shabd-logo

कविता

19 अगस्त 2022

15 बार देखा गया 15
मैं हाड़ मांस का पुतला नहीं
इन्सान होना चाहता हूं
तुम्हारी तकलीफो का सिर्फ़ कतरा नहीं
पूरा दरिया होना चाहता हूं
किसी की आंख से निकला पानी नहीं
तुम्हारी आंखों का अश्क होना चाहता हूं
मैं हर किसी की बात नहीं
तुम्हारे दिल से निकला लफ्ज़ होना चाहता हूं
मैं पानी की कुछ बूंदे नहीं
तुम जिसमें भीगो, वो बारिश होना चाहता हूं
मैं धरा की मिट्टी नहीं
तुम जिस पर पांव रखो,वो जमीं होना चाहता हूं 
मैं तुम्हारा उदास चेहरा नहीं
तुम दिल से हँसो ,वो हँसी होना चाहता हूं 
मैं दुनिया का तो नहीं
लेकिन जिसे देखकर तुम खुश रहो,वो चांद होना चाहता हूं 
तुम्हें मिला खुशी का कोई पल नहीं
मैं पूरी ज़िंदगी होना चाहता हूं ।

kapil की अन्य किताबें

Yashmin shekh

Yashmin shekh

Badhiya likha

20 अगस्त 2022

kapil

kapil

20 अगस्त 2022

Thanks bro

किताब पढ़िए