भोर की ब्राम्ही शीतलता जीवन को नव किशलयों का दान करने धरा पर उतरती तो जागरूक चेतना की झोली सृजन, समृद्धि और सरलता की सुवास से परिपूर्ण हो उठती. खरहरे की खर्र खर्र, मथानी की गर्र गों, व चकिया और सूप की घड़र घड़र और फटर फटर में वो चेतनाएं भी जाग उठती जो निंद्रा के वसीभूत होती. कुएं की जगत पर स्नान कराने के लिए होड़ सी लगी रहती माजरा देखते ही बनता जब बुजुर्गों को गाँव के बच्चे सब मिल अपने छोटे - छोटे लोटों में जल भर पूरे मन से नहलाते तो लगता गगन से जान्हवी गावं के प्रांगण में उतर आई हो.