आज संस्था में ,बहुत सारे रंगीन पतंगी कागज़ों से सजावट हुई है ,आज फर्श पहले से अधिक साफ -सुथरा हो रहा है। सभी कमरों के दरवाजों पर वंदनवार लगे हैं ,आम और अशोक के पत्तों और गुलाब ,गेंदा के फूलों से सजावट की गयी है। संस्था के बीचों बीच आंगन में ,एक बड़ी सी मूर्ति लगाई गयी है ,जो नीलिमा ने अपने विद्यार्थियों द्वारा मिलकर बनाई और सजाई है। उस मूर्ति के वस्त्र श्वेत हैं और वो श्वेत हंस पर ही विराजमान है। जो नीलिमा और बच्चों ने रुई और गत्तों का इस्तेमाल करके बनायी है। सफेद साड़ी नीलिमा के पास थी। देवी के आभूषण भी गत्ते ,मोती ,फूलों से बनाये गए हैं। आखिर नीलिमा और बच्चों की मेहनत रंग लाई ,और माँ सरस्वती की मूर्ति मुस्कुराते हुए ,अपने हंस पर विराजमान नजर आ रही थी। वो बच्ची है भी तो इतनी प्यारी ,जब उसने माँ सरस्वती का रूप धारण किया , तब ऐसा लग रहा था जैसे साक्षात् स्वयं माँ सरस्वती ,बाल रूप में पृथ्वी पर भृमण करने आई हों।
सभी ने आज मिलकर ,देवी माँ की पूजा -अर्चना की ,फूलों की वर्षा की। सभी ने पीले वस्त्र पहने थे , उसके पश्चात सभी ने पीले मीठे चावलों का प्रसाद खाया ,उसके पश्चात ,झाँकी भी निकाली गयी। बच्चे भी बहुत उत्साहित और प्रसन्न हैं। झांकी से वापस लौटते समय बच्चों को लगभग दोपहर हो गयी। उसके पश्चात सभी ने खाना खाया। नीलिमा भी थक चुकी थी ,अपने साथ अथर्व को भी ले गयी थी। तब वो वहीं बच्चों के साथ कुछ देर आराम करके , सभी पतंग उड़ाते हैं। देवी माँ पर प्रसाद और पैसों का खूब चढ़ावा आया। आज बच्चों का अच्छे से बसंत का त्यौहार मना। नीलिमा अपने तीनों बच्चों के साथ ही उस जलसे में थी।
शाम को नीलिमा ने कल्पना से अपनी दोनों बहन -भाई को लेकर जाने के लिए कहा और स्वयं थोड़ा काम है , कहकर रुक गयी। तभी प्रभा का फोन आया ,नीलिमा ने फोन उठाया -हैलो !
हैलो ! मेेम ,मैं प्रभा बोल रही हूँ , क्या आप मुझे थोड़ा समय दे सकती हैं ?
नीलिमा ने घड़ी में समय देखा और बोली -अब तो सम्भव नहीं हो पायेगा ,क्योंकि दो -तीन दिनों से ,हम लोग ''बसंत पंचमी ''की तैयारियों में लगे थे। आज सभी कार्य पूर्ण हुए ,आज भी पूरा दिन ऐसे ही निकल गया ,अभी मुझे यहाँ थोड़ा कार्य है। अब समय नहीं बचेगा ,तुम्हें परेशानी न हो तो ,कल मिलते हैं।
जी ,ठीक है ,मैं कल आ जाउंगी।
वैसे मेरा विचार है ,अब तो तुम्हारे सभी सवालों के जबाब तुम्हें मिल गए होंगे या अभी भी और प्रश्न हैं।
जी..... अभी तो पूरी तरह से तो नहीं ,किन्तु कल तक आ ही जायँगे। एक -सवाल पहला भी हैं।
ठीक है ,कल मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी कहकर नीलिमा ने फोन रख दिया।
अगले दिन जब प्रभा ,नीलिमा के संस्था वाले दफ्तर में पहुंची ,तब वहां पहले से ही ''इंस्पेक्टर विकास खन्ना '' विद्यमान था। इंस्पेक्टर को देखकर प्रभा , अंदर जाने में झिझकी ,बाहर ही प्रतीक्षा करने लगी और कांता से पूछा -पुलिस क्यों आई है ?मोटरसाइकिल की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
कांता ने मुँह बिचकाकर कहा , पता नहीं !
जी कहिये !नीलिमा ने इंस्पेक्टर की तरफ देखते हुए पूछा।
जी ,मेरा नाम ''इंस्पेक्टर विकास खन्ना ''है। मैं यहाँ'' धीरेन्द्र सक्सैना ''के खून के सिलसिले में यहाँ आया हूँ
खून..... ये कैसे हो सकता है ? नीलिमा आश्चर्य से बोली -उन्होंने तो ट्रेन के आगे आत्महत्या की है।
जी , ऐसा सब समझते हैं ,मेरे पास कई साल से एक फोन लगातार आ रहा है।
कैसा फोन ?और किसका ?
प्रभा बाहर टहलते हुए , नीलिमा के कमरे के बाहर की बेंच पर बैठ जाती है। तभी उसके कानों में ,इंस्पेक्टर वही शब्द आकर पड़े ,कि ''धीरेन्द्र सक्सैना ''का खून हुआ है। ये बात सुनते ही प्रभा के ''कान खड़े हो गए। ''
जी, मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ ? नीलिमा का सवाल था।
इससे पहले की इंस्पेक्टर कुछ कहता ,तभी प्रभा दरवाजे पर खड़े होकर ,पूछती है ,मेेम !क्या मैं अंदर आ सकती हूँ ?
अरे ,आओ प्रभा ! तुम भी आ जाओ ! प्रभा अंदर आते समय इंस्पेक्टर से अभिवादन करती है और आकर उनके बराबर की कुर्सी पर , बैठ जाती है।
इंस्पेक्टर साहब ! इनसे मिलिए , आप एक लेखिका हैं और इनका नाम ''प्रभा शर्मा ''है ,आजकल इनकी मेरे ऊपर रिसर्च चल रही है ,नीलिमा ने मुस्कुराते हुए कहा।
जी ,मैं कुछ समझा नहीं ,तब तक कांता ,एक ट्रे में ,तीन चाय लेकर अंदर आ गयी थी। चाय की प्याली हाथ में लेते हुए , इंस्पेक्टर ने पूछा।
जी ,ये आजकल मेरी कहानी रूचि ले रही हैं , मेरे जीवन पर एक किताब लिख रहीं हैं।
ओह !इंस्पेक्टर विकास मुस्कुराते हुए बोला - ''नाइस टू मीट यू।''
'नाइस टू मीट यू ,टू 'कहकर प्रभा ने मुस्कुराकर जबाब दिया। मैं भी इसीलिए अंदर आई शायद आपसे मिलकर भी ,मेरी कहानी को एक नया मोड़ मिले। मेरे मन में भी यही प्रश्न आया था।
हाँ जी ,आप क्या कह रहे थे ? नीलिमा ने अपनी प्याली होठों से लगाते हुए पूछा।
जी ,मैं ये कह रहा था , कि किसी को शक़ है ,आपके पति ने आत्महत्या नहीं की वरन उनका खून हुआ है।
नीलिमा मन ही मन सोच रही थी , ऐसा तो उसकी बहन चंद्रिका को भी लगा था ,क्या वो ही तो ऐसा नहीं कर रही ?
इंस्पेक्टर की आवाज़ से उसका ध्यान भंग हुआ ,वो कह रहा था -क्या ,सोच रहीं हैं ,आप !
जी ,मेरी बहन चंद्रिका को भी कुछ ऐसा ही लगा था।
उन्हें ऐसा क्यों लगा था ?इंस्पेक्टर ने पूछा।
जी उनकी अपनी ,सोच है ,आप बताइये !आपको क्या लग रहा है ?
जी ,मुझे भी यही लग रहा है कि भीड़ का और अँधेरे का लाभ उठाकर किसी ने उन्हें धक्का दिया। ऐसा कौन हो सकता है ?कहते हुए ,इंस्पेक्टर ने नीलिमा के चेहरे पर नज़रें गड़ा दीं।
उसके इस तरह देखने पर नीलिमा का चेहरा सुर्ख़ हो गया। बोली -आप तो मुझे ऐसे देख रहे हैं ,जैसे मैंने खून किया हो ,या उन्हें लेजाकर ट्रेन के आगे धक्का दे दिया हो। आप इंस्पेक्टर हैं , ये आपका काम है ,जाकर पता लगाइये -कि उनका यदि खून हुआ है , तो किसने किया है ? इतने बरसों से आप पता नहीं ,लगा सके।
जी...... खूनी के तो लगभग करीब पहुंच चुका हूँ , किन्तु मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ ,कभी आपके मन में ये प्रश्न नहीं आया -कि हो सकता है किसी ने उसकी हत्या की हो।
जी नहीं ,नीलिमा ने बेरुख़ी से जबाब दिया।
तभी प्रभा बोली -आज मैं भी यही प्रश्न लेकर ,आपके पास आई हूँ।
इंस्पेक्टर की बात में कहाँ तक सच्चाई है? जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी