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क्रोध का अन्त

17 अक्टूबर 2021

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क्रोध का अन्त गांव में एक चौधरी साहब रहते थे उनको चौधरी कहकर उनकी पत्नी बुलाया करती थी और इसी नाम से वह पूरे गांव में मशहूर हो गए ।उनकी पत्नी धार्मिक प्रवर्ती की थीं और उनके बच्चे भी बडे सुसंस्कृत थे उनकी दोनों बेटियों ने अपने मधुर स्वभाव से ससुराल में सबका दिल जीत लिया था सौभाग्य से उनकी तीनों बहुऐं भी परिवार में सौहार्द रखने वाली थीं ।परिवार पर प्रभु की अत्यधिक कृपा रही ।
चौधरी साहब की एक ख़ासियत थी कि उनके पास कोई भी याचक आता तो वह उसकी रूपया पैसा और कपड़े से सहायता करने की जगह याचक के हिसाब से कामधन्धा या किसी से कहकर कहीं नौकरी लगवाने की कोशिश करते और सोचते कि याचक की ऐसी सहायता करो कि वह जिंदगी भर याचक ही न बना रहे हैं उस व्यक्ति को अपने परिवार का खर्चा उठाने के लायक बनाने की कोशिश करो ।उनकी इसी सोच से उनको ढेरों आशीर्वाद और धन्यवाद और दुआऐं मिलती उन असंख्य दुआओं के असर से चौधरी साहब के परिवार में सर्वत्र सुख शान्ति का वास रहता ।
एक रात चौधरी साहब के सपने में सुख शान्ति की देवी मां लक्ष्मी आई और कहने लगीं और कहने लगीं कि मेरी गति तो चलायमान है और अब मैं तुम्हारे घर से कल चली जाऊंगीं, कल से तुम्हारे घर में मेरी जगह क्रोध आकर के रहेगा ।चौधरी साहब ने कहा ठीक है मां जैसी आपकी इच्छा ऐसा कहकर वह आराम से सो गए ।
दूसरे दिन क्लेश की की द्ष्टि चौधरी साहब के घर पर पड़ी, 
जब वह चौधरी साहब के घर आ रहा था तो रास्ते में उसका मित्र द्वेष मिला वह भी क्लेश के साथ हो लिया द्वेष के साथ होने पर क्लेश को बडी मजबूती महसूस हुई ।
द्वेष की नजर  रसोई में खाना बना रही मंझली बहू पर पड़ी और उसने मंझली बहू की सोच पर आक्रमण कर दिया, खाना बनाते बनाते वह सोचने लगी रसोई में थोड़ी सी सूजी रक्खी है ,क्यों न मैं अपने पति और बच्चे के लिए थोडा सा हलवा बना लूं ।
यह सोच कर उसने पूरे परिवार की जगह केवल ,अपने पति और बच्चे के लिए थोडा सा हलवा बनाया और छुपा कर रक्ख दिया ,और खेलकूद कर आए बालक को हलवा दिया वह नादान बालक दौड़ा दौड़ा अपनी दादी मां के पास गया और दादी को हलवा देते हुए बोला देखो दादीमां मां ने कितना स्वादिष्ट हलवा बनाया है ।
हम सब बच्चों को थोड़ा थोडा हलवा खिला दो, जब बच्चों ने हलवे की प्रशंसा की तो मंझली बहू आत्मग्लानि से भर गई और सोचा यह मैं क्या करने जा रही थी अगर मेरी वजह से घर का माहौल बिगड़ता तो मैं सबकी नजरों में गिर जाती और जन्म भर अपने आप को माफ नहीं कर पाती यह सोचकर अपनी सासुमां को अपनी गलती बताकर माफी मांगने लगी, सासुमां ने कहा उठ बेटा तेरे को अपनी गलती का अहसास हो गया, तेरे अहसास करने से हमारे परिवार में बंटवारे की नींव पडने से बच गई ।
अब बेटा तूने गलती तो की ही है ,तो मैं तुझे ऐसे तो छोडूगी नहीं, बच्चे तेरे हाथ के हलवे की बडी प्रशंसा कर रहे थे ,तो मेरी भी इच्छा हलवा खाने की कर रही है,सो आज तू बाजार से सूजी मंगा करके शाम को सबके लिए हलवा बना और मन में आई गलत सोच को एक बुरा सपना समझ कर भूल जा, और अपने मन को निर्मल कर परिवार को इसी तरह जोड कर रक्ख, तेरी सद्बुद्धी के लिए तुझे मैं ढेरों आशीर्वाद देतीं हूं, सास का यह ममतामयी रूप देखकर बहू की आंखों से आंसू बहने लगे यह आंसू पश्चात्ताप के साथ खुशी के आंसू थे, सास ने बेटा बेटा कहकर बहू को गले से लगा लिया ।
परिवार के इस सौहार्द को देखकर क्लेश द्वेष से बोला चलो मित्र यहां से ,जिस घर में आपस में इतनी समरसता हो ,उस घर से सुख शान्ति कभी जा ही नहीं सकती ।
जहां परिवार के सभी सदस्यों में सुखद समरसता हो तो समरसता घर की सुख शान्ति को बाहर नहीं निकलने देती ।

27 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

👌👌

10 दिसम्बर 2021

प्रान्जलि काव्य

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सप्रसंग प्रेरक बहुत अच्छी रचना

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