अब तो मैं रोशनी में से रोशनी छांटता हूँ
मित्र जो देखते होउसे उसी तरह कह दोनमक -मिर्च की जरुरत भी नहीं हैवह जंगली फूल की तरह खिलेगाकिसी घाव को छिलेगाइंद्रधनुष के रंग में बिखरी हुई छटादुर्भाग्य की घिरती हुई काली घटाकनफटा नकफटा मुंहफटासब छू मंतर हो जाएंगेजब स्थिति को हम समझ पाएंगेइस भाषा की व्यवस्था मेंजो कहने की आदत हैसूखे शब्दों से बने उलझ