नीलिमा प्रभा को अपनी रणनीति बतलाती है, कैसे ?उसने सुरेंद्र ,तपन और रोहित को सबक़ सीखाने का सोचा -वो बताती है ,कभी -कभी घटिया लोगो को सबक सिखाने के लिए ,उन्हीं की तरह ओछा बन जाना पड़ता है। और मैंने वो ही किया ,उन्होंने मेरे औरत होने का लाभ उठाया ,मैंने अपने उसी ''स्त्रीत्व'' को अपने हथियार के रूप में प्रयोग किया। जो मेरी कमजोरी थी ,उसी कमज़ोरी को मैंने अपना हथियार बनाया, हालाँकि इसके लिए मुझे उन्हीं के स्तर का सोचना और करना पड़ा।
वाह !अपने तो कमाल कर दिया ,प्रभा प्रसन्न होते हुए बोली ,किन्तु इसमें आपके ऐसा करने से उन्हें क्या सबक़ मिला ?आपका बदला कैसे पूरा हुआ ?
नीलिमा ने एक गहरी श्वास ली ,अपनी कुर्सी से उठकर टहलने लगी ,तब बाहर झाँका और कांता से पूछा -कोई आया तो नहीं ? उसके इंकार करने पर ,वो पुनः कमरे में टहलने लगी। शायद वो सोच रही थी -अपनी बात की शुरुआत कैसे करे ? प्रभा उसे चुपचाप इस तरह टहलते हुए देख रही थी। तब नीलिमा बोली -उस रात इस कार्य में ,मैं ,न जाने कितनी मौत मरी थी ? किन्तु मुझे भी तो जैसे ज़िद चढ़ गयी थी ,हर मुसीबत के सामने डटकर खड़ी रहूंगी। अपना कार्य हो जाने पर ,मैं अपने घर आई।
प्रभा ! एक बात कहूँ ! दुनिया में बुरे लोग हैं ,तो अच्छे भी कम नहीं हैं ,उस रात्रि उसी ऑटो वाले ने मेरी सहायता भी की और सिर्फ अपना ऑटो का खर्चा लिया। मैंने उसे कुछ ज्यादा पैसे देने चाहे किन्तु उसने इंकार कर दिया बोला -मेरे लिए तो यही बहुत है ,आपकी परेशानी में ,मैं काम आ सका। उसकी भलाई का मैंने ,[उसके बच्चों की शिक्षा आज मेरी संस्था उठा रही है ]इस तरह दिया।
वास्तव में ही ,वो अच्छा था वरना कुछ लोग तो इस बात का ही फ़ायदा उठाकर आपको ''ब्लैकमेल ''कर सकते थे ।
हाँ ,कोई गलत आदमी होता तो शायद एक तरफ से निकल, किसी दूसरे के चंगुल में फंस सकती थी किन्तु वो ऐसा नहीं निकला ,शायद मैंने पिछले जन्म में इतने पाप करने के पश्चात , कुछ अच्छाई भी की हो ,तभी मुझे वो मिला , ख़ैर ,छोडो ! जो भी हुआ अच्छा ही हुआ ,कहते हुए नीलिमा फिर से कुर्सी पर बैठ गयी ,मेज पर रखे गिलास से पानी पीया। तुम कहो तो ,चाय मंगवा लें !
शायद प्रभा को लग रहा था ,इनकी कहानी में अभी समय है ,तब बोली -चलिए !मंगवा लीजिये ,चाय पीते हुए ,आपकी कहानी को आगे सुनते हैं , अब आगे क्या हुआ ?मैम !
कुछ भी जबाब देने से पहले ,नीलिमा ने कांता से चाय और बिस्कुट मंगवा लिए ,चाय के आ जाने पर बोली -चाय लो !और स्वयं आँख मूंदकर बोली -जब मैंने वीडियो देखी तो ,मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं सोच रही थी ,पता नहीं, मेरी ज़िंदगी में क्या और कैसे लोगों से मिलना लिखा है ?इनके लिए मुझे भी न जाने कितना गिरना पड़ गया ? उस रात्रि के दो दिन पश्चात ,उन तीनों के पास ,वो वीडियो पहुंच गयीं। ये तो नहीं जानती ,उस समय उनके चेहरे पर कैसे भाव थे ? उसके दो घंटे पश्चात ही ,मैंने उन तीनों को बारी -बारी से फोन किया और रोते -रोते मैंने अपना दुःख व्यक्त किया ,ये सब मेरे साथ क्या हो रहा है ? मेरे पास कोई वीडियो आया है ,न जाने किसने हमारा वीडियो बना दिया, अब क्या होगा ?
वाह !!मैम आपने तो कमाल कर दिया ,तब तो उन्हें आप पर शक़ भी नहीं हुआ होगा।
होता कैसे ?निलिमा ने अपनी आँखें खोलकर ,चाय का घूंट भरते हुए कहा। जब मैं अबला ही ,उस जाल में फंस गयी कहते हुए व्यंग्य से मुस्कुराई। अब तो ये पता लगाना था, कि ये जाल किसने बुना है ? कहकर वो हँस दी ,फिर गहरी साँस लेते हुए बोली - ''जिंदगी भी क्या अजब खेल दिखाती है ?कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है। ''
आगे क्या हुआ ? मैम ! प्रभा की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही थी।
वे तीनों ही तनावग्रस्त हो गए ,मुझसे भी आकर मिले किन्तु मैं क्या कर सकती थी ? एक दिन मेरे घर भी आये ,मैंने कहा -मेरे तो छोटे बच्चे हैं ,मैं इन्हें लेकर दूसरे शहर में चली जाऊँगी ,अब तक तो धीरेन्द्र के कारण ही तो यहाँ थी ,ससुराल में ,मेरे होने न होने का उन पर कोई असर नहीं पड़ता किन्तु आप लोगों की तो नौकरी का सवाल है ,और जब घर में तुम्हारी बीवियों, रिश्तेदारों को पता चलेगा तो क्या होगा ?
मेरी बातें सुनकर उनके चेहरे उतर गए ,घबराहट के कारण ,पसीने छूट रहे थे ,उस समय के दृश्य को सोचकर वो मुस्कुरा रही थी ,जैसे उसके सामने आज भी वो लोग डरते -कांपते खड़े हों। तब मैंने बात को और बड़ा किया ,कल को तुम्हारी बीवियों के पास वो वीडियो पहुंच गयी ,तब तुम्हारी गृहस्थी का क्या होगा ? वे इधर -उधर टहल रहे थे ,तब मैं बोली -अभी आप लोग जाइये ,और कभी भी इधर मत आना ,हो सकता है ,उसकी नजर मेरे घर पर भी हो ,तुम्हें यहाँ से आते -जाते देखकर ,उसे तो पक्का सबूत मिल जायेगा। मेरी बात उन्हें जँची , वो लोग शीघ्र ही वहाँ से निकल गए।
तब क्या ?वे फिर कभी आपके घर नहीं आये।
आये न.... नीलिमा मुस्कुराकर बोली किन्तु इससे पहले वो बात सुनो ! जिसके कारण उन्हें आना पड़ा।
अच्छा वो कैसे ?उत्साहित होते हुए प्रभा ने पूछा।
अभी उनकी घबराहट थोड़ी कम ही हुई होगी ,तभी एक फोन उनके पास गया ,यदि तुम समाज में अपना सम्मान बने रहने देना चाहते हो और किसी को पता न चले ,तब मैं जैसा कहता हूँ ,वैसा ही करना होगा।
क्या करना होगा ?
तुम बहुत ही जल्दबाज़ी दिखाती हो ,आ तो रही हूँ असल मुद्दे पर ,नीलिमा फिर से खड़ी होकर ,टहलते हुए बोली - उस व्यक्ति ने उनसे ,पांच -पांच लाख रूपये मांगे। जिसे वो लोग सहर्ष देने के लिए तैयार हो गए।
प्रभा नाक -भौं सिकोड़ते हुए बोली -बस इतने से ही ,कोई बड़ा हाथ मारा होता।
मैं कोई ख़ानदानी ''क्रिमिनल ''नहीं हूँ ,और न ही इतनी अधिक लालची ,फिर सोने की मुर्गी को एक बार में ही हलाल करने से क्या होता ?जब हम समय -समय पर ,जब जी चाहे ,''सोने का अंडा '' ले सकते हैं।
तब क्या उन्होंने अंडा दिया ,यानि पैसे दिए ,प्रभा भी खड़ी होकर नीलिमा के सामने आ गयी।
खिड़की से बाहर झांकते हुए नीलिमा बोली -ये पैसे उनके लिए ज्यादा नहीं थे ,मेरे लिए बहुत बड़ी रक़म।उसके बदले ,उन्होंने अपनी वीडियो मांगी किन्तु उस आदमी ने देने से इंकार कर दिया और बोला -ये समझो- ये मेरी पहली 'इंस्टॉलमेंट 'है। तुम्हारी बीवियों को ये वीडियो भेजकर ज्यादा पैसे भी कमा सकता हूँ। मिडिया में देकर तो और भी ज्यादा।
तब क्या उन्होंने वो रक़म दी ?दी भी तो, कैसे ?
अब पैसे देने के लिए ,मुझे उन लोगों का साथ देना पड़ा , क्योंकि उस आदमी ने कहा था ,उसी महिला के हाथ वो बैग भेजना ,जो उस रात्रि को तुम लोगों के संग थी क्योंकि वो एक औरत है ,मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी। तुम लोगों ने जरा सी भी चालाकी की ,वो तो मरेगी ही ,तुम भी नहीं बचोगे। हमारे घर के दाएं में एक पार्क था ,वहीं मुझे वो बैग लेकर जाना था। लगभग आठ बजे वहीं छोड़कर आना था।
तब आप गयीं !
हाँ जाना ही पड़ता, नहीं तो वो बदमाश मुझे मार नहीं देता ,कहकर नीलिमा खिलखिलाकर हँस दी।
क्या नीलिमा वो बैग उस ब्लैकमेलर तक पहुंचा पाई ? वो ब्लैकमेलर कौन था ?जो उन्हें फोन करता था ,जानने के लिए पढ़ते रहिये -''ऐसी भी ज़िंदगी '' अपनी समीक्षा और प्रोत्साहन देते रहिये -धन्यवाद !