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कविता

19 अगस्त 2022

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मैं हाड़ मांस का पुतला नहीं
इन्सान होना चाहता हूं
तुम्हारी तकलीफो का सिर्फ़ कतरा नहीं
पूरा दरिया होना चाहता हूं
किसी की आंख से निकला पानी नहीं
तुम्हारी आंखों का अश्क होना चाहता हूं
मैं हर किसी की बात नहीं
तुम्हारे दिल से निकला लफ्ज़ होना चाहता हूं
मैं पानी की कुछ बूंदे नहीं
तुम जिसमें भीगो, वो बारिश होना चाहता हूं
मैं धरा की मिट्टी नहीं
तुम जिस पर पांव रखो,वो जमीं होना चाहता हूं 
मैं तुम्हारा उदास चेहरा नहीं
तुम दिल से हँसो ,वो हँसी होना चाहता हूं 
मैं दुनिया का तो नहीं
लेकिन जिसे देखकर तुम खुश रहो,वो चांद होना चाहता हूं 
तुम्हें मिला खुशी का कोई पल नहीं
मैं पूरी ज़िंदगी होना चाहता हूं ।

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