(महन्त जी दो चेलों के साथ गाते हुए आते हैं)
सब: राम भजो राम भजो राम भजो भाई।
राम के भजे से गनिका तर गई,
राम के भजे से गीध गति पाई।
राम के नाम से काम बनै सब,
राम के भजन से दोनों नयन बिनु
सूरदास भए कबिकुलराई।
राम के नाम से घास जंगल की,
तुलसी दास भए भजि रघुराई।।
महन्त: बच्चा नारायण दास! यह नगर तो दूर से बहुत ही सुंदर दिखाई देता है, देख, कुछ भिच्छा उच्छा मिलै तो ठाकुर जी को भोग लगै। और क्या।
ना. दा: गुरु जी महाराज! नगर तो नारायण के आसरे से बहुत ही सुंदर है जो सो, पर भिक्षा सुंदर मिलै तो बड़ा आनन्द होय।
महन्त: बच्चा गोवर्धन दास! तू पश्चिम की ओर से जा और नारायण दास पूरब की ओर जाएगा। देख, जो कुछ सीधा सामग्री मिलै तो श्री शालग्राम जी का बालभोग सिद्ध हो।
गो. दा: गुरू जी! मैं बहुत सी भिच्छा लाता हूं। यहां लोग तो बड़े मालवर दिखलाई पड़ते हैं। आप कुछ चिन्ता मत कीजिए।
महंत: बच्चा बहुत लोभ मत करना। देखना, हां।
लोभ कभी नहीं कीजिए, यामै नरक निदान।।
(गाते हुए सब जाते हैं।)