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मैं हाड़ मांस का पुतला नहींइन्सान होना चाहता हूंतुम्हारी तकलीफो का सिर्फ़ कतरा नहींपूरा दरिया होना चाहता हूंकिसी की आंख से निकला पानी नहींतुम्हारी आंखों का अश्क होना चाहता हूंमैं हर किसी की बात नहींतु
तकलीफें,पत्थर दिल की बेजान दीवारों में कैद हैशब्दों का सफ़र तय करके,अभिव्यक्त होना चाहती है।खुशियां, चंद लम्हों की खुशियां लेकरमेरे दिल में उतरना चाहती है।तकलीफे भी चोट करती है,खुशियां भी चोट करत