आधी उम्र बीत गई रज्जो को अपनी पहचान अपनों के बीच खोजते खोजते ।रज्जो के कान में जब आवाज आती है हमें यह सब पसन्द नहीं, हम ऐसा खाना नही खा सकते, हम लोग जा रहे हैं घर का ध्यान रखना, अपने आप को उस हम से अलग थलग पाती, हम शब्द में पूरा परिवार और दूसरी तरफ अकेली जिम्मेदारियों का बोझ उठाती रज्जो ।मां ने कुछ भी न सिखाया हर चूक के लिए वजह वह अकेली रज्जो ।
अपने माता पिता भाई बहनों को याद करने की इजाजत मांगने पर अब पीछे को भूल यहां मन लगाने की चेतावनी मिलती ।
मायके से फोन पर भाभी ने बताया जिज्जी बच्चे छुट्टियों में आपके घर घूमने आ रहें हैं, बहुत खुशी हुई पर सोचा मेरा भी कोई घर है मायका भी पराया और ससुराल में दूसरे घर से आई है शब्द गूंज उठे कान में ।
सर में दर्द या बुखार कहने पर, सारे बहाने हमें पता हैं कि चोट गहरी आघात वाली होती, घर में सब बीमार पड सकते हैं पर वह नहीं ।ज़िन्दगी भर के लिए टीस देने वाला समय वह भूलना चाहती है पर रह रह कर याद आ ही जाता है ,
डॉक्टर ने उसको संक्रमण क्या बता दिया मां की ममता जाग पड़ी रसोई बनाने परोसने से उसे दूर कर अन्य काम करने को कह दिया गया, और एक नासूर जो हमेशा रिसता है उसकी यादों में बेटे के पास न जाने का क्रूर आदेश ।
संक्रमण ठीक हो गया चेतावनी का कार्यकाल समाप्त पर उसकी याद आज भी क्रूर ही है ।
किस ने कराया यह रिश्ता रज्जो के सामने ही निर्मल बुआ का यह पूछना एक झापड़ की तरह गाल पर आज भी छाप छोड़ता है ।
समय बीत रहा है पल पल परिवार में रज्जो से अपेक्षा बढती जा रही हैं, सामने वाले का व्यवहार उसकी सोच, मेरा कर्तव्य मेरा व्यवहार मेरा, सोच ज़िन्दगी जीए जा रही है ।
मन में कसक सी उठती है कि मुझे बोझिल व्यवहार से सींचने वालों को अहसास है कि कहीं वे गलत हैं कभी वह सोच पाएंगें हमने किसी की भावनाओं को छिन्न भिन्न किया है ।
अब उम्र हो चली सब कुछ चल रहा है मन में कसक रहती है कुछ लोगों को अहसास हो, कि किया है उन्होंने किसी की भावनाओं से खिलवाड़ जिससे उसकी यादें धुंधली हो सकें ।
एक बात ने रज्जो को मजबूती दी कि दुनिया रज्जो को गलत समझ कर उपेक्षित करे तो करे, अगर रज्जो गलत नहीं है तो रज्जो ने रज्जो को गलत न समझा रज्जो अडी रही डटी रही ।