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कंगाल होता जनतंत्र

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राग दरबारी एक विसंगतिवादी उपन्यास

17 मार्च 2019
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राग दरबारी : एक विसंगतिवादी उपन्यास अनिल कुमार शर्मा श्रीलाल शुक्ल द्वारा लिखा गया उपन्यास 'राग दरबारी ' एक खुला (Open) कथानकों

जब कभी मेरा मुझसे सामना होता है

26 फरवरी 2018
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यह कौन सा कालखंड है

22 फरवरी 2018
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गांव वाले मेरा गांव पूछते हैंशहर वाले मेरा शहर पूछते हैंजाति वाले मेरी जाति पूछते हैंधर्म वाले मेरा धर्म पूछते हैंदेश वाले मेरा देश पूछते हैंप्रदेश वाले मेरा प्रदेश पूछते हैंराष्ट्र वाले मेरा राष्ट्र पूछते हैंखुदा वाले मेरा खुदा पूछते हैंपार्टी वाले मेरी पार्टी पूछते

किसकी कितनी आज़ादी है

15 अगस्त 2017
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किसकी कितनी आजादी हैधोती कुरता खादी हैजय बोलो महात्मा गाँधी हैडंडे में लटका एक झंडा हैउसके ऊपर एक फंदा हैजिससे डोरी लटक रही हैहवाएँ किसको झटक रही हैंखूनी पंजो में सिसक रही हैआज़ादी क्यों झिझक रही हैजगह है जिनकी कारागारों मेंसंसद को हथियाये बैठे हैअपने दुर्दम पैरों सेजनमत को लतियाये बैठे है भूखी जन

कुर्सीवाद

13 अगस्त 2017
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कुर्सीवादयहाँ न तो बीज है न खाद हैअब जिंदगियां सिर्फ बरबाद हैंसपनों से पहले या सपनों के बाद हैमित्र सिर्फ सत्ता का कुर्सीवाद हैयहाँ तो सिर्फ घुटन है टूटन हैजिंदगी के सफर का छूटन हैअब तो कोई कली नहीं खिलतीक़र्ज़ पर भी साँस नहीं मिलतीनिवेश के लिए घूमता नंगा हैशांति के ढोंग में फैलता दंगा

मृत जीवन

11 अगस्त 2017
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हो उदित स्वप्न क्यों बिखर रहेमधुर मनोहरतम अंतर वालेहर्षाते दुलारते बाल -बृन्द -खगमोहक मृदुल मधुर स्वर वालेउजड़े उपवन के बीच खड़ीउज्ज्वल औद्योगिक यह प्रतिमाक्षय परिवर्तित सुरभि क्षय -क्षयश्वाँस अवरुद्ध दम तोड़ हरीतिमापल्लव पल्लव आज सँवरतेसूखी शाखा रोज निखरतेविकृत दृष्टिकोणों की कृति मेंबिना छंद ये शब्द

माँ का आँचल

14 मई 2017
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वह जो गोद में दूध पिलाते हुएचूल्हे के आगे रोटी बनाती हैएक हाथ से बच्चे को खिलाती हैदूसरे हाथ से सब्जी चलाती हैवह माँ है जो घर को चलाती हैगिरते हुए बच्चे को उठाती हैसहलाती है दुलराती हैजगाती है सुलाती हैलोरी और कहानी सुनाती हैजवानी और बुढ़ापे को माँतुम्हारी याद बचपन बनाती हैमेरे लिए कितने मन्नते मनात

वह तोड़ता भूत

7 मई 2017
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वह तोड़ता भूतजोड़ता भविष्यफोड़ता वर्तमानजिसे मैंने देखाकचहरी के पथ परचीथड़ों के साम्राज्य परगर्दिश में खोयी किस्मत के बीचपिजड़े में बैठा तोताकिसी का भाग्य विधाता होतागत्ते के ढ़ेर में उलझे हुए भाग्य लेखउलझती हुई जिंदगी को देखसमाधान के पक्ष विपक्षकर देते किंकर्तव्यविमूढ़ग्रह - नक्षत्रों के चक्रव्यूह में फं

रात अभी बाक़ी

7 मई 2017
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ग़ज़ल सुबह हो गयी मग़र रात अभी बाक़ी है |इस रोशनी में अब कोई साज़िश झिलमिलाती है | |सूरज बहकता सा चाँदनी मुस्कुराती है |हवा का रुख बताने में पत्तियां लड़खड़ाती हैं | |धुँवा इस कदर पसरा आंखें डबडबाती हैं

The Stolen Earth

22 अप्रैल 2017
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The Stolen EarthThe dream and realityThe life and facilityIn this post-truth worldProblems are larger than lifeProduction of abundanceCrowd of redundantShifting abode day and nightLife-full dream dry off lifeLeft is seldom rightBut right is always rightPink-collar is so grudgeIn search of a dark del

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