नीलिमा के दफ्तर में उससे मिलने एक लड़की आती है ,जिसका नाम है ''प्रभा शर्मा ''जो एक लेखिका है। वो कहानियाँ लिखती है किन्तु अपनी उन कहानियों में भी ,वो जीवन लिखना चाहती है यानि कल्पना की नहीं बल्कि किसी के जीवन पर आधारित कहानी नहीं ,उपन्यास लिखना चाहती है ,इसी सिलसिले में वो नीलिमा से मिलने आती है और पूछती है -मैम ! मैं आपके जीवन की बारीकियों को सुनना और उनका अध्ययन करना चाहती हूँ। नीलिमा पहले तो उसे कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं होती किन्तु जब वो उसे आश्वासन देती है ,यदि आप चाहेंगी, तो आपका नाम भी नहीं आएगा ,मेरा उपन्यास पूर्ण होने पर सबसे पहले आपको ही पढ़वाऊंगी ,तब उसे छपने के लिए भेजूंगी। नीलिमा उसकी बातों से आश्वस्त होकर उसे अपनी कहानी बताने के लिए तैयार हो जाती है।
नीलिमा की कहानी को ,''प्रभा ''बड़े ही ध्यान से सुनती है , लिखने के लिए तैयार भी हो जाती है ,वो उसकी कहानी के ,कुछ नोट्स लिखकर ले जाती है। तब वो कुछ सोचने पर मजबूर हो जाती है ,जिस महिला ने इतना सब सहा ,और अपने परिवार के विरुद्ध खड़ी भी हुई ,उसने धीरेन्द्र के दोस्तों के धोखा देने पर भी ,उन्हें कुछ क्यों नहीं कहा ? क्या उन्होंने उसे दुबारा नुकसान पहुंचाने का प्रयत्न नहीं किया ? उस रात्रि के पश्चात इस कहानी में ,आगे कहीं भी उनका नाम नहीं है ,ऐसा कैसे हो सकता है ?जो महिला आज अपने दम पर इतनी आगे बढ़ी है। उसने कभी भी अपने अपमान का बदला लेने का क्यों नहीं सोचा ?
दूसरा बिंदु प्रभा के मन में खटका ,जब उसे धीरेन्द्र की पुरानी दोस्त ,जिससे वो प्यार करता था ,उससे मिली ,जो कि अक्सर उसे दिख ही जाती ,उससे पूछा क्यों नहीं ? कि वो कौन है ? क्यों इस तरह पीछा कर रही है ? उसका इस तरह उसके घर के आस -पास दिख जाने का ,उसका उद्देश्य क्या है ? शायद एक बार उसे पता भी चला- कि वो टीना है ,तो उसने उसके विषय में जानना भी नहीं चाहा ,या फिर मुझे बताया नहीं।
नीलिमा के पास तो पैसे की तंगी थी ,तब उसने ऐसा क्या किया ? जो उस संस्था की इतनी उन्नति हुई ,वो तो घर खर्चे के लिए बीस हज़ार रूपये की महिने की आमदनी में अपने बच्चों को पढ़ा रही थी ,बेटे का इलाज़ करा रही थी। इतना पैसा कहाँ से आ रहा था ? मान लीजिये ! उसके पति का ''फंड ''भी मिला होगा ,उसमें तो उसने घर लिया होगा। तब उस संस्था को इतना ''डोनेशन ''कौन देता होगा ?
चौथा बिंदु ,इसमें ये था ,कभी उसने ये भी जानने का प्रयत्न नहीं किया कि आखिर धीरेन्द्र ने आत्महत्या क्यों की होगी ? अपनी बहन के कहने पर भी ,उसे क्यों नहीं लगा ?कि उसकी हत्या भी हो सकती है। जब उसे आत्महत्या ही करनी थी ,तब अपने घर अपना हिस्सा मांगने क्यों गया ? वहाँ उन लोगों में क्या बातचीत हुई ? क्या किसी ने भी जानने का प्रयत्न नहीं किया ?कि आखिर उस घर में धीरेन्द्र के साथ क्या हुआ था ? ''प्रभा शर्मा ''के मन में ये सवाल ,किसी कीड़े की तरह कुलबुलाने लगे। जब तक सम्पूर्ण सच्चाई सामने नहीं आएगी ,तब तक वो कैसे ?अपनी कहानी की शुरुआत कर सकती है।
''प्रभा शर्मा '' नहीं जानती थी ,कि इसी तरह के कुछ प्रश्न एक और व्यक्ति के मन में कुलबुला रहे हैं और जिनका उत्तर वो ढूंढने में लगा है। वो और कोई नहीं ,'' इंस्पेक्टर विकास खन्ना '' है ,जो हवलदार चेतराम और सिपाही जोरावर सिंह के साथ अपनी तहक़ीकात में व्यस्त है किन्तु किसी पर ,बिना सबूत भी तो,किसी पर हाथ नहीं डाल सकता, जिसमें कि आज के समय में ,नीलिमा एक चेहरा बन चुकी है। एक मजबूत माँ ,एक विधवा ,एक समाज -सेविका ,उसके किस रूप पर वो अपना जाल फेंके ? उसकी ससुरालवाले भी कुछ नहीं जानते ,धीरेन्द्र के पिता भी ,नोटबंदी के समय ,ह्रदयाघात से जा चुके हैं। सास भी बिमार रहती है ,उसके जेठ का घर फिर बसा या नहीं। पता नहीं ,उनके घर को किसी का श्राप लग गया था ,जो भरा -पूरा घर बर्बाद हो गया था। खंडहर के रूप में ,कुछ यादें हैं ,उन लोगों के मन में ,जो कभी उनसे जुड़े थे।उनके लिए भी ,उनका परिवार एक भूल -भुलैया बनकर रह गया।
एक दिन फिर से ''प्रभा शर्मा ''नीलिमा के दफ्तर में जाती है।
अबकि बार नीलिमा ने उसका मुस्कुराकर स्वागत किया।
आज कुछ ,'' जलसा '' है ,आपकी संस्था में...... प्रभा ने प्रश्न किया।
हाँ , आज मेरी बेटी बाहर यानि विदेश में पढ़ने गयी है ,इसी ख़ुशी में आज ,बच्चों में आज मिठाई बाँटी गयी है ,बच्चे भी आज मस्ती में हैं ,पढ़ना नहीं चाहते ,तब मैंने आज एक कला की प्रतियोगिता रखी है। बच्चे आज प्रसन्न हैं ,इसीलिए थोड़ा शोर भी मच रहा है। तभी नीलिमा के लिए किसी का फोन आता है और उसका मुँह भी बन जाता है ,फिर भी उस व्यक्ति से बात करती हैं ,क्योंकि आज वो प्रसन्न है इसीलिए अपने को सहज कर उनसे बातें करती है।
मैम ! आपको कोई परेशानी न हो तो ,क्या मैं ,पूछ सकती हूँ ,ये किसका फोन था ?
हाँ -हाँ क्यों नहीं , मेरी कहानी तो तुम्हें मालूम ही है ,उसी कहानी के एक पात्र ,मेरे पापा हैं ,जबसे उन्हें पता चला है, कि मेरी बेटी बाहर गयी है ,तबसे कई बार फोन कर चुके हैं । मुझे बधाई देने के लिए !किन्तु अब ऐसी बधाइयों से मुझे अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि मुझे इस जीवन ने बहुत कुछ सिखा दिया। जब इनके प्यार के दो शब्दों की मैं ,उम्मीद रखती थी ,जिस सहारे की मुझे जरूरत थी ,वो तब नहीं मिला। ये ही वो मेरे अपने हैं ,जिन्होंने मम्मी को बुला लिया ,ये भी नहीं सोचा ,मैं अकेली सब कैसे सम्भालूंगी ?आज भी मयंक के लिए ही उनके पास समय है ,उनका पैसा है और मेरे लिए इस फोन पर प्रशंसा के ''दो शब्द ''जो मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते।