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अंधेर नगरी का चौथा दृश्य

4 अक्टूबर 2021

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राज्यसभा

(राजा, मन्त्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित हैं)

1 सेवक : (चिल्लाकर) पान खाइए महाराज।

राजा : (पीनक से चैंक घबड़ाकर उठता है) क्या? सुपनखा आई ए महाराज। (भागता है)।

मन्त्री : (राजा का हाथ पकड़कर) नहीं नहीं, यह कहता है कि पान खाइए महाराज।

राजा : दुष्ट लुच्चा पाजी! नाहक हमको डरा दिया। मन्त्री इसको सौ कोडे लगैं।

मन्त्री : महाराज! इसका क्या दोष है? न तमोली पान लगाकर देता, न यह पुकारता।

राजा : अच्छा, तमोली को दो सौ कोड़े लगैं।

मन्त्री : पर महाराज, आप पान खाइए सुन कर थोडे ही डरे हैं, आप तो सुपनखा के नाम से डरे हैं, सुपनखा की सजा हो।

राजा : (घबड़ाकर) फिर वही नाम? मन्त्री तुम बड़े खराब आदमी हो। हम रानी से कह देंगे कि मन्त्री बेर बेर तुमको सौत बुलाने चाहता है। नौकर! नौकर! शराब।

2 नौकर : (एक सुराही में से एक गिलास में शराब उझल कर देता है।) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज।

राजा : (मुँह बनाकर पीता है) और दे।

(नेपथ्य में-दुहाई है दुहाई-का शब्द होता है।)

कौन चिल्लाता है-पकड़ लाओ

(दो नौकर एक फरियादी को पकड़ लाते हैं)

फ: दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारआ न्याव होय।

राजा: (नौकर से) कल्लू बनिया की दीवार गिर पड़ी सो मेरी बकरी उसके नीचे दब गई। दोहाई है महाराज न्याय हो।

मन्त्री; महाराज, दीवार नहीं लाई जा सकती।

राजा: अच्छा, उसका भाई, लड़का, दोस्तष आशना जो हो उसको पकड़ लाओ।

मन्त्री: महाराज! दीवार ईंट चूने की होती है, उसको भाई बेटा नहीं होता।

राजा: अच्छा कल्लू बनिये को पकड़े लाओ।

(नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिए को पकड़ लाते हैं) क्यों बे बनिए! इसकी लरकी,नहीं बरकी क्यों दबकर मर गई?

मन्त्री: बरकी नहीं महाराज, बकरी।

राजा: हां हां, बकरी क्य़ों मर गई- बोल,नहीं तो अभी फांसी देता हूं।

कल्लू; महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं है। कारईगर ने ऐसी दीवार बनाया कि गिर पड़ी।

राजा: अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लाओ। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़ लाते हैं।) क्यों बे कारीगर! इसकी बकरई किस तरह मर गई?

कारीगर: महाराज, मेरा कुछ कसूर नहीं है, चूनेवाले ने ऐसा बोदा बनाया कि दीवार गिर गई।

राजा: अच्छा, इस कारीगर को बुलाो, नहीं नहीं निकालो, उस चूनेवाले को बुलाओ।

(कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई?

चूनेवाला: महाराज, मेरा कोई दोष नहीं है, भिश्ती ने चूने में पानी ढेर सारा मिला दिया था। इसी से चूना कमजोर हो गया।

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रचनाएँ
भारतेंदु हरिषचंद्र की 'अंधेर नगरी'
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बनारस में बंगालियों और हिन्दुस्तानियों ने मिलकर एक छोटा सा नाटक समाज दशाश्वमेध घाट पर नियत किया है, जिसका नाम हिंदू नैशनल थिएटर है। दक्षिण में पारसी और महाराष्ट्र नाटक वाले प्रायः अन्धेर नगरी का प्रहसन खेला करते हैं, किन्तु उन लोगों की भाषा और प्रक्रिया सब असंबद्ध होती है। ऐसा ही इन थिएटर वालों ने भी खेलना चाहा था और अपने परम सहायक भारतभूषण भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र से अपना आशय प्रकट किया। बाबू साहब ने यह सोचकर कि बिना किसी काव्य कल्पना के व बिना कोई उत्तम शिक्षा निकले जो नाटक खेला ही गया तो इसका फल क्या, इस कथा को काव्य में बाँध दिया। यह प्रहसन पूर्वोक्त बाबू साहब ने उस नाटक के पात्रों के अवस्थानुसार एक ही दिन में लिख दिया है। आशा है कि परिहासप्रिय रसिक जन इस से परितुष्ट होंगे। इति।

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