खडा़ हुआ था मुस्कुराता हरा भरा वो पेड़ (कुण्डलिया)
कुण्डलिया : खड़ा हुआ था मुस्कराता, हरा भरा वो पेड़। गंजा मालूम वो पड़े, किसने की ये छेड़॥ किसने की ये छेड़, महंगी बहुत पड़ेगी। जो सजा दीन आज, उससे बदतर मिलेगी॥ कहे 'अमित' कविराय, बिन पेड़ जीवन उखड़ा। तरु है धरा जान, न त मौत द्वार तू खड़ा॥ कवि - अमित चन्द्रवंशी