प्रभा शीघ्र से शीघ्र अपना उपन्यास पूर्णता की ओर ले जाना चाहती है ,तभी उसे इंस्पेक्टर विकास खन्ना मिला और उसने उसे समझाया कि किस तरह एक -एक बारीक़ी को लेकर ,चलना है। प्रभा को भी ये सही लगा ,उपन्यास जितनी सच्चाई के साथ लिखा जायेगा ,उतना ही पसंद किया जायेगा। इसीलिए आज फिर से प्रभा नीलिमा से मिलती है और धीरेन्द्र की अच्छाई और बुराई के विषय में जानना चाहती है। जब धीरेन्द्र की अच्छी बातें नीलिमा को स्मरण होती हैं ,तब उनके लिए जैसे सम्मानित शब्द निकले, किन्तु जब उसकी बुराइयों के विषय में पूछा गया ,तो जैसे मन उबल पड़ा ,जीभ में जैसे छाले पड़ गए।' उनके' लिए जैसा सम्मानित शब्द भी नहीं रहा। अब वो 'उसके 'जैसे शब्दों पर आ गयी। तब प्रभा को पता चला ,नीलिमा की ज़िंदगी में ,सुख के पल कम ही थे किन्तु दुःख तो अनन्त है। कहने को तो धीरेन्द्र उसके साथ होकर भी साथ नहीं था किन्तु टीना का क्या हुआ ?
उसे न ही परिवार की ,न ही अपने बच्चों की चिंता थी ,वो तो जैसे अपनी ज़िंदगी को सजा दे रहा था ,उसे न ही नीलिमा से ,न ही बच्चों से लगाव था। पढ़ा -लिखा होकर भी ,लड़के और लड़की में भेदभाव रखता था ,उसका अपनी बेटियों से भी सही व्यवहार नहीं था। शादी से पहले जहाँ उसका रूप मिलनसार ,व्यवहारिक ,खुशदिल था वहीं विवाह के पश्चात ,उसका दूसरा ही रूप नजर आता है। एक लापरवाह ,गैरज़िम्मेदार ,वासना का भूखा इंसान नजर आता है। उसके घर में तो एक लड़की रहती थी ,जो बरसों से रह रही थी ,यदि वो ऐसा व्यक्ति था ,तब उसने उसे कुछ नहीं कहा होगा। प्रभा ये सब सोच रही थी। नीलिमा से पूछूं या नहीं ,फिर सोचा -ऐसा होता तो नीलिमा उसे अपने घर में क्यों रखती ?उसे बाहर निकालकर खड़ा नहीं कर देती। ऐसी कौन सी औरत होगी ?जो अपने पति को गैर की बाँहों में देख सके। इस प्रश्न का जबाब तो प्रभा ने अपने आप ही ले लिया।
अगले दिन नीलिमा अपनी छोटी बेटी के स्कूल में गयी। उसकी बड़ी बेटी तो अब दिल्ली में पढ़ने लगी ,उसके पापा ने सुना तो नाराज भी हुए और कहने लगे -बेटी को इतने बड़े कॉलिज में बाहर पढ़ाने की क्या आवश्यकता है ?
किन्तु नीलिमा ने उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया ,मन ही मन सोचा -आपसे पैसे तो नहीं मांग रही ,मेरी बेटी जहाँ तक दिल चाहेगा, पढेगी ! बस इतना ही कह पाई ,उसकी पढ़ाई में, मैं कोई व्यवधान नहीं चाहती। आज छोटी बेटी के स्कूल गयी तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा ,उसको ''स्कॉलरशिप ''देकर बाहर पढ़ने के लिए भेजा जा रहा है ,वहीं कुछ सीखेगी और सर्विस भी लग जाएगी। उसको और क्या चाहिए उसकी मेहनत रंग ला रही है। उसकी बेटियों ने भी अपनी माँ की मेहनत को समझा और वे भी बड़े परिश्रम से पढ़ीं।
अब तो ज्यादातर उसका दिन घर से बाहर ही गुजरता ,पहले अपने स्कूल ,अब तो उसका वेतन भी बढ़ गया। उसके पश्चात संस्था का कार्य देखना ,फिर बच्चों को स्कूल से ,कभी ट्यूशन से लाना।इसी तरह उसका सारा दिन निकल जाता है ,अथर्व हमेशा उसके साथ ही रहता है ,ताकि वो लोगों से घुलना -मिलना सीखे। उसकी यही कोशिश रहती है ,बेटियों के साथ -साथ ,बेटा भी ,कुछ ऐसा सीख जाये ,कि अपना पेट भर सके। बेटा अब उसके कंधों से ऊपर आ गया ,अट्ठारह बरस का हो गया। नीलिमा ने , जब मुस्कुराकर अपने बेटे को देखा ,आज तो मेरे बेटे का जन्मदिन है ,मेरा बेटा क्या खाएगा ?अब तो मुस्कुराने भी लगा ,गुस्सा भी दिखाता है। अट्ठारह बरस पश्चात भी, नीलिमा का विश्वास आज भी कायम है। वो अपने बेटे को कुछ न कुछ अवश्य सिखाती रहती।उसे बहनों के विषय में भी समझाती ,बहनों को भी समझाती ,अपने भाई का साथ कभी न छोड़ना।
उसको योग करवाने के लिए ,स्वयं उसके साथ योग करती ,कभी साइक्लिंग करवाती ,कभी बाहर घुमाने ले जाती ,कभी उसे हारमोनियम पर संगीत के स्वर सिखाती ,वो कितना सीख पाता है ?ये मायने नहीं रखता किन्तु नीलिमा अवश्य ही प्रयासरत रहती। उसने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। सारा दिन कैसे व्यतीत हो जाता ?उसे पता ही नहीं चलता।
प्रभा आज उसके ,दफ्तर न जाकर ,उससे फोन पर ही बातें करती है और नीलिमा से पूछती है ,मैम !ये टीना क्या बला थी ? जरा समझाइये !
टीना.... फीकी सी हंसी हंसकर नीलिमा बोली -भई ,टीना क्या बला थी ? ये तो वो ही बता सकती है।
मैंने सुना है ,वो धीरेन्द्र के कॉलिज के समय की दोस्त थी।
ये बात आपसे किसने कही ?क्या सर ने आपको बताया था ?
नहीं ,उन्होंने कुछ नहीं बताया ,स्वयं टीना ने ही मुझे बताया।
क्या..... ?ये आप क्या कह रहीं हैं ?
ठीक ही तो कह रही हूँ। उसके विश्वास और प्रेम को भी उसने छला, फिर भी मुझे वो उस स्थान को नहीं दे पाया।
मैं कुछ समझी नहीं ,ये आप कैसी पहेली बुझा रहीं हैं ?वो उससे प्यार भी करते थे किन्तु उसका भी साथ नहीं दिया ,उसका विश्वास भी तोडा ।
पता नहीं ,वो अपने में ही ,या यूँ कहो !अपने को ही नहीं समझ पाया कि वो चाहता क्या था ? उलझन में ही रहता था। जब तक टीना साथ नहीं थी ,तब तक उसके पीछे पड़ा रहता था ,जब उसे उससे प्यार हो गया। तब उसके प्रति लापरवाही बरतने लगा। उसकी बातों पर ध्यान न देना ,साथ रहने पर भी......
कहीं उन्हें कोई मानसिक बीमारी तो नहीं थी।
कह नहीं सकती ,
कभी किसी डॉक्टर के पास भी नहीं गए !
आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई ,मुझे नहीं लगा ,कि वो किसी उलझन में है ,मुझे तो लगता है ,वो अपनी आदत से मजबूर था।
आप तो बता रहीं थीं ,टीना आपसे मिली।
हाँ !!
वो कैसे ?
जब मेरी शादी हुई थी ,तब मेरी सास ने मुझे घर के सभी कार्य समझा दिए ,मुझे सब्ज़ी खरीदने बाहर भी जाना पड़ा ,जबकि ये काम भी पहले नौकर ही करते थे। मुझे मेरी पड़ोसन ने बताया था तब मुझे पता चला- कि मेरे साथ क्या सही , क्या गलत हो रहा है ? तब पहली बार मैंने उसे मेरे घर के सामने से गुजरते देखा। तब मैंने कोई ध्यान नहीं दिया। एक बार मैंने उसे देहरादून में भी देखा ,ये बात मैंने धीरेन्द्र को भी बताई किन्तु उसने कोई जबाब नहीं दिया। अक्सर हम लोग जब भी कहीं घूमने गए ,उसे आस -पास ही पाया। जब मैं अपनी सास से अलग होकर इस घर में आई तब भी वो ,इधर दिखी। एक बार मैंने उससे पूछ ही लिया कि आप कौन हैं ?
तब उसने जबाब दिया।
टीना.....
ये क्या बात हुई ? टीना , नाम बता देने से आप कैसे जान गयीं ?कि ये धीरेन्द्र की प्रेमिका टीना ही है ,क्या उसने आपको बताया ,या कभी धीरेन्द्र ने आपसे कभी कहा या उससे मिलाया।
प्रभा की बात सुनकर ,नीलिमा को लगा शायद ,उसने कहीं कुछ गलत तो नहीं बोल दिया ,वो बोली -प्रभा !तुम्हें बुरा न लगे ,शायद अथर्व मुझे बुला रहा है ,शायद उसको मेरी आवश्यकता है ,मैं अभी कुछ देर में तुम्हें कॉल करती हूँ। कहकर नीलिमा ने फोन काट दिया। वो कुछ देर ,इसी तरह कुर्सी पर बैठी रही ,उसकी जो धड़कने तीव्र गति से चल रहीं थी, उन्हें संयत किया। वो इस केस में टीना को फंसा देना चाहती थी किन्तु उसे लगा कहीं वो स्वयं ही न फंस जाये। उसने बात को वहीं बंद कर दिया।
प्रभा ने इंस्पेक्टर खन्ना को फ़ोन लगाया ,हैलो !उधर से आवाज आई।
हेलो !इंस्पेक्टर साहब ! कैसे हैं ? मुझे लगता है ,आप जनता को तो भूल ही गए ,आम जनता आपको स्मरण कर रही है।
ओहो !हमें जनता ने कैसे स्मरण किया ? जब भी आप पुकारेंगी ,ये बंदा आपकी ख़िदमत में हाजिर हो जाएगा।
मैं ये पूछ रही थी ,आपका केस अभी कुछ आगे ,बढ़ा या कोई सबूत हाथ लगा।