''प्रभा शर्मा '' नीलिमा के जीवन पर आधारित एक उपन्यास बनाती है और नीलिमा से उसकी कहानी सुनती है किन्तु उसकी कहानी में प्रभा को कुछ झोल लगता है ,यानि संदेह लगता है। अपने उसी संदेह को मिटाने के लिए ,पुनः नीलिमा के पास उसके दफ़्तर जाती है। आज दफ्तर में बहुत रौनक सी लग रही थी ,इसीलिए प्रभा ने उससे पूछ ही लिया ,कि आज क्या कोई विशेष बात है ? तब नीलिमा बताती है -आज उसकी बेटी विदेश पढ़ने के लिए गयी है।
तब मैम ,मैं ,जाती हूँ ,अभी आपके पास समय नहीं होगा।
नहीं -नहीं ,तुम बैठो ! मेरी बेटी तो कल जा चुकी ,ये लोग आज ख़ुशी मना रहे हैं , ख़ुशी क्या मनाना ?ये लोग अपने दैनिक जीवन से अलग कुछ करेंगे ,बस ! तुम कहो ! कैसे आना हुआ ?
मुझे तो लगता है ,अब तो आना -जाना लगा ही रहेगा ,जब तक मेरी कहानी पूर्ण नहीं हो जाती किन्तु मेरे मन में कुछ प्रश्न हैं ,जो मैं आपसे जानना चाहती हूँ।
कैसे प्रश्न ?
आपने मुझे बताया ,इस विषय में ,मैं आपसे क्षमा चाहूंगी ,अपनी बात आगे बढ़ाने से पहले प्रभा नीलिमा से क्षमा मांग लेती है- कि कुछ लोगों ने ,यानि ''स्व० धीरेन्द्र सर'' के दोस्तों ने आपके साथ धोखा किया। तब आपको क्रोध नहीं आया। आज की नारी होकर ,आप इस तरह कैसे शांत बैठ सकती हैं ?आपने उन्हें कैसे माफ़ कर दिया ,उन्हें कोई सजा क्यों नहीं दी ?
प्रभा की बातें सुनकर नीलिमा गंभीर हो गयी ,उसने कुछ सोचते हुए ,अपना सिर अपनी कुर्सी के पीछे सटाया ,आँखें मूंदकर ,एक गहरी श्वांस ली और काँता से किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश देकर बोली -उस समय मेरी हैसियत ही क्या थी ? एक बीस हज़ार रूपये पर नौकरी करके अपनी आजीविका चलाने वाली एक विधवा। उस पर भी मेरे साथ , मेरी माँ रहती थी। मैं भी ,इज्ज़तदार परिवार की बहु थी। मेरे तीन छोटे बच्चे थे। मैं भला कैसे उनका मुकाबला कर सकती थी ? नीलिमा ने प्रभा के चेहरे की तरफ देखा।
प्रभा की दृष्टि भी ,उसके चेहरे पर गड़ी हुई थी। तब अनिश्चितता से बोली -उसके पश्चात ,क्या ?वे लोग !आपको कभी नहीं मिले। उसके पश्चात उन्होंने न ही कभी कुछ कहा ,न आपके मन में उनके प्रति कोई आक्रोश रहा। आप समाज -सेवा कर रहीं हैं ,गलत को देखकर उसका विरोध करती हैं ,तब अपने प्रति हुए अत्याचार का आपने विरोध क्यों नहीं किया ? इसका मतलब मैं ये समझूं ,जब आप सक्षम नहीं थीं ,तब आप अपने पर हुए ,अत्याचार का भी विरोध नहीं कर सकीं और आज जब आप नाम कमा चुकी हैं ,तब आप विरोध कर रहीं हैं। इसका अर्थ तो यही हुआ ,हर ग़रीब अथवा कमजोर विरोध करने लायक नहीं रह जाता है क्योंकि उसमे विरोध करने की ताकत ही नहीं है ,और ताकत आती है ,पैसे से ,रुतबे से ,जो आज के समय में आपके पास दोनों हैं। बात तो तब होती जब आप उनकी इस गलती के लिए ,उन्हें सजा देतीं ,उनका विरोध करतीं।
शायद तुम सही कह रही हो ,मुझे उस वक़्त भी उन लोगों का विरोध करना चाहिए था ,किन्तु उस समय मेरी बात कौन सुनता या मानता ?पुलिस के पास जाती ,वो उनकी बात सुनती या मानती या फिर मेरी ,मैं कब तक और कैसे अपने छोटे -छोटे बच्चों को लेकर पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाती ?ऐसे में ,मैं अपनी बदनामी करवाती ,जिसमें मेरे साथ ,मेरा कोई रिश्तेदार भी नहीं था। अपने साथ -साथ बच्चों की भी सजा ही हो जाती ,उन्हें इसका दंड़ मिलता या न मिलता किन्तु मेरा परिवार अवश्य ही परेशान होता, हो सकता है, मेरी नौकरी भी चली जाती ,तब मैं अपने बच्चों को क्या खिलाती ?उन्हें भीख मांगने के लिए ,सड़क पर तो नहीं छोड़ सकती थी। ये बात सही है ,हर कोई अपने हक और अपने ऊपर हुए अन्याय के विरुद्ध लड़ नहीं सकता , क्योंकि लड़ने के लिए ,धन ,समय की भी आवश्यकता पड़ती है ,तभी आज मैं ,ऐसे लोगों के सहयोग के लिए हमेशा तैयार रहती हूँ।
नीलिमा की बातें सुनकर प्रभा उदास हो गयी। कुछ देर इसी तरह बैठी सोचती रही।
नीलिमा ने उसकी तरफ देखा और पूछा -क्या सोच रही हो ?
कुछ नहीं ,मैं अपनी कहानी की नायिका को ,अपने पर हुए अत्याचार के विरोध में भी लड़ते देखना चाहती थी।
नीलिमा उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और बोली -विरोध हो सकते हैं ,और होते भी हैं किन्तु जब अपनी , उनके बराबर लड़ने की क्षमता न हो ,तब भी हम बदला ले सकते हैं ,किन्तु दिमाग से। तुम क्या समझती हो ?बदला लेने का दिल नहीं करता ,अरे दिल में आग लगती है ,रात -दिन सोचना ,परिवार की और कमाने की चिंता.... तब ऐसे में इंसान क्या करेगा ? तब उसे बदला भी लेना है ,ऐसे में तुम्हारी नायिका क्या करेगी ?
क्या करेगी ?
तब वो अपना बदला लेती है ,किन्तु बड़े प्यार से.......
क्या सच.... ?
हूँम्म्म !
वो कैसे ?
तो सुनो !जब उन लोगों ने मेरी इज्जत के साथ खेला और मुझे उसकी क़ीमत देकर चले गए ,उस रात्रि मैं बहुत रोती रही ,मैं अपने जीवन से हताश ,निराश हो चुकी थी। मर भी तो नहीं सकती थी ,बिमार बेटा ,दो छोटी बेटियां, उन्हें किसके ऊपर छोड़कर जाती ? कौन उन्हें पालता ? पता नहीं ,किस अनाथाश्रम में पलते ?या फिर किसी सड़क पर भीख मांग रहे होते। मेरी बेटियों का क्या होता ? लड़कियों को तो खरीदने -बेचनेवाले भी बहुत मिल जाते हैं। मैं ऐसा तो नहीं चाहती थी कि मेरे बच्चे ऐसी ही किसी परिस्थिति का सामना करें।
तब मैम आपने क्या किया ? क्या उन लोगों से बदला लिया ?
तुम क्या समझती हो ? जब मैं दूसरों के लिए खड़ी हो सकती हूँ ,तो क्या अपना बदला नहीं लूँगी ?मैंने उन लोगों से बदला लिया और उन्हें ज़िंदगीभर का सबक़ भी सिखा दिया।
हाय !!सच ,मैम आपने कैसे किया ?और किसी को पता भी नहीं।
नीलिमा ने फिर से , अपनी आंखें मूँद लीं और जैसे वो उन घटनाओं में खो गयी। मैंने उन पैसों से ,अपनी बेटियों का शुल्क जमा किया। तब मैं अपने बैंक गयी।
बैंक !!!बैंक क्यों ?
सुन तो लो ! वहाँ से मैं अपने जेवर लॉकर से निकालकर आई।
वो क्यों ? ये तो आप पहले भी ला सकती थीं और सर के किसी भी दोस्त से ,पैसे मांगने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती।
हाँ ,समझ सकती हूँ ,किन्तु कई बार ,बात देर से दिमाग़ में आती है। तुम सम्पूर्ण जानकारी एकदम से चाहती हो ,इतना उतावलापन भी सही नहीं , मेरी इस कहानी से तुम्हें मेरा एक गुण धैर्य भी नजर आएगा।
जी कहिये ?वो कैसे ?
आखिर अब नीलिमा ने उन लोगों से किस तरह बदला लिया? जानने के लिए पढ़ते रहिये- ऐसी भी ज़िंदगी