नीलिमा प्रभा को अपनी योजना से रूबरू कराती है ,कि किस तरह वो ,सुरेंद्र ,तपन और रोहित से अपने अपमान का बदला लेती है ? उस समय उसके पास न ही पैसा था ,न ही कोई पावर ,तब वो किस तरह चालाकी से अपना बदला लेती है ? ये बताती है ,वो ये भी जानती थी ,एक बार भी किसी को पता चल गया तो ये लोग उसको छोड़ेंगे नहीं ,तब भी अपने अपमान के बदले के लिए तो ,उसे जोख़िम लेना ही होगा और जो जोख़िम उसने लिया उसमें वो क़ामयाब भी होती है। तब वो बताती है -एक अनजान कॉल उन्हें आती है ,उसके तहत वो लोग पांच -पांच लाख रूपये देने के लिए तैयार हो जाते हैं और वो बैग नीलिमा को ही लेकर जाना था क्योंकि ''ब्लैकमेलर '' नीलिमा को कमजोर होने के नाते उसे ही बुलाता है।
नीलिमा की बात सुनकर प्रभा बहुत तेज हंसी और हँसते -हँसते ,लोट-पोट हो गयी।
एक बार को तो नीलिमा भी नहीं समझ पाई ,ये क्यों हँस रही है ?
क्यों ?तुम क्यों हँस रही हो ?
हँसू नहीं ,तो क्या करूं ?'' ब्लैकमेलर ''ही ''ब्लेकमेलर '' को पैसे देने जा रहा था।
उसकी बात सुनकर ,नीलिमा भी हंसने लगी और बोली -ये बात तुम जानती हो ,मैं जानती हूँ किन्तु वे लोग तो नहीं जानते , तभी एकाएक नीलिमा गंभीर मुद्रा में बोली -नहीं ,मैं ब्लैकमेलर नहीं थी ,मैं 'ब्लैकमेलर ' कैसे हो सकती हूँ ? मेरी क्या इतनी भारी आवाज है ?या मर्दों जैसी आवाज है।
अरे हाँ ,ये तो मैंने सोचा ही नहीं ,फिर कौन था ?वो ! जो इस योजना में आपका साथ दे रहा था।
नहीं ,मैंने किसी को भी अपनी योजना में शामिल नहीं किया ,न ही किसी को इस बात की भनक भी लगने दी।
ऐसा कैसे हो सकता है ?कोई आपकी योजना में शामिल नहीं ,किसी को भी इसकी जानकारी नहीं ,तब उन्हें फोन कौन कर रहा था ? कौन उनसे वो फिरौती के पैसे मांग रहा था ? प्रभा ने सर खुजलाते हुए पूछा।
तुम ही बताओ ! तुम तो एक लेखिका हो। किसने मेरा साथ दिया होगा ,या किसकी आवाज होगी ?
शायद आपने ही ,अपनी आवाज बदलकर बोला हो ,नीलिमा ने' नहीं 'में गर्दन हिलाई ,तब और कौन हो सकता है ? प्रभा सोचते हुए बोली -हाँ ,आपकी कहानी में एक और पुरुष पात्र थे ,जो आपके साथ थे ,अरे... वही ,जो मेहराजी के स्कूल में ,आपको नौकरी दिलवाते हैं.... क्या नाम था ?उनका... दिमाग़ पर जोर डालते हुए प्रभा बोली -हाँ ,याद आया ,''दत्ता साहब ''कहते हुए ,नीलिमा की तरफ देखा ,तभी मन में प्रश्न उठा ,उनसे कैसे कहलवाया होगा ?
नीलिमा मुस्कुराकर बोली -कुछ हद तक सही है ,एक बार तो मैंने उन अंकल का सहारा लिया।
वो कैसे ? उनसे कैसे कहा ?कि मेरे लिए ये शब्द या लाइनें बोल दो।
नहीं ,उन अंकल को मैंने अपने संस्था के बच्चों का कार्यक्रम दिखाने के लिए बुलाया था ,उस में मैंने जानबूझकर वो लाइनें रखीं और बच्चों को सीखाने के बहाने उनसे वे 'डायलॉग 'बुलवाये। वही लाइनें मैंने रिकॉर्ड कर लीं और उनका ही उपयोग किया।
क्यों ?पीछे बच्चों का शोर नहीं गया होगा।
बच्चे तो डरे -सहमे होने का अभिनय कर रहे थे न..... बिल्कुल शांत थे।
हर बार तो वो अंकल नहीं आये होंगे।
हाँ...... तब मैंने रामभजन से ये कार्य करवाया।
रामभजन कौन ?
जैसे कांता अपना काम करती है ,ऐसे ही रामभजन भी हमारे यहाँ काम करता है।
उससे आपने क्या कहा ?
मैं अपना फोन लेकर गयी और उससे कई वाक्य ऐसे ही बुलवाये ,जिनमें कुछ मेरे काम के भी थे ,उसे भी अभिनय का शौक है ,यहाँ हम बच्चों को खेल -खेल में ,ऐसे ही कुछ नाच -गाने ,अभिनय जैसी चीजें करवाते रहते हैं। तब उसे वो डायलॉग मैंने उससे बुलवाकर रिकॉर्ड किये और उसे उसकी आवाज भी सुनायी जिससे वो बहुत खुश हुआ।
अच्छा ये सब छोड़िये ,अब आप ये बताइये ! क्या आप वो पैसे लेकर उस पार्क में गयीं ?
हाँ ,जाना ही पड़ता आखिर पंद्रह लाख का सवाल था ,वो लोग भी चोरी से मेरा पीछा कर रहे थे ,ताकि उस ''ब्लैकमेलर ''को पकड़ सकें। मैं थैला उस पार्क में रखकर आ गयी ,वो लोग ही ,न जाने कितनी देर तक खड़े रहे ? जब उन्होंने वो बैग जाकर देखा तो उसमें कुछ नहीं था। अगले दिन मैंने ही फोन करके पूछा -कौन था ?वो आदमी !
उन्होंने बताया ,हम लगभग दो घंटे तक वहां खड़े रहे ,किन्तु कोई भी वो बैग लेने नहीं आया ,तब हमने उस बैग के नजदीक जाकर देखा तो बैग ख़ाली था जिसमें सिर्फ एक चिट थी ,जिसमें लिखा था -पहली किश्त आ गयी ,दूसरी तैयार रखना। पता नहीं ,कब वो बैग में से पैसे लेकर निकल गया ?
कैसे ,उस बैग के पैसे ग़ायब हुए ?प्रभा आश्चर्य से बोली।
गायब तो तभी होते ,जब उसमें पैसे होते।
क्यों ?उसमें पैसे ही नहीं थे।
नहीं ,पैसे तो जिसके पास होने चाहिए थे ,उसी के पास थे।
मतलब !!!
मतलब ये कि ,पैसे मैंने घर पर ही निकालकर रख लिए थे ,वो बैग ऐसा था ख़ाली होकर भी भरा सा लगता था। मैं उसको इस तरह से ले गयी ,जैसे बहुत वजनी हो और आराम से रखा। जब कोई आता तभी तो ,बैग खाली होता, कहकर वो हँसने लगी।
चलो ,मान लिया इस तरह आपने उन लोगों को मूर्ख बना दिया किन्तु हर बार तो ऐसा नहीं होता न.... इसके बाद उन्हें आप पर शक़ नहीं हुआ।
होता कैसे ? जब दुबारा वो वाक्या हुआ ही नहीं।
क्या मतलब ?
अब प्रभा के पास बैठते हुए ,नीलिमा बोली -वो इसीलिए क्योंकि वे पंद्रह लाख मेरे लिए बहुत थे ,मेरे बच्चों की शिक्षा भी आराम से हो सकती थी। उसके पश्चात ,धीरेन्द्र का भी कुछ पैसा मुझे मिला था ,जिससे मैंने अपने गुज़ारे लायक घर ले लिया। बेटियाँ ब्याहकर अपने घर चली जाएँगी ,रह जायेंगे ,अथर्व और मैं !एक दूजे का सहारा... कहते हुए ,नीलिमा की आँखें फिर से भर आईं।
इसका मतलब ,उन तीनों का तो पंद्रह लाख में ही ,पिंड छूट गया।
नहीं ,ऐसे कैसे ?
क्या ,कहानी में और भी कुछ मोड़ है ?
हाँ ,हमारी संस्था..... उन्हीं की मेहरबानी पर आगे बढ़ी।
वो कैसे ?
उनके पास एक फोन और गया ,जिसमें उनसे कहा गया ,इतने पाप किये हैं ,तनिक उन्हें धो भी लो ! तीनो बारी -बारी से पचास हजार रूपये हर माह ,उस संस्था को दान कर दिया करो ,जिसे ''गुप्त दान ''कहते है। तब मैंने इस संस्था को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया। उस दान से ही आज ये इतना बढ़ा।
मैम !आप सही हैं ,आपने अपना बदला तो लिया ही किन्तु इसमें आपने अपना फायदा ही नहीं देखा ,वरन अपनी जरूरत ही पूर्ण की और कोई होता तो लालच में उन्हें ही लूटता रहता ,आपने उनके द्वारा एक भलाई का भी काम करवा दिया। बेचारे !न जाने कितने बच्चों को खाना शिक्षा और उनकी बीमारी का खर्चा चल रहा है।
ये सब उन्ही के दिए पैसे से ही नहीं ,अब तो अन्य लोग भी ,हमारी संस्था को दान देने लगे ,अब हमारी मेहनत तुम्हें दिख ही रही है।