11 मार्च 2016
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पी.एच.डी , पोस्ट डॉक् ( भौतिक विज्ञान) आई. आई. टी कानपुर. भारतीय दर्शन में प्रगाढ़ रूचि, हिंदी लेखन में रूचि, प्रकृति से अपनापनD
इतनी प्रतियोगी परीक्षाएं होने लगी है. कोई करे तो क्या करे
13 मार्च 2016
अमा कभी ये लखनऊ बागों के लिए मसहूर हुआ करता था, जब जब गर्मियां आती तो चारबाग की दसेहरी पाने को हर हाँथ लपक उठता, तो कोई कैसरबाग़ के सफ़ेदा की डालिओं पे जी छिड़कता, ये बादशाह बाग़ के चौसो और लंगड़ों की खुसबू को क्या कहें कि जब तक कोई घर वाला तांगे से ढूँढने नही निकलता, अमा मिया हम तो घर जाने से रहे. वो
भोर की ब्राम्ही शीतलता जीवन को नव किशलयों का दान करने धरा पर उतरती तो जागरूक चेतना की झोली सृजन, समृद्धि और सरलता की सुवास से परिपूर्ण हो उठती. खरहरे की खर्र खर्र, मथानी की गर्र गों, व चकिया और सूप की घड़र घड़र और फटर फटर में वो चेतनाएं भी जाग उठती जो निंद्रा के वसीभूत होती. कुएं की जगत पर स्नान कराने