नीलिमा अपने अतीत के पन्नों में से ,एक पन्ना पढ़ती है ,जो उसके दुःख को बढ़ा देता है। जब उसने पहली बार चम्पा को , धीरेन्द्र के साथ देखा था ,उस दिन उसे अपनी दुनिया हिलती नजर आई थी। उस समय उसके साथ कोई नजर नहीं आ रहा था। जिसके सहारे वो अपनी सम्पूर्ण ज़िंदगी के सपने देख रही थी। वो तो अपना ही नहीं था। शायद वो किसी का भी नहीं था। उसे अपने आप से ,अपनी ख़ुशी, अपनी इच्छाओं से ही लगाव था। ऐसा उसने एक बार नहीं ,कई बार देखा , इंसान से एक बार,अनजाने में गलती हो जाये ,तो माफ भी कर दे किन्तु लगातार और जानबूझकर की गयी, गलतियों की कोई माफी नहीं।अभी वो ये सब सोच ही रही थी किन्तु बेटी की मुस्कुराहट ने ,उसे वो सब भुलाने में सहायता की। प्रभा भी अपनी कहानी की शुरुआत करती है। वो नीलिमा के दर्द को मह्सूस कर सकती थी।
आज फिर नीलिमा से मिलने ,प्रभा आती है उसने कल ही फोन पर ,उससे'' अपॉइंटमेंट ''ले ली थी। आज फिर से प्रभा उसके सामने थी। नीलिमा अपने काम में व्यस्त थी ,उसने प्रभा को बुला तो लिया था किन्तु फिर भी ,आज ऐसा दिखा रही थी ,जैसे बहुत सारा काम उसके सिर पर आन पड़ा हो। शायद वो प्रभा से नजरें चुरा रही थी। वो नहीं चाह रही थी -कि प्रभा उससे कुछ भी ऐसा पूछे ,जिन पलों को वो वर्षों पहले ,जबरदस्ती दबा चुकी थी, वही पल मौक़ा हाथ लगते ही , उभरकर आ जाते हैं।
आज प्रभा भी समझ रही थी ,कि अपने भूत से व्यक्ति कैसे भागता है ? नजरें वो दूसरों से ही नहीं ,अपने आप से भी चुराता है। अब आई हूँ ,तो पूछना तो पड़ेगा ही। मैम ! यदि आपको समय हो तो हम बात कर सकते हैं।
हाँ -हाँ , देखिये न..... मैंने आपको बुला तो लिया किन्तु समय नहीं दे पा रही हूँ , दरअसल आज हमारी संस्था के बच्चों के इम्तिहान हैं ,जो पास होगा उसका उसी आधार पर उनका दाख़िला होगा , तैयारी तो हम बहुत दिनों से करा रहे हैं किन्तु आज उनका इंतिहान है।
अच्छा तो मैं चलती हूँ ,मैं फिर कभी आ जाऊँगी।
नहीं -नहीं ,आप बैठिये थोड़ी देर में ही सब हो जायेगा ये लोग चले जायेंगे ,तब हम इत्मीनान से बातें कर सकते हैं।
प्रभा को थोड़ी उम्मीद जगी और वो इस इंतजार में वहीँ बैठ गयी ,कुछ देर के लिए टहलने लगी ,तब वो बोली -आपकी संस्था के बच्चे किस स्कूल में ,इम्तिहान देने जा रहे हैं ?
क्यों क्या हुआ ?नीलिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा।
बात तो कुछ नहीं है ,किन्तु यदि सभी बच्चों का दाखिला वहां नहीं होता है ,तब मेरे स्कूल में भेज दीजियेगा ,मैं उनका दाखिला करवा दूंगी।
वो तो बहुत बड़ा और महंगा स्कूल है।
होशियार बच्चों के लिए , फ़ीस माफ़ी की भी सुविधा है। अब आप देख लीजिये आपके बच्चे कैसे हैं ?कहकर प्रभा हंसी।
जी , हमारे सभी बच्चे समझदार हैं ,एक बार आपके स्कूल में पहुंच गए न.... वहां भी अपने झंडे गाड़ देंगे।
ये तो अच्छी बात है ,इसमें मेरा भी नाम होगा ,कि मैं इतने होशियार बच्चे उस स्कूल में लेकर आई।
कुछ देर के इंतजार के पश्चात ,प्रभा से नीलिमा कहती है -अब आप मुझसे कोई भी प्रश्न कर सकती हैं। वैसे मैं एक बात जानना चाहूंगी ,यदि आपको बुरा न लगे तो.....
जी पूछिए ,ऐसी क्या बात करना चाहती हैं ?जो मुझे बुरा लग सकता है।
जी ,वैसे तो बात कुछ ख़ास भी नहीं ,फिर भी मैं ये जानना चाहती थी ,कि इंस्पेक्टर साहब जो कल यहाँ आये थे , क्या आप पहले से उन्हें जानती हैं ?
ये क्या बात कर रहीं हैं ? आप ! मैं तो उनसे कल पहली बार ही ,आपके दफ्तर में मिली। पर आप ये क्यों पूछ रहीं हैं ?
कुछ नहीं ,जब दोनों ने ही ,एक जैसे प्रश्न किये , तो लगा शायद ,आप लोग एक -दूसरे को जानते हैं ,ख़ैर..... छोड़िये ! आप बताइये ,अब आपको क्या पूछना है ?आपकी किताब अभी कुछ आगे बढ़ी या नहीं।
जी चल रही है , मैं ये जानना चाहती थी ,आपके पति स्वभाव से कैसे थे ?या उनकी मौत से पहले उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन महसूस हुआ या नहीं ,उसके विषय में जो कुछ भी आपको जानकारी हो ,आप मुझे बता दीजिये ,क्या मालूम मेरे काम की कोई बात निकल आये ?
नीलिमा ने प्रभा को नजरभर देखा और बोली -आप मेरी कहानी लिख रहीं हैं या धीरेन्द्र पर।
लिख तो आप ही पर रही हूँ ,किन्तु कहानी में आप कहाँ सही है ?कहाँ गलत ,या आपसे जुड़े लोग कैसे थे ?उनसे आपको प्रोत्साहन मिला या नहीं। आपके जीवन में ,किस -किस तरह के लोगों से मिलने पर बदलाव आया ,ये सब आपके चरित्र को उभारने के लिए आवश्यक है ,प्रभा ने अपनी बात उसे समझाई।
नीलिमा ने उसकी बात गंभीरता से सुनी और बोली -आप कह तो सही रहीं हैं। धीरेन्द्र ने जब पहली बार मुझे फोन किया ,तब मुझे वो एकदम दिलखुश ,वाचाल ,कुछ -कुछ दिलफेंक भी ,व्यवहारकुशल भी लगे। अपनी बातचीत और व्यवहार से वो, किसी लड़की का भी दिल जीतने में सक्षम थे। उस समय मैंने बाहरवीं ही पास की थी। पहली बार वो मेरी ज़िंदगी में आये ,लोगों को परखने की इतनी समझ भी नहीं थी। अपनी बातचीत से मुझे ही नहीं ,मेरे घरवालों को भी शीशे में उतार लिया था। खुलकर पैसा खर्चा करना ,उनका जीने का अंदाज ही निराला था।
शादी के बाद ,मैं भी उनके रंग में रंगने लगी। एक तो उम्र कम ,ऊपर से पिता की बंदिशों के पश्चात ,खुले दिल का पति मिला। मैं तो जैसे अपने आप को भूल ही गयी। उनकी नजर से सोचना ,देखना -रहना किन्तु उनकी मम्मी अपने व्यवहार से कभी -कभी मुझे धरातल पर ले आती। अब आप ये देखिये ,हमारे परिवार से ही क्या ?आस -पास के भी, किसी रिश्ते में कोई स्विट्जरलैंड घूमने नहीं गया किन्तु हम दोनों हनीमून मनाने गए।
आपकी इन बातों से तो पता चलता है ,वो मनमौजी ख़ुशदिल व्यक्ति थे ,आपके साथ भी, अच्छी बनती थी। तब आपके जीवन में कोई परेशानी या झगड़ा तो नहीं हुआ। प्रभा धीरेन्द्र के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकी। ये तो आपने उनके गुण गिना दिए ,उनमें सभी अच्छाई तो नहीं हों सकती ,कुछ बुराई भी होंगी। अब मुझे उनकी कुछ बातें ऐसी भी बताइये ,जो आपको पसंद नहीं थी।
जब प्रभा ने उसकी बुराइयों के विषय में पूछा ,नीलिमा कुछ देर तक शांत रही ,वो थोड़ी गंभीर हो गयी।
इसमें ऐसा सोचना भी क्या ?इंसान तो इंसान है ,कोई भी ऐसा इस दुनिया में न होगा ,जिसमें सिर्फ अच्छाई ही अच्छाई ही भरी पड़ी हों। कम ही सही ,बुराइयां भी होती ही हैं।
नीलिमा अपनी कुर्सी से उठकर खिड़की से बाहर देखने लगी ,ऐसा लग रहा था ,जैसे वो अतीत में झांक रही हो। तब बोली - उसमें बुराई थी -शराब पीने की , दिखावा करने की ,दोस्तों में ज्यादा घुलमिलकर रहने की ,उसे भविष्य की कोई ,चिंता नहीं थी। सबसे अधिक वो भी अन्य लोगों की तरह ही ,बेटियों को पसंद नहीं करता था ,जैसे कुछ लोग बेटियों का पैदा होना ,उनके लिए बुरा समझते हैं ,उसी प्रकार वो भी था। एक पढ़ा -लिखा , अभियंता होने के बावजूद भी ,वो ऐसी सोच रखता था। सबसे ज्यादा ,उसे हमेशा से ही एक औरत का साथ चाहिए होता था, फिर चाहे उस औरत की इच्छा हो या नहीं।
प्रभा महसूस कर रही थी ,अभी थोड़ी देर पहले ,जो नीलिमा उसके गुण गिना रही थी और धीरेन्द्र को उनके करके बात कर रही थी ,उसकी बुराई गिनाते समय ,उसके कहने लगी। प्रभा ने ,अपनी कुर्सी भी खिड़की की तरफ ही घुमा ली और नीलिमा की तरफ देखते हुए बोली -अच्छा ,ये बताइये !आपको आपके पति की इन बुराइयों का कब पता चला ?
नीलिमा उसका जबाब देने से पहले ,बोली -अच्छा, आज आप चाय लोगी या कॉफी !कांता से कहकर मंगवा लेते हैं।
वो शायद अपने ग़म के बोझ ,या फिर दुखती यादों के स्मरण मात्र से ही, थकावट महसूस कर रही थी ,मैंने भी कह दिया -आज कॉफी ही पी लेते हैं। तब नीलिमा ने कांता को बुलाया और दो कॉफी लाने का आदेश दिया।