राघव के जाने के पश्चात ,नीलिमा बहुत 'परेशान 'थी ,वो ये नहीं समझ पा रही थी -कि राघव इस तरह अचानक कैसे चला गया ? इतना तो उसे यक़ीन था, कि उसके रौद्र रूप को देखकर तो नहीं भागा होगा।इस बात को हुए कई दिन हो गए , समय के साथ नीलिमा उस बात को भूलने लगी ,उसका ड़र भी कम होने लगा ,अब वो स्कूल से ज्यादा समय ,उस संस्था में बिताने लगी। वहां के बच्चों को,'शिल्प कला ' सीखाना उनसे कार्यक्रम इत्यादि कराना। इस तरह धीरे- धीरे वहां उसने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया ,सभी उसका कहना मानते और उसके हिसाब से ही चलते। कम्पनी का मकान था ,वो तो ख़ाली करना ही था। तब नीलिमा ने एक छोटा किन्तु दोमंजिला मकान ले लिया। अब उसने उस मकान में, किसी भी पुरुष जाति का उस घर में प्रवेश वर्जित कर दिया। फिर चाहे वो कोई अपना रिश्तेदार ही क्यों न हो ?उस घर का पता भी उसने हर किसी को नहीं दिया।
अब जिसको भी नीलिमा से ,मिलना होता ,तब नीलिमा उन्हें बाहर ही किसी तय स्थान पर मिलती। अब समाज में ,मोहल्ले में ,उसकी एक पहचान थी। उसकी पहचान का कारण ,उसका अपना बेटा ,उसका संस्था के प्रति समर्पण और उसका व्यवहार था। बाक़ी कार्य कहो ,या ज़िम्मेदारी मिडिया भी अपना फ़र्ज निभा ही रही थी। उसने इस माँ को अपने अख़बार का एक कॉलम दे ही दिया। नीलिमा के विषय में कुछ न कुछ अवश्य छपता रहता। लोग उसके विषय में जानने को इच्छुक रहते। एक ऐसी माँ ,जिसने पति के न रहने पर भी अपने बच्चों की अच्छे से परवरिश की। अब तो उसके विषय में ,जानने के लिए लोग इच्छुक होते ,वो क्या थी ,कैसे आगे बढ़ी ? पति के न रहने पर, किन लोगों ने उसका साथ दिया और किसने नहीं ,अपनी बेटियों को आगे बढ़ाना और पढ़ाना ही उसके जीवन का उद्देश्य भी है।
एक दिन एक लड़की नीलिमा की संस्था में आई और उससे मिलने का समय माँगा।
कान्ता ,नीलिमा के दफ़्तर में आती है और एक कार्ड उसके सामने रख देती है।
ये क्या है ? नीलिमा ने उस कार्ड को मेज से उठाने का उपक्रम करते हुए ,कान्ता से पूछा।
मैडम !बाहर कोई लड़की खड़ी है ,उसी ने दिया है।
नीलिमा ने कार्ड में किसी ''प्रभा शर्मा '' का नाम पढ़ा ,जो एक लेखिका है।
इसे मुझसे क्या काम हो सकता है ? नीलिमा ने मन ही मन सोचा, फिर सोचा ,शायद मेरे विषय में ही कुछ लिखना चाहती हो। अब तो नीलिमा को भी अपने से संबंधित खबरों को पढ़ने में सुखानुभूति का एहसास होता। इससे उसे पैसा भी मिलता ,तब उसने कुछ सोचकर ''प्रभा शर्मा ''को अंदर बुला लिया।
क्या मैं अंदर आ सकती हूँ ?एक धीमी खनकती सी आवाज नीलिमा के कानों में पड़ी।
नीलिमा ने ,अपने रजिस्टर में से सिर उठाकर देखा ,उसने देखा ,एक गोरी -चिट्टी लड़की ,आँखों में नजर का चश्मा ,नीली जींस के ऊपर उसने एक काला टॉप ,उसके ऊपर आसमानी रंग का कोट डाला हुआ था। उसके बाल हल्के घुंघराले थे ,गले में पतली सोने की चेन थी ,वो दरवाजे पर खड़ी नीलिमा के आदेश की प्रतीक्षा में थी। उसके हाथ में पैन और कॉपी थी।
नीलिमा ने ,उससे नजरें मिलते ही कहा -आ जाओ !
मैडम ! मैंने आपके विषय में बहुत पढ़ा है ,अक़्सर' समाचार पत्र 'में पढ़ती भी रहती हूँ ,आप अनेक कार्यक्रमों में भाग भी लेती रहती हैं। इतनी कम उम्र में ,इतना सब कैसे किया ?आपने इतना सब कैसे सहा ?
नीलिमा मुस्कुराते हुए बोली -मेरे विषय में सम्पूर्ण जानकारी ,समाचारपत्रों से तो मिल ही जाती है ,मेरी ज़िंदगी में ऐसा कुछ विशेष नहीं।
नहीं मैम !आप समझ नहीं रहीं हैं ,मैं छुट -पुट घटनाओं की बात नहीं कर रही हूँ , मैं आपके विषय में वो जानकारी चाहती हूँ ,जिसकी किसी को जानकारी नहीं ,वे बातें..... जिन्होंने आपकी ज़िंदगी के मायने ही बदल दिए ,ऐसी जानकारी जो मेरी कहानी को एक नया मोड़ दे। मैं आपके जीवन के ऊपर एक उपन्यास लिखना चाहती हूँ , मेरी कहानी की नायिका में कुछ ऐसा विशेष है , जो उसे अन्य महिलाओं से उसे अलग दर्शाता है।
नीलिमा ने'' प्रभा शर्मा ''को नजरभर देखा ,उसे टालने के लिए बोली -नहीं ,ऐसा कुछ विशिष्ट नहीं है।
प्रभा भी ज़िद की पक्की थी ,वो बोली -आप मुझे ज़िंदगी के छोटे -बड़े अनेक पल बताइये ,कहानी तो मैं अपने आप लिख लूँगी। यदि आप चाहेंगी ,तो मैं आपका नाम भी नहीं लिखूंगी ताकि आपकी छवि पर कोई आंच न आये।
मैंने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया ,जिससे मेरी छवि धूमिल होने का मुझे अंदेशा रहे ,तभी नीलिमा बोली -यदि मैं तुम्हें अपनी कहानी बताती हूँ ,तब तुम्हें हमारी संस्था को कुछ धन देना होगा।
जी.... यदि मेरी कहानी लोगों को पसंद आती है ,और मेरा उपन्यास छपता है ,तब मैं आपकी संस्था को अवश्य ही सेवा प्रदान करूंगी।
प्रभा की बात सुनकर नीलिमा हंसी और बोली -मेरी कहानी भी जानना चाहती हो ,और मुझे ही शर्तों में बांध रही हो।
क्या करूं ? मैडम ! हम लोग भी परेशान हैं ,हम लोग तो कुछ अच्छा और विशेष लिखना चाहते हैं ,हम लिखने के लिए विवश हो जाते हैं ,क्योंकि हमारे विचार ,हमारी भावनाएँ ,हमें परेशान करती हैं और लोग सच्चाई पढ़ना नहीं चाहते ,यदि वो सच्चाई पढ़ेंगे ,तब एक सभ्य समाज पर प्रश्न चिन्ह लगता है ? आप तो जानती ही हैं -''जानते सब हैं किन्तु मानता कोई नहीं ''किन्तु हम लेखक भी न जाने किस मिटटी के बने होते हैं ?एक बार जो मन में ठान लें ,उसकी तह तक पहुंचकर ही दम लेते हैं। इतने परिश्रम के पश्चात भी हमें उचित पारश्रमिक नहीं मिलता ,तब मैं ,आपसे कैसे झूठा वायदा कर सकती हूँ ?
नीलिमा को उसकी सच्चाई भली लगी ,उसने सोचा -बेचारी ,न जाने कहाँ से आई हैं ? जब ये मेरे विषय में कुछ जानना ही चाहती है ,तो इसे बताऊँगी अवश्य ,किन्तु कहानी छपने से पहले ,मैं इसे पढ़ना चाहूंगी नीलिमा ने अपनी बात रखी।
जी अवश्य ! प्रभा ने उससे वायदा किया।
प्रिय पाठकों !आप मेरी कहानी पढ़ते हैं ,किन्तु समीक्षा नहीं देते ,तब मुझे कैसे पता चलेगा ? कि आपको कहानी केेसी लगी ?अपना प्रोत्साहन भी देते रहिये ,धन्यवाद !आगे मिलते हैं ,क्या नीलिमा ''प्रभा शर्मा ''को अपनी कहानी सुनाती है या नहीं जानने के लिए ,पढ़िए -''ऐसी भी ज़िंदगी ''