सुना है -उनके तो बड़ा भाई है।
ओहो.... अभी से ही उनके ,अभी जाकर ताईजी को बताती हूँ , अभी से ही दीदी के वे उनके हो गए। अभी तो गयी भी नहीं ,उन्हें देखा भी नहीं ,उनसे मिली भी नहीं और ये... उनके... ,ए जी ,ओ जी हो गए। नैन मटकाते हुए नीचे की तरफ भागी और उसके पीछे -पीछे नीलिमा भी।
अगले दिन ,अचानक पापा ने आवाज लगाई -नीलिमा...... नीलिमा !
नीलिमा घबराई हुई ,बाहर आई और बोली -हाँ जी ,पापा जी !
उन्होंने उसे देखकर ,उसके हाथ में फोन का रिसीवर थमा दिया। ये फोन अभी ,उसके पापा ने लगवाया है ,घर वाले सोच रहे थे -उन लोगों के कारण ही फोन लगवाया होगा ताकि कुछ कहना -सुनना हो।
हैलो ! नीलिमा ने घबराते हुए काँपती सी आवाज में ,कहा। इससे पहले नीलिमा ने ,न ही किसी को फोन किया था न ही किसी का फोन उसे आया था।
प्रिय पाठकों !क्या आप लोगों को कहानी पसंद नहीं आ रही ,आ रही है ,तो अपने सुझाव ,समीक्षा दीजिये ,ताकि लिखते समय मेरे मन में भी प्रसन्नता और उल्लास हो ताकि और विचार उभरकर आयें और कहानी को नए -नए मोड़ पर ले जा सकूँ। आखिर ये किसका फोन निलिमा के लिए, निलिमा के घर पर आ गया कहीं वो उसका पुराना आशिक ही तो नहीं , पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी!