(गोबर्धन दास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश)
गो. दा. हाय बाप रे! मुझे बेकसूर ह फांसी देते हैं। अरे भाइयों, कुछ तो धरम विचारों! अरे मुझ गरीब को फांसी देकर तुम लोगों को क्या लाभ मिलेगा? अरे मुझे छोड़ दो। हाय हाय (रोता है और छुड़ाने की कोशिश करने लगा)
1 सिपाही: अबे, चुप रह-राजा हुकुम भला नहीं टल सकता है? यह तेरा आखिरी दम है, राम का नाम ले-बेफाइदा क्यों शोर करता है? चुप रह-
गो. दा.: हाय! मैं ना सुना, अरे, इस नगर का नाम ही अंधेर नगरी और राजा का नाम चौपट्ट है तब बेचने की कौन आशा है। अरे, इस नगर में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है जो फकीर को बचावै। गुरु जी, कहां हो? बचाओ-गुरुजी-गुरुजी- (रोता है, सिपाही लोग उसे घसीटते हुए ले चलते हैं.)