दूसरा दृष्य बाजार में
कबाबवाला : कबाब गरमागरम मसालेदार-चैरासी मसाला बहत्तर आँच का-कबाब गरमागरम मसालेदार-खाय सो होंठ चाटै, न खाय सो जीभ काटै। कबाब लो, कबाब का ढेर-बेचा टके सेर।
घासीराम : चने जोर गरम-चने बनावै घासीराम।
चना चुरमुर चुरमुर बौले।
चना खावै तौकी मैना।
चना खायं गफूरन मुन्ना।
चना खाते सब बंगाली।
चना खाते मियां-जुलाहे।
चना हाकिम सब जो खाते।
चने जोर गरम-टके सेर।
नरंगीवाली : नरंगी ले नरंगी-सिलहट की नरंगी, बुटबल की नरंगी, रामबाग की नरंगी, आनन्दबाग की नरंगी। भई नीबू से नरंगी। मैं तो पिय के रंग न रंगी। मैं तो भूली लेकर संगी। नरंगी ले नरंगी। कैवला नीबू, हलवाई : जलेबियां गरमा गरम। ले सेब इमरती लड्डू गुलाबजामुन खुरमा बुंदिया बरफी समोसा पेड़ा कचैड़ी दालमोट पकौड़ी घेवर गुपचुप। हलुआ हलुआ ले हलुआ मोहनभोग। मोयनदार कचैड़ी कचाका हलुआ नरम चभाका। घी में गरक चीनी में तरातर चासनी में चभाचभ। ले भूरे का लड्डू। जो खाय सो भी पछताय जो न खाय सो भी पछताय। रेबडी कड़ाका। पापड़ पड़ाका। ऐसी जात हलवाई जिसके छत्तिस कौम हैं भाई। जैसे कलकत्ते के विलसन मन्दिर के भितरिए, वैसे अंधेर नगरी के हम। सब समान ताजा। खाजा ले खाजा। टके सेर खाजा।
कुजड़िन : ले धनिया मेथी सोआ पालक चैराई बथुआ करेमूँ नोनियाँ कुलफा कसारी चना सरसों का साग। मरसा ले मरसा। ले बैगन लौआ कोहड़ा आलू अरूई बण्डा नेनुआँ सूरन रामतरोई तोरई मुरई ले आदी मिरचा लहसुन पियाज टिकोरा। ले फालसा खिरनी आम अमरूद निबुहा मटर होरहा। जैसे काजी वैसे पाजी। रैयत राजी टके सेर भाजी। ले हिन्दुस्तान का मेवा फूट और बैर।
मुगल : बादाम पिस्ते अखरोट अनार विहीदाना मुनक्का किशमिश अंजीर आबजोश आलूबोखारा चिलगोजा सेब नाशपाती बिही सरदा अंगूर का पिटारी। आमारा ऐसा मुल्क जिसमें अंगरेज का भी दाँत खट्टा ओ गया। नाहक को रुपया खराब किया। हिन्दोस्तान का आदमी लक लक हमारे यहाँ का आदमी बुंबक बुंबक लो सब मेवा टके सेर।
पाचकवाला : चूरन अमल बेद का भारी। जिस को खाते कृष्ण मुरारी।।
मेरा पाचक है पचलोना।
चूरन बना मसालेदार।
मेरा चूरन जो कोई खाय।
हिंदू चूरन इसका नाम।
चूरन ऐसा हट्टा कट्टा।
चूरन चला डाल की मंडी।
चूरन अमरे सब जो खावैं।
चूरन नाटकवाले खाते।
चूरन सभी महाजन खाते।
चूरन खावै एडिटर जात।
चूरन साहेब लोग जो खाता।
चूरन पुलिसवाले खाते।
ले चूरन का ढेर, बेचा टके सेर।।
मछलीवाली: मछली ले मछली।
मछरिया एक टके कै बिकाय।
मछरिया एक टके कै बिकाय।
लाख टका के वाला जोबन, ग्राहक सब ललचाय।
नैन मछरिया रूप जाल में, देखतही फंसि जाय।
बिनु पानी मछरी सो बिरहिया, मिले बिना अकुलाय।
जातवाला : (ब्राह्मण)।-जात ले जात, टके सेर जात। एक टका दो, हम अभी अपनी जात बेचते हैं। टके के वास्ते ब्राहाण से धोबी हो जाँय और धोबी को ब्राह्मण कर दें टके के वास्ते जैसी कही वैसी व्यवस्था दें। टके के वास्ते झूठ को सच करैं। टके के वास्ते ब्राह्मण से मुसलमान, टके के वास्ते हिंदू से क्रिस्तान। टके के वास्ते धर्म और प्रतिष्ठा दोनों बेचैं, टके के वास्ते झूठी गवाही दें। टके के वास्ते पाप को पुण्य मानै, बेचैं, टके वास्ते नीच को भी पितामह बनावैं। वेद धर्म कुल मरजादा सचाई बड़ाई सब टके सेर। लुटाय दिया अनमोल माल ले टके सेर।
बनिया : आटा- दाल लकड़ी नमक घी चीनी मसाला चावल ले टके सेर।
(बाबा जी का चेला गोबर्धनदास आता है और सब बेचनेवालों की आवाज सुन सुन कर खाने के आनन्द में बड़ा प्रसन्न होता है।)
गो. दा: क्यों भाई बणिये, आटा कितणे सेर?
बनिया: टके सेर।
गो. दा: औ चावल?
बनिया: टके सेर।
गो. दा. : औ चीनी?
बनिया: टके सेर।
गो. दा.: औ घी?
बनिया: टके सेर।
गो. दा. : सब टके सेर। सचमुच।
बनिया: हां महाराज, क्या झूठ बोलूंगा?
गो. दा: (कुंजड़िन के पास जाकर) क्यों भाई, भाजी क्या भाव?
कुंजड़िन: बाबा जी, टके सेर। निबुआ मुरई धनिया मिरचा साग सब टके सेर।
गो. दा. : सब भाजी टके सेर। वाह वाह! बड़ा आनंद है। यहां सभी चीज टके सेर। (हलवाई के पास जाकर) क्यों भाई हलवाई? मिठाई कितणे सेर?
हलवाई: बाबा जी! लडुआ हलुआ जलेबी गुलाबजामुन खाजा सब टके सेर।
गो. दा.: क्यों बच्चा! इस नगर का नाम क्या है?
हलवाई: अंधेर नगरी।
गो. दा.: और राजा का नाम क्या है?
हलवाई: चौपट राजा।
गो. दा. : वाह! वाह! अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा (यही गाता है और आनंद से बिगुल बजाता है।)
हलवाई: तो बाबा जी, कुछ लेना देना हो तो लो दो।
गो. दो. : बच्चा, भिक्षा मांग कर सात पैसे लाया हूं, साढ़े तीन सेर मिठाई दे दे, गुरू चेले सब आनंदपूर्वक इतने में छक जाएंगे।
(हलवाई मिठाई तौलता है- बाबा जी मिठाई लेकर खाते हुए औरअंधेर नगरी गाते हुए जाते हैं।)
(पटक्षेप)