(गोवर्धन दास गाते हुए आते हैं)
(राग काफी)
अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा।।
नींच ऊंच सह एकहि ऐसे। जैसे भडुए पंडित तैसे।।
कुल मरजाद न मान बड़ाई। सबैं एक से लोग बुलाई।।
जात पाँत पूछै नहिं कोई। हरि को भजे सो हरि को होई॥
सांचे मारे मारे डाल। छली दुष्ट सिर चढ़ि चढ़ि बोलैं॥वेश्या जोरू एक समाना। बकरी गऊ एक करि जाना॥
प्रगट सभ्य अन्तर छलहारी। सोइ राजसभा बलभारी ॥