तकलीफें,
पत्थर दिल की बेजान दीवारों में कैद है
शब्दों का सफ़र तय करके,
अभिव्यक्त होना चाहती है।
खुशियां,
चंद लम्हों की खुशियां लेकर
मेरे दिल में उतरना चाहती है।
तकलीफे भी चोट करती है,
खुशियां भी चोट करती है,
दोनों मिलकर दिल को
झकझोरती है।
इन्हीं तकलीफों और खुशियों
के संघर्ष में जीवन गुजरता है।
मगर कब तक
मौत के आने तक.....