खड़ा हुआ था मुस्कराता, हरा भरा वो पेड़।
गंजा मालूम वो पड़े, किसने की ये छेड़॥
किसने की ये छेड़, महंगी बहुत पड़ेगी।
जो सजा दीन आज, उससे बदतर मिलेगी॥
कहे 'अमित' कविराय, बिन पेड़ जीवन उखड़ा।
तरु है धरा जान, न त मौत द्वार तू खड़ा॥
कवि - अमित चन्द्रवंशी
23 जून 2016
खड़ा हुआ था मुस्कराता, हरा भरा वो पेड़।
गंजा मालूम वो पड़े, किसने की ये छेड़॥
किसने की ये छेड़, महंगी बहुत पड़ेगी।
जो सजा दीन आज, उससे बदतर मिलेगी॥
कहे 'अमित' कविराय, बिन पेड़ जीवन उखड़ा।
तरु है धरा जान, न त मौत द्वार तू खड़ा॥
कवि - अमित चन्द्रवंशी
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I am a writer and a poet who writes on general issues, social life, spiritual incidents (those are based on motivational thoughts) and other independent thoughts.